हार्ड हिट

मुंबई में यूज्ड कांडम और केयरफ्री के बीच भोजन बटोरते बच्चे

तेवरआनलाइन, मुंबई

 मुंबई में एक ओर नाइट क्लबों, डिस्कोथेक व विभिन्न तरह की पार्टियों में पानी की तरह शराब बह रही है, वहीं दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे कूड़े के ढेरों में इस्तेमाल किये गये कांडम और केयरफ्री के बीच पड़े जूठे खाने को पाने के लिए कुत्तों की तरह एक-दूसरों को नोच खसोट रहे हैं। अंधेरी, गोरेगांव, लोखंडवाला, जूहू, बांद्रा, आदर्शनगर,बहरामबाग, माहिम आदि तमाम इलाकों में इस तरह के दृश्य बड़ी सहजता से देखने को मिल जाते हैं।

 बच्चों के अधिकारों के तमाम दावे इस महानगर में बड़ी बेशर्मी से दम तोड़ रहे हैं, इन बच्चों के परिवार वाले भी इसे सहजता से ले रहे हैं। उनके लिए तो बस इतना ही काफी है कि ये बच्चे अपने लिए खुद भोजन अर्जित करने लगे हैं, और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। 

मुंबई के गगनचुंभी रियायसी इमारतों का रखरखाव हाउसिंग को-आपरेटिव सोइसाइटियों द्वारा होता है। इन इमारतों में रहने वाले लोगों का जीवन पूरी तरह से व्यवस्थित है। सुबह-सुबह इन इमारतों से बहुत बड़े पैमाने पर कचड़ा बाहर निकलता है। इस कचड़े को व्यवस्थित तरीके से इमारत के बाहर रखे कचड़ा पेटी में डाला जाता है। रात में फेंके गये भोजन की तलाश में इमारतों के इर्दगिर्द की गंदी बस्तियों में रहने वाले बच्चे सुबह-सुबह इन कचड़ा पेटियों के आसपास गिद्ध की तरह मंडराने लगते हैं। रात का जुठा भोजन और इस्तेमाल किये गये कांडम कचड़ा पेटी तक पहुंचते हुये कब आपस में गडमगड हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। छोटे-छोटे बच्चे भोजन से कांडम को निकालने में पूरी तरह से दक्ष हो चुके हैं। इसके लिए ये बड़े सलीके से लोहे की छोटी-छोटी सलाखों का इस्तेमाल करते हैं।

इनको देखकर यही लगता है कि ये बच्चे कांडम के व्यवहारिक इस्तेमाल के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। कचड़ा पेटी से भोजन बटोरते वक्त ये बच्चे कांडम मिलने पर उसे एक दूसरे पर उछालते हुये अधिक से अधिक भोजने बटोरने की कोशिश करते हैं। भाग्य से अच्छा भोजन मिलने पर उसे तुरंत बटोरकर चट कर जाने की कोशिश में कभी-कभी कांडम में व्याप्त गंदगी भी भोजन के स्वाद के साथ उनके मुंह में घुलमिल जाती है।

सबसे बुरी स्थिति छोटी-छोटी लड़कियों की होती हैं। भोजन बटोरने के दौरान जब उनके सामने कांडम आता है तो उसके आसपास खड़े लड़के उसे भद्दे तरीके से चिढ़ाने लगते हैं, लेकिन पेट की भूख के सामने सब कुछ सहन करते हुये उसे अपने काम जुटे रहने पड़ता है।                      

इन बच्चों की भाषा काफी आक्रमक हैं। बातचीत के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ ये खुल कर गंदी-गंदी गालियों का प्रयोग करते हैं। अच्छा भोजन मिलने पर उसे बटोरने के दौरान कभी-कभी तो मारपीट की भी नौबत आ जाती है। मारपीट का विस्तार होते भी देर नहीं लगती। बच्चों के इस मारपीट में बड़े भी कूद पर पड़ते हैं। बच्चों की माताओं को अक्सर आपस में मारपीट करते हुये देखा जा सकता है।

आठ साल की सोहा गोरेगांव स्थित राममंदिर के पास एक नाले के किनारे बनी खोली में अपनी मां और तीन छोटी बहनों के साथ रहती है। अपनी बहनों के लिए भोजन इंतजाम करने की जिम्मेदारी उसी की है। इस काम को वह पिछले तीन साल से करती आ रही है। इस संबंध में जब उसके मां से बात करने की कोशिश की गई तो उसने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। बार-बार पूछने पर वह आपे से बाहर होकर गालियां निकलाते हुये बोली, ‘लड़की खाना नहीं बटोरेगी तो खाएगी कहां से। तुझे ज्यादा चिंता हो रही है तो इसे अपने साथ ले जा। लेकिन ले जाने के पहले हमलोगों के लिए खाने पीने का इंतजाम करता जा।’ 

इसी तरह आदर्शनगर सिगनल के नजदीक स्थित कचड़ापेटी से नौ साल की रेशमा पिछले कई वर्षों से अपने और अपने परिवार के लिए भोजन बटोर रही है। इस विषय में पूछने पर वह तपाक से बोली, ‘भूखे रहने से अच्छा है कि यहां से खाना उठा लूं।’

कचड़ा पेटी के अलावा लड़कों के लिए खाना बटोरने के और भी कई ठिकाने हैं। शराब के ठेकों के सामने से रात में उन्हें खाने के लिए बहुत कुछ मिल जाता है, ये दूसरी बात है कि इसके लिए उन्हें कुत्तों के झुंड से लोहा लेना पड़ता है। मौका मिलने पर इधर-उधर लुढ़की हुई बीयर की खाली बोतलों पर भी वे हाथ साफ कर देते हैं। लेकिन इन ठिकानों पर लड़कियां जाने से परहेज करती है। उन्हें डर सताता रहता है कि कहीं खाने की तलाश में वह कच्ची उम्र में ही किसी शराबी के हवश की शिकार न हो जाये।  

वैसे मुंबई में छोटे-छोटे बच्चों को मुफ्त भोजन और शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार की ओर से जगह –जगह बालवाड़ी चलाया जा रहा है, लेकिन बालवाड़ी में मिलने वाले भोजन की स्थति कचड़े की पेट्टी में मिलने वाली भोजन से भी बदतर है। बालवाड़ी में अक्सर में घुने हुये चने को उबाल कर बच्चों को दिया जाता है। कभी-कभी तो दो तीन दिन तक यही चना दिया जाता है, जिसमें से बदबू आते रहती है। बच्चे इन बालवाडि़यों में आने के बजाय कचड़े की पेट्टी से भोजन समेटना ज्यादा पसंद करते हैं। मुंबई का चमकीला सभ्य समाज इन बच्चों को कचड़े से भोजन समेटते हर रोज देखता है, लेकिन आपाधापी भरी जिंदगी में थोड़ी देर ठहरकर इन बच्चों के लिए सोचने का वक्त इसके पास नहीं है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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2 Comments

  1. मैं यह खबर सुनकर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हूं। इस देश में मायानगरी की माया बड़ी विचित्र है।यह सोचकर कि यह स्थिति अगर मेरे साथ रही होती तो मैं यहां इंटरनेट नही चला रहा होता, एक करोड़ हारर फिल्मों का डर मेरे अंदर एक साथ मुझे बेहोश होने पर मजबूर कर देगा।

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