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भयभीत रहते हैं पुरुष, महिला समर्थित कानून से

 

आधी आबादी आज पुरुषों के समकक्ष खड़ी होने के लिये बेताब है। अपने दम-खम और जोश तथा कुछ कर गुजरने की तीव्र इच्छा ने उन्हें घर की चारदिवारी से बाहर तो ला दिया है परन्तु उनके अन्दर की नारी शक्ति को आज भी महिला समर्थित कानून का मोहताज बना दिया है। नित नये कानूनों की बैशाखी के सहारे उन्हें पुरुषों के बराबर ख़ड़े करने की कोशिश हो रही है। महिला शक्ति बनते ये कानून आज पुरुषों को नित नये फंदों में  फसाते नजर आ रहे हैं। पुरुषों की मानें तो,भयभीत रहते हैं वे महिला समर्थित कानून से।

सिक्के के दो पहलू की तरह इस कानून का दूसरा पहलू उन्हें परेशान करता है। ज़िसको टीएमटी में काम करने वाले राज शेखर का कहना है कि जहाँ महिलाओं के सहुलियत के लिये ये कानून बनाये गये हैं वहीं महिलायें अपने आक्रामक अस्त्र के रुप में इनका इस्तेमाल कर रही हैं, जिसमें ब्रह्मास्त्र का काम कर रहा है शादीशुदा महिलाओं एवं उनके मायके वालों की तरफ से दहेज उत्पीड़न का मामला। घरेलू झगड़ों में जहाँ पति-पत्नी के बीच सिर्फ बक-झक होती है और पत्नी यदि रुठ कर मायके चली जाये तो उसकी वापसी दहेज-उत्पीड़न के मामले के साथ ही समझौतों पर टिकी होती है।

राजीव सिन्हा की माने तो आज महिलाओं के कानून का सदुपयोग कम दुरुपयोग ही ज्यादा हो रहा है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं का शोषण नहीं होता है परन्तु कानून को आधार बना कर पुरुषों का ही शोषण ज्यादा होता है। अपने एक मित्र का जिक्र कर वे बताते हैं कि पति-पत्नी के झगड़े ने विकराल रुप ले लिया और केस-मुकदमों में उलझकर उनका पूरा कैरियर ही खत्म हो गया।

एक महिला शिक्षिका  के कथनानुसार उनके विद्यालय में पांच महिला शिक्षिकाएँ एवं एक पुरुष शिक्षक हैं। महिलाओं की बहुलता होने से नियम कानून में हर कदम पर उन्हें सहुलियत चाहिये। शिक्षक महोदय की सख़्ती उन्हें इतनी महंगी पड़ गयी कि उनके उपर सेक्स-उत्पीड़न का मामला दर्ज हो गया। एक ही आरोप-पत्र पर चार महिलाओं के हस्ताक्षर के साथ एक प्रति ने कानूनी रुप ले लिया। इस विवाद पर वे बताती हैं कि सेक्स-उत्पीड़न के कानूनी फंदे के इस्तेमाल का दुरुपयोग स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। एक ही आरोप-पत्र पर चार-चार महिलाओं के हस्ताक्षर हास्यास्पद हैं, क्योंकि सभी महिलाओं का उत्पीड़न एक ही समय में एक ही तरीके से तो नहीं हो सकता । फिर सामुहिक आरोप पत्र के माध्यम से उन शिक्षक की फजीहत का रास्ता पूरी तरह से बनावटी और भरमाने वाला है।

 दिल्ली सुप्रीम-कोर्ट के एक एडवोकेट की माने तो उनके पास महिलाओं के शोषण के बहुत सारे मामले आते रहते हैं। सभी मामलों में आँख बन्द कर भी कार्रवाई की जा सकती है। विभिन्न अण्डर सेक्शन के तहत बहुत सारे मामले बनते हैं परन्तु स्थिति-परिस्थितियों के अनुकूल डॉक्टरी दवाओं के डोज़ की तरह किसमें कितनी दवा देनी है के तर्ज पर धारा निर्धारित करनी पड़ती है। इनके अनुसार 90% रास्ते महिलाओं की तरफ ही जाते हैं सिर्फ 10% में ही कोई पुरुष छुटकारा पा सकता है। प्राथमिक स्तर पर तो वे कहीं से भी अपना बचाव करने में अक्षम होते हैं। जमानत की प्रकिया भी उनकी पेशी के बाद ही स्पष्ट होती है। घरेलू हिंसा, सेक्स-उत्पीड़न, बुरी नजर रखना बलात्कार का मामला, दहेज का मामला, मानसिक शोषण तथा और भी न जाने क्या-क्या…। जहानाबाद में लेक्चरर अरविन्द कुमार का कहना है कि पुरुषों द्वारा सालों से शोषित महिलाएँ आज कानून के दम पर ही तो इतना आगे तक आयीं हैं, अन्यथा पुरुष समाज ने तो उन्हें सदियों से अपनी प्रॉपर्टी ही समझा है। यदि महिला कानून का सहारा उन्हें नहीं मिले तो आज भी वे हाशिए पर ढकेल दी जायें। उनके अनुसार महिलाएँ कानूनी अस्त्र का इस्तमाल अपने बचाव में अवश्य करती हैं परन्तु उनकी पहली जरुरत आक्रमण लगभग नहीं होती है। छोटे-मोटे मामले को भले ही कानूनी सहायता से बड़ा रुप दे दिया जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में पहला आक्रमण पुरुषों की तरफ से ही होता है। इस कानून को तो सिर्फ ढाल की तरह उस आक्रमण को रोकने के लिये अपनाया जाता है।

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6 Comments

  1. Mahila ko barabari ka derja dilane ke liye ya unper ho rahe bastwawik atyachar ko khatm kare kai liye kanoon banaiye ya uski madada lijiye. Aam logo ki tarah nahi ki purush pradhan samaj hai to galati mahila ki hogi hi nahi.

  2. सार्थक पोस्ट ..
    आप महिला होकर भी समभाव का दृष्टिकोण अपनाती है
    यह हर्ष की बात है ..
    मेरी शुभकामनाएँ ….

  3. This article rightly focuses the misuse of laws supporting women. In fact, our culture and civilisation taught us to take side of the weak. Considering this spirit laws were made to protect women from exploitation but as every law is misused in this country. There is a law against corruption, terrorism, communalism, exploitation etc. but all these evils continue to grow. The problem is not the law rather proper implementation of law. Who will check it? Obviously the govt. Our system is not serving the purpose. Hence, there is need to change the syste. Everything will be ok. However, a beautiful piece of writing by Anita Gautam who deserves our all appreciation for drawing our attention to this important aspect of our lives. Thanks.

  4. यह बात बिल्कुल सही है. देश मे हर एक कानून का दुरुपयोग होता है, इस कानून का भी बहुतायत से होता है पर अगर यह कानून ना हो तो फिर महिलाओं पर अत्याचार कई गुना बढ जायेगे. कोई ना कोई तो इसका भुक्तभोगी होता ही है. आखिर महिलाओ पर अत्याचार बहुत बढे होंगे तभी यह कानून बनाया गया होगा.

  5. कानून का इस्तेमाल बचाव या संरक्षण के लिए ही होना चाहिए एवं दुरुपयोग से बचना चाहिए-यही उत्तम है।

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