खा-पीकर नारा लगाने वालों की बल्ले-बल्ले

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सूबे में नगर पालिका के चुनाव को लेकर एक ओर नेताओं ने कमर कस ली है तो दूसरी खा-पीकर नारा लगाने वाले लोगों की भी बल्ले-बल्ले हो गई है। जलेबी-पूड़ी के साथ-साथ मुर्गा और दारू का दौर भी शुरु हो चुका है। लोग जमकर खा रहे हैं और छक कर पी रहे हैं। इन खर्चों का लेखा-जोखा कोई भी प्रत्याशी चुनाव आयोग के पास नहीं भेज रहा है जबकि चुनाव आयोग हर बार की तरह इस बार भी तमाम प्रत्याशियों के खर्चे पर कड़ी नजर रखने की बात कर रहा है। मतलब साफ है कि हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर इस चुनाव में हर उस हथकंडे का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे व्यवहारिक चुनावी परंपरा का अहम हिस्सा माना जाता है। इस मामले में छेड़ने पर दारू और मुर्गा का मजा लुट रहे एक व्यक्ति ने कहा, “अबहीयें तो इस सब के जेब ढिल्ला होता है, जीते के बाद थोड़े ही पूछेगा। जेतना खाना है खा ले रहे हैं।”

अपराधी पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों पर नकेल कसने के लिए चुनाव आयोग खूब मश्कत कर रहा है। नामांकन शुरु होने से पहले आयोग की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया था कि जिन लोगों पर क्रिमिनल केस है उनका स्पीडी ट्रायल किया जाएगा। आयोग ने यहां तक धमकाया था कि यदि कोई प्रस्तावक भी अपराधी छवि का है तो उसका भी स्पीडी ट्रायल हो जाएगा। आयोग के इस रुख से कई हार्ड कोर अपराधी नामांकन दाखिल करने से पीछे हट गये, जबकि खुफिया खबर यही थी कि बेऊर जेल में निकाय चुनाव को लेकर गोलबंदी चल रही है। कई शातिर अपराधी इस चुनाव में खम ठोकने की तैयारी में थे। स्पीटी ट्रायल का खौफ कारगर साबित हुआ कई अपराधी मन मारकर चुप लगा गये।

इसके बावजूद अपराधी छवि वाले कुछ प्रत्याशी अभी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। आयोग के मुताबिक सूबे में नगर पालिका चुनाव में 1076 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। अब इन पर स्पीडी ट्रायल होता है या नहीं यह तो समय ही बताएगा, फिलहाल अपराधी छवि वाले इन उम्मीदावों की ओर से चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए एड़ी-चोटी का जोड़ लगाया जा रहा है। वैसे पुलिस के आला अधिकारी इन उम्मीदवारों की कुंडली खंगाल रहे हैं और उन अपराधियों पर कड़ी नजर रख रहे हैं जो इन उम्मीदारों को जीत दिलाने में सक्रिय हैं। ग्रामीण एसपी मनोज कुमार तो यहां तक कह रहे हैं कि दो से तीन दिन के अंदर अपराधी छवि वाले प्रत्याशियों पर कार्रवाई शुरु हो जाएगी। स्पेशल टास्क फोर्स और पुलिस की स्पेशल टीमें लगातार अभियान में लगी है।

इस बार निकाय चुनावों को मतदाता काफी संजीदगी ले रहे हैं और अपने –अपने क्षेत्र में प्रत्येक उम्मीदवार को ठोक पीट कर देख रहे हैं। प्रत्याशियों से खुलकर करके उनकी जात तक पूछी जा रही है। प्रत्याशी भी अपनी जीत के लिए जातीय समीकरण को दुरुस्त करने में लगे हुये हैं। इन सब से इतर मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग भी दिख रहा है जो बेहतर प्रत्याशी की तलाश में है। ऐसे मतदाताओं की संख्या पहले की अपेक्षा अधिक है। राष्ट्रीय पटल पर अन्ना आंदोलन से जुड़े लोग भी सूबे में निकाय चुनाव को प्रभावित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ये लोग सामूहिक रूप से विभिन्न वार्डों में जाकर मतदाताओं से योग्य प्रत्याशियों को चुनने की अपील कर रहे हैं, जिसका सकारात्मक असर मतदाताओं पर हो रहा है। सबसे अधिक फजीहत निर्वतमान पार्षदों की हो रही है। ये लोग जहां भी जा रहे हैं वहीं इन पर सवालों का बौछार किया जा रहा है। साफ सफाई से लेकर पेयजल की व्यवस्था कर पाने में नाकाम इन निर्वतमान पार्षदों के पसीने छूट रहे हैं। कहीं कहीं पर तो इन्हें उग्र विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।

पटना नगर में तो प्रत्येक वार्ड की स्थिति काफी दयनीय है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से ग्रामीण इलाकों से पटना में लोगों का आगमन हुआ है उससे यहां की नागरिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। पटना शहर चमकीले होर्डिगों से तो अटा पड़ा है लेकिन इस शहर में मूत्राशय की भारी कमी है। पटना जंक्शन, फ्रेजर रोड, गांधी मैदान जैसे व्यवसायिक इलाकों में तो मूत्राशय ढूंढे नहीं मिलते हैं। इसी तरह यहां के कई ऐसे वार्ड हैं जो बरसात के मौसम में पूरी तरह से डूब जाते हैं। जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण लोगों का घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो जाता है। अब तक पटना शहर को चमकता हुआ शहर बनाने के वादे खूब बढ़चढ़ कर किये गये हैं लेकिन पूरा शहर आज भी गंदगी में डूबा हुआ है।

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