बाइट, प्लीज (part 21)
44.
महेश सिंह और विज्ञापन मैनेजर मंगल सिंह को लेकर पटना दफ्तर में यह अफवाह फैली हुई थी कि दोनों को इस्तीफा देकर जाने को कह दिया गया है। हालांकि दोनों के चेहरों पर किसी तरह का शिकन नहीं था। कहा तो यहां तक जा रहा था कि दोनों ने चैनल के गेस्ट हाउस का इस्तेमाल लड़कीबाजी के लिए करने की कोशिश की थी। चैनल के ही किसी लड़की को वहां पर ले जाकर उसके साथ उल्टी सीधी हरकत करने की कोशिश की और फिर यह मामला रत्नेश्वर सिंह के कानों तक पहुंच गया और उन्होंने इन दोनों को तत्काल हटाने का निर्णय लिया। इसके इतर एक और कहानी दफ्तर के अंदर और दौड़ रही थी। कुछ लोग खुसफुसा रहे थे कि शराब के नशे में आकर महेश सिंह ने रत्नेश्वर सिंह को गालियां दी है और उसकी गालियों को रिकार्ड करके किसी ने रत्नेश्वर सिंह को सुना दिया है। कुछ लोग यहां तक कह रहे थे कि रत्नेश्वर सिंह की कोई फाइल बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में पड़ी हुई है और महेश सिंह स्वास्थ्य मंत्री के साथ मिलकर उस फाइल को अप्रूव नहीं कर पा रहा है, जबकि इस बारे में वह लंबा चौड़ा डिंग हांकता रहा है कि सरकार के सारे मंत्री उसकी जेब में है। इन तमाम अफवाहों के बीच में सच्चाई कहां छिपी हुई थी, निकाल पाना मुश्किल था, लेकिन महेश सिंह और मंगल सिंह की विदाई के आदेश पारित हो गये थे इतना तो तय था।
दोनों को हटाने की जिम्मेदारी माहुल वीर को सौंपी गई लेकिन माहुल वीर ने सीधे तौर पर महेश सिंह से इस संबंध में बात करना मुनासिब नहीं समझा। फोन पर जब महेश सिंह से उनकी बातचीत हुई तो उन्होंने बस इतना ही कहा, “पता नहीं रत्नेश्वर सिंह आपसे काफी नाराज है। यदि कहीं जुगाड़ लगता है तो निकल जाइये।”
महेश सिंह ने माहुल वीर की बात को गंभीरता से नहीं लिया और कहा, “वो कब क्या बोलेंगे, कुछ पता नहीं चलता है। यही वजह है कि जब कभी वह दफ्तर में आते हैं मैं उनके सामने नहीं जाता हूं। उनको जो बोलना है बोलने दीजिये मैं काम करता रहूंगा। ”
इसके बाद माहुल वीर महेश सिंह के मामले पर पूरी तरह से चुपी साध ली लेकिन मंगल सिंह को लेकर वह रत्नेश्वर सिंह के सामने बार-बार यह दलील देते रहे कि विज्ञापन हासिल करने का काम तेजी से चल रहा है। यदि बीच में मंगल सिंह को हटाया गया तो यह काम बुरी तरह से बाधित होगा और चैनल को जबरदस्त नुकसान होगा। चैनल को होने वाले नुकसान का आकलन करते हुये रत्नेश्वर सिंह मंगल सिंह के मामले में तो थोड़े साफ्ट पड़ गये लेकिन महेश सिंह को बाहर का रास्ता दिखाने पर अडिग रहे।
दफ्तर में महेश सिंह की लगातार उपस्थिति के बारे में रत्नेश्वर सिंह को खबरे मिलती रही तो उन्होंने भोला को फोन पर ही आदेश दिया कि महेश सिंह को दफ्तर आने से रोक दे। भोला पूरी तरह से महेश सिंह के प्रभाव में था, अपनी ओर से महेश सिंह का बचाव करते हुये उसने कहा, “वही एक आदमी है जिनकी सब सुनते हैं और डरते हैं। उनको लोगों से काम करवाना आता है। यहां तक की मंत्री सब भी उनको अच्छा से जानता है। उनके बिना काम नहीं चल पाएगा।”
भोला को डपटते हुये रत्नेश्वर सिंह ने कहा, “ जो कहा गया है वो करो, उस आदमी को बोल दो कि दफ्तर आना बंद कर दे। इस महीने से उसे वेतन नहीं दिया जाएगा।” रत्नेश्वर सिंह को उग्र देखकर भोला भी थोड़ी देर के लिए भौचक रह गया। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या बोले। फोन बंद होने के बाद भी रत्नेश्वर सिंह के शब्द उसकी कानों में गूंज रहे थे। काफी देर तक वह इस बात पर मंथन करता रहा कि महेश सिंह को इस बारे में कैसे बताये, क्योंकि महेश सिंह के साथ उसका उसका दारू और रोटी का संबंध था। लेकिन रत्नेश्वर का हुक्म तो बजाना ही था। दिन भर वह इसी तनाव में रहा कि कैसे महेश सिंह को इस बारे में बताया जाये।
शाम को महेश सिंह जब दफ्तर आया तो उसने एक कोने में ले जाकर उससे कहा, “ सर मामला गंभीर है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे बोलू।”
“बात क्या है, किसी ने कुछ बोला क्या। अभी साले का दिमाग दुरुस्त कर दूंगा,” अपने अंदाज में महेश सिंह ने कहा।
“बात वो नहीं है, दिन में रत्नेश्वर सिंह का फोन आया था उन्होंने कहा है कि आप दफ्तर आना बंद कर दें. इस महीने से आप को वेतन नहीं दिया जाएगा, ” भोला ने हिचकते हुये कहा। भोला की बातों को सुनकर महेश सिंह का चेहरा लाल हो गया।
“किसी ने मेरी शिकायत की है क्या ? अब तक तो सब ठीक चल रहा था फिर अचानक रत्नेश्वर सिंह ऐसे कैसे बोल रहे हैं ?, ” महेश सिंह ने अपने आप को संभालते हुये कहा।
“मुझको नहीं पता। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की तो मुझपर ही बिगड़ गये ”, भोला ने कहा।
“ठीक है। मैं पता लगाता हूं, फिलहाल इस बात का जिक्र कहीं मत करना”, इतना कह कर महेश सिंह एक ओर चल दिया।
रत्नेश्वर सिंह की तरफ से मना करने के बावजूद महेश सिंह ने दफ्तर आना बंद नहीं किया। हालांकि अब पहले की तरह हंगामा नहीं करता था। रिपोटरों को भी आदेश देने उसने बंद कर दिये थे। जब भी कोई रिपोटर उससे किसी मामले में कुछ पूछता तो वह बस इतना ही कहता था, “अब मेरा यहां से जाने के समय आ गया है। मेरे बाद अब तुम ही यहां की कमान संभालोगे।”
एक दिन सबको खबर मिली की महेश सिंह ने रिपोटर के तौर पर पटना में ही एक दूसरा चैनल ज्वाइन कर लिया है।
45.
बदले हुये परिदृश्य में सुयश मिश्रा ने रिपोटिंग की लगाम अपने हाथ में पूरी तरह से ले ली, हालांकि माहुल वीर सुयश मिश्रा को दरकिनारा करने की पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन विकल्प के अभाव में अंतत: उसने भी ब्यूरो प्रमुख के रूप में उसे स्वीकार कर लिया।
रत्नेश्वर सिंह ने स्वास्थ्य मंत्रालय में फंसे अपने फाइल को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सुयश मिश्रा को दे दी और सुयश मिश्रा ने रत्नेश्वर सिंह की नजरों में अपनी योग्यता को सिद्ध करने के लिए उस फाइल को बढ़ाने के लिए उदित के साथ मिलकर योजनाएं बनाने लगा। उसने उदित को पूरी तरह से इसी काम में लगा दिया। यहां तक कि भोला भी उस फाइल को लेकर काफी सक्रिय हो गया। लेकिन काफी जोर आजमाइश के बावजूद फाइल को लेकर कोई प्रगति नहीं हो रही थी।
“आप लोगों की कोई औकात ही नहीं है, बस तमगा लेकर घूमते फिर रहे हैं कि मीडिया वाले हैं। एक छोटा सा काम नहीं करा पा रहे हैं, ” अपने चैंबर में बैठे हुये रत्नेश्वर सिंह ने सुयश मिश्रा से कहा। रंजन और उदित भी रत्नेश्वर सिंह के सामने बैठे हुये थे।
“ सर मैं कोशिश कर रहा हूं, ” सुयश मिश्रा ने कहा।
“अब मैं जो कहता हूं वो करिये। अपने रिपोटरों को कहिये कि मंत्रियों के पास जब भी जाये उन्हें फूल दे, ” रत्नेश्वर सिंह ने कहा, “मीडिया का मतलब होता है हर जगह पैठ। इतने दिन से चैनल खोलकर बैठा हुआ हूं लेकिन अभी तक मेरा एक काम नहीं हुआ है। आप सभी लोग बोगस पत्रकार हैं।”
“मंत्री जी से हमारी बात हो चुकी है, लेकिन प्रोब्लम सेक्रेटरी की ओर से हो रहा है। वह फाइल मंत्री जी के पास भेज ही नहीं रहा है, और मंत्री जी अपनी ओर से फाइल मंगवाने से हिचक रहे हैं,” सुयश मिश्रा ने सफाई दी।
“ये सब बेकार की बात है, कोई मंत्री चाहेगा और फाइल उसकी टेबल पर नहीं आएगा ऐसा हो नहीं सकता। आप किसी दूसरे को पढ़ाइएगा। आपलोग कोई काम के नहीं है. मुझे हर हालत में अपने फाइल पर काम चाहिए। आप लोग जा सकते हैं,” रत्नेश्वर सिंह ने झुंझलाते हुये कहा।
रत्नेश्वर सिंह के चैंबर से बाहर निकलने के बाद रंजन अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया, जबकि सुयश मिश्रा और उदित फाइल के संबंध में आगे रणनीति तय करने के लिये एक दरबे में में घुस गये।
“लगता है अंदर किसी गंभीर मसले पर बातचीत हो रही थी,”
नीलेश ने रंजन के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुये पूछा।
इधर- उधर नजर दौड़ाने के बाद रंजन नीलेश की तरफ झुकते हुये कहा, “ सबको दलाली के काम में लगने के लिए कह रहा है, आर्युवैदिक कालेज का मान्यता वाला एक फाइल को स्वास्थ्य मंत्री से पास कराना है। पता नहीं ये मीडिया को क्या समझता है। अपने यहां का एक भी रिपोटर ऐसा नहीं है जो मंत्री से काम करा ले। वैसे भी मीडिया की स्थिति क्या है सब जानते हैं। अब रिपोटरों को मंत्री के पास फूल लेकर जाने के लिए बोल रहा है। रिपोटर रिपोटिंग के लिए जाता है कि फूल लेकर? खैर यह अपना हेडक नहीं है, सुयश मिश्रा समझेगा।”
“सुयश मिश्रा को सख्ती से बोलना चाहिये कि यह उसका काम नहीं है, ” नीलेश ने कहा।
“मालिकों के कहने पर पत्रकार आजकल यही कर रहे हैं, यदि नहीं करेंगे तो नौकरी जाएगी, ” रंजन ने कहा।
“नौकरी आती है जाती है, लेकिन गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता है, ” नीलेश ने कहा।
“सीधी सी बात है यदि आप किसी संस्थान में ऊंचे ओहदे पर बैठे हुये हैं तो मालिक जो चाहेगा आपको वही करना होगा। अब आप उस काम को करने में कितना सक्षम है इसी पर आपकी नौकरी निर्भर करती है, खैर अभी इस बहस में नहीं पड़ना है। मैं इस पचड़े से दूर हूं,” अपने सिर को झटकते हुये रंजन ने कहा।
“आपलोग क्या खुसर फुसर कर रहे हैं?”, नीलेश के बगल में बैठे सुकेश ने पूछा।
“कुछ नहीं। न्यूज एडिटर और ब्यूरो चीफ की अर्हता में यह विधिवित लिख देना चाहिये कि सरकारी स्तर पर मालिकों के कहने पर किसी भी काम को कराने की क्षमता उसमें होनी चाहिये, ” नीलेश ने हंसते हुये कहा।
“और चैनल हेड की अहर्ता क्या होनी चाहिये?”, सुकेश ने पूछा।
“दोनों हाथों से लूट खसोट कर चैनल मालिकों के साथ-साथ अपना घर भरने की योग्यता” नीलेश ने कहा।
46.
तमाम प्रबंधकीय थ्योरी का उद्देश्य विरोधाभाषी शक्तियों को एक दूसरे से पिरोते हुये बेहतर उत्पादन करना है, मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है। लेकिन मीडिया में विरोधाभाषी शक्तियां मानवीय प्रवृति में कार्यशील होती हैं, और इन पर नियंत्रण कर पाना कभी-कभी काफी मुश्किल होता है। प्रबंधकीय जिम्मेदारी यहीं से शुरु होती है।
“मेरा फीड प्रोग्रामिंग के किसी भी आदमी को मत देना, ” भूपेश ने भूरी से कहा। भूपेश मानषी को लगातार एंकर बनाने का प्रयत्न जारी रखे हुये था, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। खासकर सुकेश मानसी को एंकर नहीं बनाने के लिए अड़ा हुआ था। अपने मकदस में सफल न होन पाने की वजह से प्रोग्रामिंग के प्रति उसका रोष बढ़ता ही जा रहा था। प्रोग्रामिंग के लोगों को रास्ते पर लाने के लिए वह एक से एक हथकंडे अपना रहा था।
“ठीक है मैं किसी को नहीं दूंगा,”, भूपेश की तरफ देखते हुये एडिटर भूरी ने कहा। भूरी कमउम्र का नौजवान था और उसका रंग उजले भैंस की तरह था। चैनल की पोलिट्क्स में खासी रुची लेता था। अपने तरीके से चैनल में चलने वाले पावर गेम को समझते हुये वह अपनी स्थिति तय करता था। उसे पता था कि भूपेश चैनल हेड माहुल वीर का साला है और उसे असंतुष्ट करने का मतलब है अपनी प्रगति को रोकना।
“प्रोग्रामिंग वाले दिन भर बैठे रहते हैं, कुछ करते नहीं है। इन सब को तो यहां से चलता कर देना चाहिये,” भूपेश ने भनभनाते हुये कहा, “अब मैं देखता हूं मेरे फीड के बिना ये कैसे प्रोग्राम बनाते हैं। सब पर चर्बी चढ़ी हुई है।”
करीब एक घंटे बाद जब प्रोग्रामिंग के लिए नीलेश ने फीड की डिमांग की तो भूरी टाल-मटोल करने लगा। बार-बार कहने के बावजूद उसने फीड नहीं निकाले।
“क्यों भाई तुम्हारा इरादा क्या है?”, नीलेश ने पूछा।
“किस बारे में ?,” भूरी ने पलट कर सवाल किया।
“अब तुम्हारी शादी की बात तो मैं कर नहीं रहा हूं, नगर निगम के फीड चाहिये, उन्हें एक फोल्डर में निकलो,” नीलेश ने कहा, “और यह मैं अंतिम बार बोल रहा हूं, इसके बाद नहीं बोलूंगा।”
“भूपेश सर ने फीड देने से मना किया है,” भूरी ने कहा।
“दिमाग खराब है क्या तुम्हारा। वो कौन होता है फीड देने से मना करने वाला ? ”, नीलेश झुंझला उठा।
“क्या हुआ?”, बगल में बैठे हुये रंजन ने पूछा।
“बताओ इनको क्या बात है,” भूरी की तरफ देखते हुये नीलेश ने कहा।
“सर भुपेश ने फीड देने से मना किया है और नीलेश सर फीड मांग रहे हैं। अब मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?”, रंजन की तरफ देखते हुये भूरी ने कहा।
“जो नीलेश कह रहे हैं वो करो, ” रंजन ने कहा।
“लेकिन सर भूपेश गुस्सा होंगे, आप मुझे बीच में क्यों फंसा रहे हैं?”, भूरी ने अपनी विवशता जताई।
“तो एक काम करो, भूपेश को बोलो कि वो तुम्हें मेल करे कि उसका फीड किसी को नहीं दिया जाये, ” रंजन ने कहा।
भूरी ने भूपेश से बात की और भूपेश ने उसे मेल कर दिया कि उसकी फीड किसी को न दे। रंजन के कहने पर उस मेल को भूरी ने सुयश मिश्रा के पास फारवर्ड कर दिया। कुछ देर बाद सुकेश और रंजन सुयश मिश्रा के साथ उसके दरबे में बैठे हुये थे। भूपेश भी उनके साथ था।
“आपको पता है कि जो मेल आपने किया है उसके आधार पर आपके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है। रिपोटर जो भी फीड यहां लाता है वह कंपनी की प्रोपर्टी है और आप कंपनी को उसी की प्रोपर्टी का इस्तेमाल करने से रोक रहे हैं, ” सुयश मिश्रा ने भूपेश की तरफ देखते हुये कहा।
“मेरा यह मतलब नहीं था, बात को घुमाइये नहीं ” भूपेश ने हंसते हुये कहा।
“फिर क्या मतलब था आपका,” सुकेश ने पूछा।
“प्रोग्रामिंग के लोग कुछ करते नहीं है, उनको चाहिये की अपने प्रोग्राम के लिए वो खुद फीड लाये,” भूपेश ने कहा।
“इस बात का मूल्यांकन करने का अधिकार आपको किसने दिया कि प्रोग्रामिंग के लोग कुछ करते है या नहीं करते हैं। आपलोग का मूल्यांकन यदि मेशू करने लगे तो? ”, सुकेश ने कहा।
“क्या मतलब?”
“सीधी सी बात है जो आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं है उसमें क्यों मुंह मारते हैं, ”, सुकेश ने कहा।
“मुंह मारने का इनको आदत है क्या? ” ,सुयश मिश्रा ने चुटकी ली।
“आपलोग मेरी ले रहे हैं क्या? ”, भूपेश ने कहा.
“आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आपने आज क्या किया है,” सुयश मिश्रा ने कहा, “यदि बात सही जगह पर पहुंच गई तो फिर मुझे नहीं लगता कि आपको कोई बचा पाएगा। एक तो आपको तौर तरीका भी पता नहीं है काम करने का, और दूसरा….खैर रहने दिजीये….किसलिए आप पंगा कर रहे हैं?…अपने बीट पर ध्यान दीजिये, कुछ अच्छी खबरें लाइये, इधर-उधर किसी को एंकर बनाने से कुछ नहीं होगा, एक बात और है यदि कुछ भी बुरा होता है इस संस्थान का तो समझ लीजिये कि माहुल वीर का ही बुरा होगा क्योंकि आफ्टर आल इसे वही लीड कर रहे हैं। ”
“बाबा, आपने बात को कहां से कहां तक पहुंचा दिया….मैंने तो ऐसा कुछ नहीं सोचा था ,” भूपेश ने कहा।
“अक्ल रहेगा तब ना सोचिएगा, इसलिए न कहते हैं कि खबर किजीये, फिल्ड में जाइये। अभी आपके सामने आपका कैरियर है, यदि आपने इसे अंतिम मुकाम मान रखा है तो फिर आपकी मर्जी.”
“अब आप बहुत बोल रहे हैं, चुप रहिये, आज के बाद कोई शिकायत नहीं मिलेगा मेरा, अब हम समझ गये हमको कैसे काम करना है, ” भूपेश ने मुस्कराते हुये कहा, सुयश मिश्रा की बातों को सुनकर वह पूरी तरह से नरम पड़ गया था।
“चैनल हेड के दुलरउ हैं तो यहां के लोगों के भी दुलरउ बनके रहिये, कहिये त चैनल हेड से भी बात करा दें,” यह कहते हुये सुयश मिश्रा माहुल वीर का नंबर लगाने लगा। भूपेश तुरंत बाहर निकल गया।
“इतना सबकुछ होने के बावजूद इ सुधरेगा नहीं, वैसे आज आपने इसकी खूब बजाई है,” सुकेश की तरफ देखते हुये रंजन ने कहा।
“कुछ दिन तक तो यह शांत जरूर रहेगा, फिर हंगामा करेगा तो देखा जाएगा,” सुकेश ने कहा।
“एक बुरी खबर है, वाक्स न्यूज टीवी के जिस पार्टनर ने हमें लाइसेंस दिया था, वह मुकदमा हार गया है। कंट्री लाइव का प्रसारण कभी भी बंद हो सकता है, ” रंजन ने कहा।
“लोग नये लाइसेंस के लिए ट्राई कर रहे हैं। कुछ चैनल से बात चल भी रही है, ” सुयश मिश्रा ने कहा।
“पिछले एक घंटे से कंट्री लाइव का प्रसारण बंद है, ” दरबे के अंदर प्रवेश करते हुये नीलेश ने कहा,“ पता लगाइये क्या मामला है।”
दरबे में मौजूद सुकेश, रंजन और सुयश मिश्रा एक दूसरे का चेहरा देखने लगे।
to be continued……..