विरोध प्रदर्शनों की चपेट में ब्राजील

0
40
लंबे समय से दबी हुई विरोध की चिंगारी को छिटकाने के लिए एक छोटी सी घटना काफी होती है। इन दिनों ब्राजील में लाखों लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। वैसे तो प्रदर्शन की शुरुआत पिछले दिनों सार्वजनिक परिवहन के किराये में हुई बढ़ोतरी को लेकर साओ पाउलो से हुई, लेकिन देखते- देखते पूरे ब्राजील को इसने अपनी चपेट में ले लिया। फिलहाल सार्वजनिक परिवहन में किराये वृद्धि की वापसी को घोषणा तो की जा चुकी है लेकिन प्रदर्शनों का सिलसिला अभी थमा नहीं है। अभी भी लोग सड़कों पर जमे हुए हैं और ब्राजील में आमूलचूल परिवर्तन की मांग कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों की तपिश को देखते हुये राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ ने न सिर्फ अगले सप्ताह होने वाली अपनी जापान यात्रा को रद्द कर दिया है बल्कि ब्राजील में ताबड़तोड़ सुधारों की भी घोषणा की है। हालांकि इससे लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ है। ब्राजील के मुख्तलफ शहरों के चौक-चौराहों पर अभी प्रदर्शनकारी डटे हुये हैं। इन्हें काबू में करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग भी करने पड़ रहे हैं। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक ब्राजील में हिंसा के इस नये दौर में दो लोगों की मौत हो गई है। प्रदर्शनकारियों द्वारा व्यापक पैमाने पर पूरे ब्राजील में तोड़-फोड़ और आगजनी की जा रही है। लोगों की उग्रता को देखकर राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ के नीति निर्धारकों और अधिकारियों के हाथ-पांव फूले हुये हैं। राजधानी ब्रासीलिया में विदेश मंत्रालय के गेट के बाहर व्यापाक पैमाने पर आगजनी करके प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि देश अभी एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। जरा सी चूक ब्राजील को हिंसा के एक लंबे दौर में धकेल सकती है।
विरोध की  पृष्ठभूमि
भले ही ब्राजील में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला सार्वजनिक परिवहन के किराये में वृद्धि को लेकर शुरू हुआ हो, लेकिन इसकी जड़ें वहां की सार्वजनिक सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार में निहित है, खासकर स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर। प्रदर्शनकारी अगले साल होने वाले फुटबॉल विश्व कप पर हो रहे भारी खर्च और भ्रष्टाचार से बेहद नाराज हैं। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ की सरकार फुटबॉल विश्व कप की तैयारी में बेतहाशा खर्च कर रही है, जबकि इन पैसों का इस्तेमाल स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए किया जाना चाहिए। ब्राजील में स्वास्थ्य और शिक्षा की हालत बदतर हो चुकी है और सरकार खेल के आयोजनों पर पानी की तरह पैसा बहा रही है। हालांकि राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ यही कह रही हैं कि अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में ब्राजील का हमेशा ही स्वागत किया जाता है और फुटबॉल विश्व कप का खर्च विश्वकप को प्रायोजित करने वाली कंपियनां उठा रही हैं न कि सरकार। लेकिन रोसेफ का यह तर्क लोगों के गले नहीं उतर रहा है। लोग न सिर्फ  सरकार पर फिजूलखर्ची का आरोप लगा रहे हैं बल्कि उनका यह भी कहना है कि ब्राजील में फुटबॉल विश्वकप के बहाने अधिकारियों और नेताओं का एक तबका निर्माण कंपनियों के साथ मिलकर व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक धन की लूट-खसोट में लगा हुआ है। राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ भी अप्रत्यक्ष रूप से इन्हें संरक्षण प्रदान कर रही हैं।
नेता का अभाव
इस दौर में मुख्तलफ मुल्कों में जारी तहरीरों की एक खासियत यह है कि व्यापक पैमाने पर सड़कों पर निकलने वाले लोगों का कोई एक नेता कभी नहीं रहा, जिसके पीछे वे चल सकें। चाहे तुर्की की तहरीर हो या फिर यूनान की। लोग स्वत:स्फूर्त रूप से आंदोलित होकर प्रदर्शनों में हिस्सा लेते रहे हैं। ब्राजील में भी कमोबेश स्थिति ऐसी ही है। प्रदर्शनकारियों का कोई नेता नहीं है। यही वजह है कि सरकार को प्रदर्शनकारियों से बात करने में परेशानी हो रही है और प्रदर्शनकारी पूरी तरह से बेकाबू होकर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं और दुकानों को लूट रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक ब्राजील में करीब तीन लाख लोग सड़कों पर उतरे हुये हैं। राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ शुरू से प्रदर्शनकारियों से बात करने की कोशिश करती रहीं लेकिन प्रदर्शनकारियों के बीच से कोई भी नेता सामने नहीं आया। इतना ही नहीं प्रदर्शन की उग्रता भी दिन पर दिन बढ़ती गई है। अब तो आलम यह है कि ब्राजील के लगभग सभी प्रमुख शहरों में प्रदर्शनकारी प्रचंड रूप धारण किये हुये हैं। जहां-तहां पुलिस के साथ भिड़ंत भी हो रही है। आंसू गैस और गोलियां का इस्तेमाल कर पुलिस उन्हें थोड़ी देर के लिए खदेड़ भी देती है तो वे फिर किसी और जगह पर जाकर हंगामा करने लगते हैं। कहा जा सकता है कि नेता के अभाव में प्रदर्शन का स्वरूप और भी उग्र हो गया है।
सोशल साइट्स की भूमिका
ब्राजील में लोगों के गुस्से को मुखर अभिव्यक्ति देने में सोशल साइट भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। लोग अपना विरोध जताने के लिए सोशल साइट्स का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। सोशल साइट्स पर साफ तौर पर कहा जा रहा है कि अब मामला सिर्फ सार्वजनिक परिवहन में किराये वृद्धि तक ही सीमित नहीं है। एक आंदोलन की शुरुआत होनी थी, वह हो चुकी है। अब इसके लक्ष्य काफी व्यापक हो गये हैं। असल सवाल शिक्षा और स्वास्थ्य का है। भ्रष्टाचार ने भी लोगों को त्रस्त कर रखा है। जरूरत है एक ही बार में सारे मसलों को निपटाने की। और जब तक इन मसलों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है तब तक इस आंदोलन को चलाते रहने की जरूरत है। विश्व फुटबॉल कप के आयोजन की तैयारियों को लेकर भी सोशल साइट्स पर जमकर जहर उगले जा रहे हैं। सोशल साइट्स पर लोगों की विरोध प्रतिक्रिया को देखकर पूरा सरकारी अमला हतप्रभ है। इस मुसीबत से निपटने का उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। यदि वे सोशल साइट्स पर  रोक लगाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें डर है कि प्रदर्शन और उग्र न हो जाये।
रोसेफ की सुधारवादी घोषणाएं
पिछले कुछ दिनों से ब्राजील में जारी विरोध प्रदर्शनों का असर दिखने लगा है। कैबिनेट के साथ गहन चिंतन बैठक के बाद राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ लोगों के गुस्सा को कम करने के लिए ब्राजील में सुधारवादी कार्यक्रमों को लागू करने पर सहमत हो गई हैं। अब तक उनका ध्यान पूरी तरह से विश्व फुटबॉल कप और ओलंपिक की तैयारी में लगा हुआ था, लेकिन अब उनकी समझ में यह बात आ गई है कि लोग तात्कालिक रूप से इन खेलों पर किये जा रहे खर्चे को लेकर आपे से बाहर हैं। खेलों का सफल आयोजन करके दुुनिया में अपनी धाक जमाने के बजाय वे अपने जीवन स्तर पर सुधार चाहते हैं। लोगों के मनोविज्ञान को भांपते हुये राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ ने घोषणा की है कि सार्वजनिक परिवहन के लिए नई योजना बनाएंगी और तेल की सारी रॉयल्टी का इस्तेमाल शिक्षा के लिए किया जाएगा। साथ ही देश की स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए विदेशों से हजारों डॉक्टरों की भर्ती की जाएगी। टीवी के माध्यम से अवाम को संबोधित करते हुये उन्होंने जोर देते हुये कहा है कि वह चाहती हैं कि सार्वजनिक संस्थाएं ज्यादा पारदर्शी बनें और गलत बातों को ज्यादा से ज्यादा रोकें। वह कभी भी करदाताओं के पैसे को इस पर खर्च नहीं करने देंगी, वह भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जरूरी क्षेत्रों की कीमत पर। राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ अपने लहजे से यह जताने की कोशिश कर रही हैं कि सैद्धांतिक तौर पर वह भी प्रदर्शनकारियों के साथ हैं।
करवट लेता इतिहास
रोसेफ की सुधारवादी घोषणाओं को प्रदर्शनकारी फतह के तौर पर देख रहे हैं। इसके बावजूद अभी वे मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं हंै। अब प्रदर्शनकारी ब्राजील में भ्रष्ट नेताओं पर सामान्य न्यायालयों में मुकदमा चलाने की मांग कर रहे हैं। ब्राजील में नेताओं को विशेष दर्जा हासिल है, जिसकी वजह से वे सार्वजनिक न्यायालय की जद से बाहर हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्रारंभिक चरण में मिली सफलता की वजह से प्रदर्शनकारियों की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है। ब्राजील के इतिहास पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल अब लोग इस आंदोलन को अपने मुकाम पर पहुंचाना चाहते हैं। भ्रष्ट नेताओं की फौज ब्राजील के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है। इस तहरीर के दौरान वे भ्रष्ट नेताओं को पूरी तरह से काबू में करने की जुगत बैठा रहे हैं। देखा जाये तो  साल 1992 के बाद से हालिया विरोध प्रदर्शन सबसे बड़ा है। 1992 में  तत्कालीन राष्ट्रपति फर्नांडो कोलोर डे मेलो पर महाभियोग की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतरे थे। इस बार स्वास्थ्य, शिक्षा और भ्रष्टाचार का मुद्दा केंद्र में है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here