लिटरेचर लव
मुझे है यक़ीं , तेरे प्यार पे (कविता)
उत्तम पाल.
मुझे है यक़ीं , तेरे प्यार पे ,
ये दिल है अब तो , खुमार पे।
तुझे भूलना मुमक़िन नहीं ,
मेरा इश्क़ है , इंतज़ार पे।
तुम ग़ैर हो , मुझे है पता ,
मुझे फ़क्र है , एतवार पे।
तुम दूर हो , पर पास हो ,
मुझे नाज़ है , निसार पे।
तुम जाओ ना, मुझ्र छोड़ कर ,
रुक जाओ ना , इनकार पे।
कुछ तो कहो , जानेवाफा
क्यूँ चुप हो तुम मेरे प्यार पे।
मैं कुछ भी हूँ , बस तेरा हूँ ,
तेरी जीत है , मेरे हार पे ,
मेरे हमनफस तेरा शुक्रिया ,
तुम बजते हो , मेरे तार पे।
अब कह भी दो जो , कहना है ,
क्यूँ चल रहा हूँ , मैं खार पे।
तुम्हे नींद सी , अब आ गई ,
मुझे सोने दो , तलवार पे।
लिखता हूँ , बस तेरे लिए ,
ये क़लम हमेशा है धार पे।
तेरी हर हंसी मुझे प्यारी है ,
दे दो हंसी, ये उधार पे।
तुम दो सदा मुझे जाने जां।
मै दौड़ आऊं , पुकार पे।