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विद्यापीठ’ को लेकर अरविन्द अकेला कल्लू ने जताई ख़ुशी, की निर्माता गोविंदाजी की जमकर तारीफ़

भोजपुरी फिल्मो के चोकलेटी हीरो कहे जाने वाले एक्टर अरविन्द अकेला कल्लू इन दिनों यूपी में फिल्म ‘विद्यापीठ’ की शूटिंग कर रहे है। इस फिल्म को लेकर वे काफी उत्त्साहित है। वही फिल्म के निर्माता गोविंदाजी के साथ फिल्म करके उन्हें बेहद ज्यादा ख़ुशी भी हो रही है। एक खास बातचीत के दौरान अरविन्द अकेला कल्लू ने इस फिल्म में अपने किरदार को लेकर काफी ख़ुशी जताई और साथ ही शूट के दौरान अपने अनुभव को भी शेयर किया।

अरविन्द अकेला कल्लू ने बताया की ” मैंने जब इस फिल्म की कहानी सुनी थी तब से ही मुझे काफी उत्त्साह था मन में लेकिन अब जब मैं फिल्म के सेट पर फिल्म की शूटिंग के पलो को महसूस कर रहा हूँ तो मुझे और भी ज्यादा मजा आ रहा है। फिल्म के सेट पर काम करने का उत्त्साह और लोगो में जोश देखकर मेरे अंदर जोश दोगुना हो गया है और मैं अब इस फिल्म की शूटिंग को लेकर हर पल बहुत खुश रहता हूँ क्योंकि हर एक सीन में उत्त्साह बढ़ता जा रहा है। फिल्म की पूरी टीम काफी मेहनत से शूट कर रही है। और यह एक अच्छा सिनेमा बनकर तैयार होगा। ”

बात करे फिल्म ‘विद्यापीठ’ की तो फिल्म की शूटिंग यूपी के बलरामपुर में की जा रही है। फिल्म के निर्माता निर्माता गोविंदाजी ( रंजीत जायसवाल ) हैं। और निर्देशन योगेश राज मिश्रा कर रहे है।

फिल्म के कलाकार है अरविंद अकेला कल्लू ,आयुशी दत्त तिवारी , श्वेता माहरा, कृष्ण कुमार , विनीत विशाल, समर्थ चतुर्वेदी,मनोज टाइगर, जय शंकर पांडेय ,इंडियन फिल्म एकेडमी के 18 स्टूडेंट्स भी इस फिल्म में नजर आएँगे। जिनमे से कुछ मुख्य भूमिका में नजर आएँगे। फिल्म के कोरिओग्राफर लकी विश्वकर्मा है। फिल्म का आर्ट देख रहे है सिकंदर, कॉस्टूयम कविता- सुनीता, फिल्म का लेखन मनोज पांडेय ने किया है और फिल्म के पीआरओ संजय भूषण पटियाला है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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