काले कागज़ पे काली स्याही असर क्यों छोड़े !(कविता)
हज़ारों अर्जियों पड़ी हैं उनके मेज़ पर कब से
तेरे अर्जी की दाखिली का वक़्त कल ही आएगा..!
खड़े रहो तब-तलक, बनो कतार का हिस्सा..
थक के आज नहीं कल, दम निकल ही जाएगा..!
लाला बनो तो लाठी मिले ,गांधी बनो तो बन्दूक..!
सच के हश्र को देख यहाँ, मैं आम आदमी मूक…!!
किसी गाँव में बिजली की दरकार होगी..रहे!
मिट्टी की झोपड़ियों में दरार होगी..रहे!!
तेरी नियती है मौत..तू गरीब जो ठहरा !
भले गुलशन लूटेरों की गुलज़ार होगी..रहे!!
यहां एक इंसान रोटी की जुगत में,
पुलिस की गोलियों में भुनता रहे..!
और लाखों पढ़े-लिखो के बीच भी,
साला !! अंगूठा छाप चुनता रहे..!
जनता के खर्चे पर चर्चे का चोंचला हो..!
खुद के लिए बंगला और मेरे लिए घोंसला हो..!
चुनाव का मौसम.. और पंचवर्षीय योजना
एक ही बात है…!
गड्ढे को भर के.. फिर उसी को खोदना
एक ही बात है…!
जेपी का जन्मदिन एक लूटेरा मनाता है..
बापू की ऐनक अब मुन्ना लगाता है..
शहरों में वोट पर नोट पडा भारी..
गाँव में तो ऊंगली ही काट दी हमारी.
प्रशासन और शासन का गठजोड़ है !
जनता पिस रही है..
पत्रकारिता अथक..! खूब..!
कलम घिस रही है.
लूट का दौर है
कोई भी कसर क्यों छोड़े?
काले कागज़ पे काली स्याही
असर क्यों छोड़े !