उन्मुक्त चंद: क्या ‘भारतीय पीटरसन’ का जन्म हो चुका है ?

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उन्मुक्त
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मनीष शर्मा, नई दिल्ली

पहली बार उन्मुक्त चंद की बल्लेबाजी को ध्यान से देखा..(ये मेरी गलती है)..लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आपाधापी और मैचों का भारतीयसमयानुसर सुबह जल्द शुरू होना इसकी वजह रही (ये मैं बहाना नहीं बना रहा हूं, ये मेरी गलती है)…बहरहाल उन्मुक्त चंद की बल्लेबाजी को देखने के बाद तुरंत ही जो पहली बात मेरे मन में आई और मेरा भरोसा और ज्यादा मजबूत हुआ कि बहुत ही मासूम, विनम्र और क्यूट दिखने वाले बल्लेबाज द्रविड़ की तरह डिफेंसिव नहीं होते.. नौवें ओवर की आखिरी गेंद पर लांग ऑफ के ऊपर से लगाया गया छक्का उन्मुक्त के साहस, टेम्प्रामेंट, दबाव में खेलने की क्षमता …और भारत क्रिकेट की अगली पीढ़ी की दस्तक, तेवरों और भारतीय क्रिकेट के भविष्य को साफ बयां करता है..उन्मुक्त चंद एक कॉम्पैक्ट (ठोस) बल्लेबाज दिखाई पड़ते हैं..उनकी शैली को देखते हुए उनकी तकनीक में कोई दोष नहीं निकाला जा सकता और उनकी तकनीक उनकी शैली के एकदम मुफीद और एक-दूसरे की पूरक है…मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उनके जैसे कट शॉट सीनियर टीम इंडिया में शामिल कई बल्लेबाज नहीं खेलते…प्वाइंट के ऊपर से गेंद को सीमापार भेजना उनकी ताकत है..उनके ड्राइव भी बहुत अच्छे हैं…उनके फुटवर्क पर अभी तक कोई सवाल नहीं किया जा सकता..उन्मुक्त जब भी सीनियर टीम इंडिया की पारी की शुरुआत करेंगे, तो वो ओपनिंग में एक नया फ्लेवर और ताजगी लेकर आएंगे..एक अलग आकर्षण लेकर आएंगे…सुरक्षा और आक्रमण का मिश्रण लेकर आएंगे..उन्मुक्त का एक्स फैक्टर ये है कि उनकी शैली ऐसी है कि वो भविष्य में सीनियर टीम इंडिया में मध्यक्रम में भी फिट हो सकते हैं…हालांकि उन्हें जहां आनंद मिले, उन्हें उस क्रम पर खेलना चाहिए..लेकिन मुझे लगता है कि वो मध्यक्रम में ज्यादा सफल रहेंगे और अपना ज्यादा विकास कर सकेंगे..(मैं गलत भी हो सकता हूं)..उनकी बल्लेबाजी को देखकर ये लगता है कि मैं भारतीय पीटरसन को जवान होते देख रहा हूं..और उनमें ऐसा बनने के लक्षण हैं…उन्मुक्त चंद की यहां तक की सफलता के लिए उनका परिवार बहुत ही बधाई के पात्र हैं..वो एक पढ़े-लिखे परिवार से आते हैं…उनके चाचा, जो एक राष्ट्रीय अखबार के संपादक हैं, का उन्मुक्त के विकास (व्यक्तित्व, खेल और सफलता) में बहुत ज्यादा योगदान रहा है..मैं ये बेहतर ढंग से समझ सकता हूं कि 19 साल की उम्र तक यहां तक पहुंचने में मार्गदर्शन और परिवार का त्याग, योगदान कितना ज्याद अहम होता है..अंडर-19 के मंच का उन्होंने सर्वश्रेष्ठ ढंग से इस्तेमाल किया है..बहरहाल अंडर-19 सबकुछ नहीं है..(सभी जानते हैं कि रितिंदर सिंह सोढ़ी कहां हैं..और भी कई बड़ी प्रतिभाएं खत्म हो गईं)

लेकिन ये महज शुरुआत भर है..अब उनकी नजर अगले रणजी सेशन और भारत ए (उनका चयन हो चुका है) पर होनी चाहिए…मुझे लगता है कि उन्मुक्त को यहां से बड़ी पारियों खेलने पर काम करना चाहिए…उनका लक्ष्य इस सेशन में रणजी, दिलीप ट्रॉफी में दोहरा शतक बनाने पर होना चाहिए..अगर वो कामयाब रहते हैं, तो मुझे बहुत ज्यादा भरोसा है कि उनके लिए बहुत कुछ बदल जाएगा..लेकिन इसके लिए लक्ष्य जरूरी हैं…काम करते रहना जरूरी है..कोचों से बात करते रहना जरूरी है..परिवार का मार्गदर्शन जरूरी है…मुझे ये भी भरोसा है कि वो करेंगे..!

(मनीष शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं के साथसाथ बेहतर खिलाड़ी भी हैं। इन दिनों महुआ न्यूज में बातौर खेल संपादक खेल की वृहत दुनिया पर पैनी नजर रखे हुये हैं। )

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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