65 में रिटायरमेंट— कितना जायज ?

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मुकेश कुमार सिन्हा, तेवरआनलाईन

एक तरफ बिहार में रोजगार उत्पन्न करने के लिए माथा पच्ची की जा रही है .दूसरी ओर रिटायरमेंट की उम्र सीमा बढ़ाई जा रही है. हाल ही में मेडिकल कालेज के शिक्षकों को सरकार ने ऐसा ही एक तोहफा दिया है. उनकी रिटायरमेंट की उम्र सीमा 62 वर्ष से बढ़ा कर 65वर्ष कर दी गई है. तर्क कुछ ऐसा है कि यह चिकित्सा शिक्षा सेवा से जुड़े डाक्टरों की पुरानी मांग थी. सरकार के इस फैसले से लगभग 12 सौ डाक्टरों को लाभ मिलेगा. कहा यह भी गया कि यह जरुरी था क्योंकि अगर ऐसा नही होता तो कई कालेजों में शिक्षकों की अचानक इतनी अधिक कमी हो जाती कि वहां की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती थी. ऐसे में यह फैसला कालेजों को भी राहत देने वाला है . लेकिन यह सवाल तो बनता ही है कि इस तरह की व्यवस्था कितना और कबतक कारगर रहेगी. क्यों नई बहालियों से बच रही है सरकार. क्यों नए पास आउट और युवा डाक्टरों की हकमारी कर रही है सरकार.जबकि रिटायरमेंट के बाद डाकटरों को पेशनलाभ तो मिलता ही है.साथ में ऐसे डाक्टरों को खुल कर प्राइवेट प्रैक्टिस करने की छूट भी मिल जाती. ऐसे अनुभवी और वरिष्ठ डाक्टरों की आमदनी भी प्रभावित नहीं होती और युवा एवं नए डाक्टरों को रोजागार भी मिल जाता .साथ ही कुछ दिनों और महीनों तक वरिष्ठ डाक्टरों के साथ काम करने का अनुभव भी इन्हें हासिल हो जाता .और तो और सरकार के हिस्से कुछ और नौकरी देने का क्रेडिट भी जाता .लेकिन एक अदूरदर्शी निर्णय के तहत ऐसा  किया गया जिससे न केवल सरकार की अदूरदर्शिता लोगों के सामने आई बल्कि युवा और बेरोजगार डाक्टरों को तीन सालों के लिए रोजगार से दूर कर दिया गया. सरकार का यह निर्णय कितना सही है  इस पर आप अपनी सीधी प्रतिक्रिया दे सकते है.

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