अनमोल जीवन को खत्म करते युवा

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सपने देखना और उनपर अमल करना आज के युवाओं में इसकी होड़ लगी हुयी है। आज की शिक्षा प्रणाली जैसी भी हो परन्तु आज के युवा उसे सिर्फ और सिर्फ धनोपार्जन  का जरिया मानकर अपना रहे हैं। शिक्षा को रोटी  से जोड़कर पहले भी देखा जाता था पर ज्ञान प्राप्ति भी उनका एक उद्देश्य रहता था । दूसरों की चमचमाती जिदंगी को युवा आज अपनी प्रेरणा बना अपने सपनों को पूरा करने के लिये गांवों कस्बों एवं छोटे शहरों से तेजी से राजधानी का रुख कर रहें हैं। बड़े-बड़े सपने देखने एवं बड़ी बड़ी बातें करने वाले ये युवा क्षणिक समस्याओं को भी नहीं झेल पाते और नतीजा होता है असमय मौत तथा परिवार के लिये असहनीय दु:ख और जीवन भर के अफसोस का । पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं ने  राजधानी वासियों  को झकझोर कर रख दिया है। साल 2011 के जनवरी से शुरु होने वाले आत्महत्या के सिलसिलेवार घटनाओं पर लगाम लगने का नाम ही नहीं ले रहा है। पीएमसीएच के छात्र सन्नी, आईआईटी की छात्रा सविया येलाव्रती,कोचिंग की छात्रा रश्मि, लॉज के छात्र दयानंद ,साइंस कॉलेज के पूर्व छात्र रॉकी ,आलमगंज का राकेश या हालिया पीयू के जैक्सन हॉस्टल के छात्र अमृतराज ये तो कुछ नाम अखबार की सुर्खियों के हैं, अन्यथा यह फेहरिस्त और लंबी हो सकती है। सभी ने अपनी इहलीला समाप्त करने के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल भले ही किया हो परन्तु नतीजा एक ही निकला, अकाल मौत ।

पटना में पीयू के जैक्सन हॉस्टल के छात्रावास में जिस तरह से एक छात्र अमृतराज की लाश दो दिनों तक फंदे पर झूलती रहीं उससे कोई भी व्यक्ति सकते में आ सकता हैं। डिप्रेशन का हवाला देकर संबंधित संस्था अपना पल्ला झाड़ लेती है पर उस परिवार की तकलीफ का अनुमान लगाना अत्यंत मुश्किल है जिसने अपनों को खोया है।  तेजी से बढ़ती इस तरह की घटनाओं के मूल में घोर निराशा , डिप्रेशन , लाचारी, बीमारी ,अभिभावकों के सपने और इन सब से ज्यादा आर्थिक रुप से उन्नत होने के निरर्थक प्रयासों को माना जा सकता है। चौतरफा अंधेरों और अत्यंत निराशा में घिरकर युवा ऐसे कदम उठा रहे हैं।  कानूनी किताब में आत्महत्या एक जुर्म है पर यही एक ऐसा अपराध है जिसमें सफल हो जाने पर कोई सजा नहीं हो सकती , असफलता में ही सजा मिल सकती है । शायद इसीलिये आत्महत्या के जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, मसलन बहुमंजिली इमारतों से छलांग लगाना , पंखे से लटककर अपनी जान देना सभी अत्यंत विभत्स हैं एवं गुपचुप तरीके से असानी से अपनाये जा सकते हैं।

हर समस्या अपने साथ समाधान भी रखती है ,कारण और निवारण सभी जगह हैं।  प्रत्येक परिस्थियों में मानव के बहुमूल्य जीवन की रक्षा का प्रयास होना चाहिये। हमारे थोड़े से प्रयासों और अच्छे संस्कारों से इतनी बड़ी मानवीय क्षति को खत्म भले न किया जाये पर कम अवश्य किया जा सकता है। जरुरत है इन्हें मनोवैज्ञानिक रुप से  मजबूत  बनाने की । बच्चों में शिक्षा के व्यवसायिक दबाव को कम करना, क्षमता से अधिक के प्रदर्शन की उम्मीद न करना , अच्छे परिणामों पर प्रोत्साहन की तरह खराब परिणामों पर भयभीत और शर्मिंदा  न होने के लिये प्रेरित करना। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को उनकी पसंद की पढाई एवं विषय चुनने की इजाजत देनी होगी तथा दूसरों की देखा देखी न कर अपने बच्चे की ग्रहण क्षमता को भी परखना होगा ।

शिक्षण संस्थानों को भी अपनी जिम्मेवारियों को समझना होगा तथा पढ़ाई के साथ साथ मनोरंजन की भी समुचित व्यवस्था करनी होगी । साथ ही समय-समय पर मनोचिकित्सकों से विद्यार्थियों के मनोस्थिति की जांच करा कर उन्हें डिप्रेशन से बाहर निकालने का सार्थक प्रयास  भी करना होगा ।

7 COMMENTS

  1. Impressionable minds need proper care and emotional security otherwise fatal results may appear before us.

  2. ye ghatnay samaj ke liy sarmnaak hai.lekin jo samaj itna bhautikvadi hai ,dikhawa pasand hai waha aisi ghatna hona lajami hai.jo jindagi ke daur me aage nikal gay unhe en ghatnao par vichar karna chahiy….

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