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तंत्र-मंत्र जैसे अंधविश्वास पर करारा प्रहार करता है ’’बचके रहना रे बाबा’’

राजू बोहरा, नयी दिल्ली

हिंदुस्तान सभी धर्मो को मानने वाले लोगो का देश है, यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सहित लगभग सभी धर्मो में आस्था व विश्वास रखने वाले लोगो की कोई कमी नहीं है, मगर इसके विपरीत यहां आज भी अशिक्षा और अंधविश्वास का खासा बोल-बाला है।  अंधविश्वास के इसी बेहद गंभीर विषय को जोरशोर से उठाया गया है महुआ टीवी के धारावाहिक ’’बचके रहना रे बाबा’’ में। जिसका प्रसारण महुआ चैनल पर सोमवार से शुक्रवार रात 10 बजे किया जा रहा है। ’’बचके रहना रे बाबा’’ अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के पाखंड की पोल खोलता एक मनोरंजक व ज्ञानवर्धक धारावाहिक है जो अंधविश्वास पर करारा प्रहार करता है। इस धारावाहिक के माध्यम से समाज में फैले अंधविश्वास, आलौकिक शक्तियो का पाखंड करने वाले मुल्ला-मौलवी,पंडित, तांत्रिक,ओझा और बाबाओ की हकीकत का पर्दा फास कर दर्शको को जागरूक करने का प्रयास किया गया है।

धारावाहिक ’’बचके रहना रे बाबा’’ का निर्देशन जानेमाने डायरेक्टर मनीष खन्ना ने किया है और इसके लेखक है तारिक जमाल सैफी। यह धारावाहिक कुल 70 कडि़यों में पिरोया गया है और इसकी एक कहानी लगभग 5 एपिसोड  की है। इस धारावाहिक में मुम्बई और दिल्ली अनेक जानेमाने कलाकारो ने काम किया है जिनमे इंद्रपाल सिंह, जाहिद शाह, महेश गहलोत, सुनीता चैहान, हरीश ताँबा,  राजेश गाँधी, अजय शर्मा, सीमा पारी, परवेश, वरुण जौहरी और सूची वर्मा जैसे कलाकार मुख्यरूप से शामिल है। अंधविश्वास पर चोट करने वाले इस धारावाहिक सोशल धारावाहिक  की सारी शूटिंग दिल्ली के मशहूर शूटिंग स्टूडियो ’’मकदूम आट’र्’ की लोकेशन्स पर की गयी है जो ईस्ट दिल्ली में स्थति है। धारावाहिक ’’बचके रहना रे बाबा’’ का निर्माण अंधविश्वास में फसने वाले लोगो को जागरूक करने के मकसद से बनाया गया गया है जो दर्शको को मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान का प्रकाश भी देता  है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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