सम्पादकीय पड़ताल

काटजू के बयान पर बिहार सरकार की बौखलाहट

हर हमेशा विवादों में रहने वाले और अपने नीतीश विरोधी बयानों की बजह से जस्टिस काटजू पिछले कई दफा बिहार की मीडिया के लिए खबर बनते रहे हैं। जब कभी उन्हें मौका मिलता वे नीतीश के सुशासन पर सवाल खड़े करने से बाज नहीं आते। किसी की आलोचना करें ना करे पर नीतीश उनके सॉफ्ट टारगेट होते। पिछले कुछ दिनों से अपनी बयानबाजी को लेकर लोगों की नाराजगी झेल रहे भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू के खिलाफ  भाजपा नेता अरुण जेटली के बाद अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मोर्चा खोल दिया है। आमतौर पर शांत रहने वाले और हर बात को मुस्करा कर कहने वाले नीतीश कुमार का धैर्य जस्टिस काटजू के मामले में जवाब दे गया है। जस्टिस काटजू भी पिछले कुछ दिनों से नीतीश सरकार के खिलाफ लगातार टिप्पणी कर रहे हैं। बिहार में मीडिया को बंधक बनाये जाने के मामले को काटजू ने न सिर्फ पटना में आयोजित एक शैक्षणिक कार्यक्रम में उठाया, बल्कि इसकी जांच के लिए उन्होंने राजीव रंजन नाग के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी का भी गठन कर दिया। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मीडिया को अपने इशारे पर नचाने के लिए बिहार सरकार को पूरी तरह से कठघरे में खड़ा किया है। इस रिपोर्ट में बिहार सरकार की विज्ञापन नीति की जमकर लानत-मलामत की गई है। रिपोर्ट में बिहार की मौजूदा स्थिति की तुलना अपातकाल से की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के तमाम समाचार पत्र अब सरकार के मुखपत्र के तौर पर काम कर रहे हैं।
इस रिपोर्ट को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर हंगामा मचा हुआ है। राष्ट्रीय मीडिया भी इस रिपोर्ट को खासा महत्व दे रही है। यहां तक कि न्यूज चैनलों में भी इस रिपोर्ट को लेकर विशेषज्ञों के पैनल बहस मुबाहिसा कर रहे हैं। यदि बिहार के सरकारी नुमाइंदों को छोड़ दिया जाये तो इन बहस मुबाहिसों में भाग लेने वाले तमाम प्रतिनिधि इस बात को लेकर चिंता जता रहे हैं कि वाकई में बिहार में मीडिया स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रही है। इन बहसों में बिहार में पत्रकारिता की स्थिति परत दर परत खुल रही है और देश भर में यह संदेश जा रहा है कि बिहार का विकास सिर्फ अखबारों में ही है। वास्तविक स्तर पर बिहार आज भी वहीं खड़ा है, जहां पहले था। जांच कमेटी की रिपोर्ट नीतीश कुमार की अब तक बनी छवि को पूरी तरह से कागजी करार दे रही है और शायद यही वजह है कि मनमोहक मुस्कान बिखेरकर अपनी बात कहने वाले नीतीश कुमार स्वभाविक रूप से न चाह कर भी आग बबूला हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने बिहार विधानसभा में काटजू की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा है काटजू ने सीमा रेखा का उल्लंघन किया है और बिना किसी आधार के मुझे निशाना बनाया है। नीतीश कुमार ने जस्टिस काटजू के नजरिए की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी रिपोर्ट बिहार सरकार की छवि को खराब करने के उद्देश्य से तैयार की गई है। विधानसभा में नीतीश कुमार ने कहा है, “काटजू ने राज्य के बारे में हर तरह की बात की और खासकर मेरे बारे में। मैं अब तक चुप रहा क्योंकि मेरी आदत किसी ऐसे अधिकारी के साथ विवाद में पड़ने की नहीं है, जो अर्ध न्यायिक सत्ता का सुख भोग रहा हो। लेकिन हर बात की कोई हद होती है। पहले तो आप बयान जारी करते हैं फिर जांच बिठाते हैं। इसके बाद जब जांच समिति रिपोर्ट सौंपती है तो उसे प्रेस काउंसिल से मंजूरी मिले बिना अपनी ईमेल आईडी से लीक कर देते हैं। आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आप देश के जाने-माने न्यायविद् जस्टिस कैलाश काटजू के पोते हैं और मैं एक सामान्य वैद्य का बेटा हूं। यह किस तरह का न्याय है?”
बिहार की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले जानकारों का कहना है कि अब नीतीश कुमार पूरी तरह से अपने तथाकथित बड़े भाई लालू यादव की शैली अख्तियार कर रहे हैं। चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू प्रसाद कहा करते थे कि उन्हें इसलिए परेशान किया जा रहा है क्योंकि वह गरीब के बेटे हैं। उनके साथ अन्याय हो रहा है। अब नीतीश कुमार के होठों पर भी यही जुमला दौड़ रहा है। बेहतर होता नीतीश कुमार तथ्यों के आधार पर जस्टिस काटजू की रिपोर्ट की धज्जियां उड़ाते। इसके बजाय वह लालू की तरह लोगों को इमोशनल करने की कोशिश कर रहे हैं। मजे की बात है कि इतने पर ही नहीं रुक रहे हैं, दो कदम आगे बढ़ कर वह धमकी भरे शब्दों में कह रहे हैं कि ‘काटजू ने गलत नंबर डायल किया है’ तथा ‘कौन कितना पानी में है मैं सब जानता हूं और उनकी भी पोल खोल सकता हूं’। जानकारों का कहना है कि इस मसले पर नीतीश कुमार का पूरा अंदाज लालू जैसा ही हो गया है। नीतीश कुमार की बौखलाहट कहीं न कहीं नाग कमेटी की रिपोर्ट की सच्चाई की ही तस्दीक कर रही है। साथ ही कहीं अगर उनकी बातों को धमकी की तरह न भी लिया जाये तो भी यह एक ‘इमोशनल ड्रामा’ से ज्यादा कुछ नहीं था। उन्हें इस बात पर खासी अपत्ति थी कि उन्हें धनानंद बोला गया। ज्ञातव्य हो कि उस समय जस्टिस काटजू का वक्त्व्य हर किसी की समझ से परे था क्योंकि तब वे किसी शिक्षा कार्यक्रम में आकर बिहार सरकार की आलोचना कर रहे थे, जो पूरी तरह से उनका व्यक्तिगत आमंत्रण था। अत: वह माहौल बहुत कुछ ऐसा था मानों ‘हसुएं की शादी में खुरपी का गीत’। पर बिहार विधान सभा में माननीय मुख्य मंत्री की बौखलाहट भी बहुत कुछ उसी तरह की कहानी बयां कर रही थी। उनका इस बात पर बार बार जोर देना बिल्कुल बचकाना लग रहा था कि काटजू मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुएं हैं, जो मैं नहीं हूं। अब भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में चांदी का चम्मच लेकर जनम लेने वाले सत्ता की कुर्सी पर भले बैठ सकते हैं, पर देश में न्यायाधीश की कुर्सी का कोई शॉर्टकट नहीं है।

बहरहाल बिहार सरकार और नीतीश की इस बयानी लड़ाई का नतीजा जो भी निकले पर बिहार के मुख्यमंत्री का इस तरह सत्ता-प्रतिपक्ष को जवाब देने के बहाने जस्टिस काटजू पर किया गया प्रहार इतना जरूर बता गया कि बड़े भाई के आदर्शों को अपनाने की कवायद में छोटे भाई भी पीछे नहीं हैं।

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