बाइट्स प्लीज ( उपन्यास भाग -13)

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24.

पटना के मुर्दा घाट के बगल में स्थित कंट्री लाइव का दफ्तर पूरी तरह से राजनीति का अखाड़े बन चुका था। राजनीति में विरोधियों पर हमला करने के दौरान कम से कम मर्यादा का ख्याल तो रखा ही जाता है, और यदि कोई राजनीतिज्ञ अपने विरोधियों के खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल करने लगता है तो सभी राजनीतिज्ञ एक सिरे से दलीय मानसिकता से ऊपर ऊठकर उस पर टूट पड़ते हैं। पत्रकारिता में काम करने वाले लोगों का स्तर तो राजनीतिज्ञों से भी नीचे गिर गया है, कम से कम कंट्री लाइव के लोगों की बातों से तो यही आभास होता था। कंट्री लाइव में मयार्दा की सारी कोई सीमा ही नहीं थी।  भद्दे शब्दों का इस्तेमाल बड़ी बेहरहमी से हो रहा था।

वहां काम करने वाला हर शख्स जाने अनजाने घात और प्रतिघात के खेल में शामिल था। किसके मुंह से निकलने वाली कौन सी बात का कब, कहां और कैसे इस्तेमाल हो जाये कोई नहीं जानता था। इलेक्ट्रानिक मीडिया के तौर तरीकों की पर्याप्त जानकारी के अभाव में अपनी हरकतों से नरेंद्र श्रीवास्तव भी अनजाने में अपने दफ्तर में चलने वाले षडयंत्रों को हवा दे रहे थे। कभी–कभी अपने वजूद का अहसास कराते हुये फोन पर ही जिले के रिपोटरों पर बरस पड़ते थे और उनकी इस हरकत का लोगों पर उल्टा ही असर होता था। पीठ पीछे लोग उनकी हंसी उड़ाते हुये कहते,“ लगता है यह रिपोटर इनके लिए दारू और मुर्गे का इंतजाम करना भूल गया है।”

भुजंग और महेश के बीच में टशन तो चल ही रही थी, सुकेश, नीलेश और रंजन भी आपस में गोलबंद हो गये थे। इन तीनों की गोलबंदी को देखकर भुजंग और महेश सुलह की मुद्रा में आ गये थे, हालांकि अंदर से खुन्नस अभी भी जारी थी। शाम को करीब पांच बचते ही तीनों दफ्तर के बाहर एक झोपड़ीनुमा होटल में समोसे और चाय खाते हुये दफ्तर में होने वाली हर छोटी-बड़ी गतिविधि की व्याख्या करते हुये आगे की रणनीति तय करते थे।

दफ्तर की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए रत्नेश्वर सिंह ने अपने एक रिश्तेदार के बेटे भोला को स्टोर का इंचार्ज बना दिया था। वह दिखने में पूरी तरह से हट्टा कट्ठा था और काफी ऊंचा बोलता था, जैसे खेतों में दूर से कोई मजदूरों से बात करता है, या फिर बस स्टैंड में सवारी हासिल करने के लिए खलासी जोर-जोर से चिल्लाता है। अपने छोटे-छोटे बाल और दायीं कलाई में पहने हुये कड़े की वजह से पहली नजर में ही वह लठैत लगता था। अपने कपड़ों के प्रति वह काफी सतर्क रहता था, हमेशा साफ उजले कपड़े पहनता था।

भोला हर बात की खबर रत्नेश्वर सिंह को देता था और उनकी अनुपस्थि में दफ्तर को अपने तरीके से हांकने की कोशिश करता था। उसका अंदाज पूरी तरह से लोगों को धकियाने वाला था। अपनी बात को मनवाने के लिए वह हर वक्त रत्नेश्वर सिंह का हवाला देता था। भोला के रहने की व्यवस्था गेस्ट हाउस में कर दी गई थी। महेश सिंह ने दारू पीला–पीलाकर भोला को भी शीशे में ढाल लिया था। भोला को भी यह अहसास हो गया था कि लोगों पर महेश सिंह का दबदबा कुछ ज्यादा है, इसके अलावा स्वजातीय समीकरण भी काम कर रहा था। महेश सिंह को भी पता था कि भोला दफ्तर के अंदर रत्नेश्रर सिंह का खबरी है, इसलिये वह भोला के साथ दोस्ताना व्यवहार करता था। इसका लाभ महेश सिंह को मिल रहा था। रत्नेश्वर सिंह के सामने भोला महेश सिंह की हमेशा तारीफ किया करता था। इस तरह से महेश सिंह अपनी स्थिति को भोला के माध्यम से और मजबूत किये हुये था। इसके बदले में भोला को संस्थान के लोगों के साथ मनचाहा व्यवहार करने की छूट मिली हुई थी।

इसके अलावा दफ्तर की गतिविधियों की जानकारी के लिए रत्नेश्वर सिंह सीधे मेशू को भी फोन करते थे, जिससे मेशू का हौसला भी बढ़ गया था। यहां तक कि वह भुजंग और महेश सिंह को भी जवाब देने लगा था।

इसे लेकर महेश सिंह मेशू पर उखड़ा रहता था और खान-पीने के क्रम में रिपोटरों और कैमरा मैन को समझाया करता था कि किसी दिन मेशू का नाक मुंह फोड़ दे। एक बार आधी रात को शराब के नशे में धुत होकर प्रकाश ने मेशू की अच्छी खासी धुलाई भी कर दी। मेशू ने इसकी शिकायत हर किसी से की लेकिन प्रकाश पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस मामले में सभी ओहदेदारों ने मेशू को ही समझाया कि मारपीट करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है, जबकि यह मामला पुरी तरह से अनुशासन का था। इस तरह से सभी अधिकारियों के नाक के नीचे ही कंट्री लाइव में पूरी तरह से अराजकता का माहौल कायम होता चला गया।

रिसेप्श्निस्ट कृति भी रत्नेश्वर सिंह के सीधे संपर्क में थी। उसके माध्यम से भी रत्नेश्वर सिंह को दफ्तर की महत्वपूर्ण गतिविधियों को पता चल जाता था। रत्नेश्वर सिंह द्वारा संस्थान के अंदर विभिन्न श्रोतों से वहां काम करने वाले लोगों की खबरें लेने की जानकारी वहां काम करने वाले लोगों को हो चुकी थी। चुंकि रत्नेश्वर सिंह आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर उल्टा-सीधा कार्रवाई भी करते थे, जिससे माहौल में और भी घुटन फैल गई थी और षडयंत्र का अंदाज और तीक्ष्ण हो गया था।

विमल मिश्रा भी अपने एकाउंटेंड के खोल से बाहर निकल कर प्रबंधक की भूमिका में आ गया था। हर छोटी बड़ी सूचना को रत्नेश्वर सिंह तक पहुंचाने में वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा था। इसके साथ ही संस्थान की भलाई के नाम पर उसने अपने तरीके से नियम भी बनाने शुरु कर दिये थे। सुयश मिश्रा एक कोने में अपने दरबे में बैठकर सस्थान के अंदर चलने वाली हर गतिविधि पर नजर रखे हुये था। उसकी जिम्मेदारी कंट्रीलाइव डाट काम को चलाने की थी। विमल मिश्रा और सुयश मिश्रा का अधितकर समय साथ-साथ ही व्यतीत होता था, क्योंकि दोनों एक ही कंप्यूटर पर काम करते थे और एक ही दरबे में बैठते थे।

पूजा को कालेज क्लिपिंग के नाम से एक नया प्रोग्राम मिल गया था। अपने संगीतमय आवाज से उसने इस प्रोग्राम को जीवंत बना दिया था, दर्शक इस प्रोग्राम को पसंद कर रहे थे। पूजा की बढ़ती लोकप्रियता का सीधा असर तृष्णा पर पड़ रहा था। दोनों एक दूसरे को अपना प्रतिद्वंदी समझने लगे थे। भुजंग की बदौलत बहुत दिनों से तृष्णा कई प्रोग्रामों की एंकरिंग कर रही थी। पूजा के कालेज क्लीपिंग की सफलता के बाद दोनों में खटपट शुरु हो हो गई। तृष्णा सिर्फ भुंजग का ही आदेश मानती थी, उसी के इशारे पर चलती थी और इसका लाभ उसे मिल भी रहा था। उसके उठने, बैठने के अंदाज से रंजन शुरु से ही खफा था। कभी-कभी तो वह रंजन के सामने ही कुर्सी पर पैर पर पैर रखकर बैठ जाती थी, जो रंजन को खलता था। भुंजग ने पूजा पर भी हाथ फेरने की कोशिश की थी, लेकिन पूजा ने अपने तीखे अंदाज में उसे समझा दिया था कि वह यहां सिर्फ पत्रकारिता करने आयी है, और कुछ नहीं। यदि कोई उल्टा सीधा ख्याल उसके दिमाग में आये भी तो उसे निकाल दे।

भुजंग ने अपनी ओर से पूजा को बाहर रास्ता दिखाने की पूरी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। उसके प्रोग्राम की लोकप्रियता की वजह से रत्नेश्वर सिंह भी उसकी तारीफ कर चुके थे। इस तरह से संस्थान के अंदर लड़कियों में भी दो खेमे बन गये थे। पूजा को नापसंद करने वाले लोगों की संख्या उसके बेबाक व्यवहार के कारण बढ़ती ही जा रही थी। यहां तक कि उसके प्रोग्राम कालेज क्लिपिंग को एडिट करने वाला एडिटर अमलेश भी उसके खिलाफ हो गया था। अमलेश भी पहले वहीं काम कर चुका था जहां पूजा करती थी। एक एडिटर की सीमा से आगे निकल कर वह एंकरिंग करने वाली लड़कियों को अपने गिरफ्त में लेने की हर संभव कोशिश करता था। अमलेश की आदत लड़कियों के साथ गहरी दोस्ती स्थापित करने की थी। पटना के मीडिया में काम करने वाली तमाम लड़कियों के नाम और फोन नंबर उसके पास थे और उसकी प्रवृति लगातार इसमें इजाफा करते रहने की थी। जब उसने पूजा को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश की तो उसने तत्काल उसे उसकी औकात बता दी। इसका नतीजा यह हुआ कि संस्थान के अंदर पूजा का एक और विरोधी बढ़ गया।

शुरु-शुरु में रिपोटर भूपेश ने भी पूजा को अपने चपेटे में लेने की कोशिश की थी, लेकिन पूजा ने उसे भी झटक दिया था जिसके कारण भूपेश पूजा से खासा नाराज था। इसका नतीज यह हुआ कि संस्थान के अंदर एक साथ पूजा के चरित्र को लेकर हमले होने लगे। नीलेश, सुकेश और रंजन पूजा के पक्ष में थे, जिसके कारण पूजा को स्क्रीन पर लगातार आने का मौका मिलता रहा।

मानसी की आवाज को सुकेश खारिज कर चुका था। जब इस बात की जानकारी भूपेश को हुई तो वह मानसी की तरफ विशेष रुप से ध्यान देने लगा। रंजन पर उसने दबाव बनाना शुरु किया कि मानसी से एंकरिंग करवायी जाये, लेकिन रंजन  इसके लिए तैयार नहीं था। उसने भूपेश से साफतौर पर कहा कि इस बारे में सुकेश से बात करे। जब उसने सुकेश से बात की तो सुकेश ने उसे समझाया कि यह रिपोटर तय नहीं करेगा कि एंकरिंग किससे करवाई जाये। उस दिन से भूपेश इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाते हुये सुकेश, नीलेश और रंजन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और महेश सिंह के खेमे का एक स्वाभाविक सैनिक हो गया। इस मौके का भरपूर फायदा महेश सिंह ने भी उठाया और इन तीनों के खिलाफ लगातार जहर उगलने लगा।

25.

“आखिर मैं किन लोगों से जूझ रहा हूं, और क्यों जूझ रहा हूं। ये प्रश्न बार -बार मैं अपने आप से करता हूं । क्या आपको लगता है कि यहां पर पत्रकारिता करने का स्वस्थ्य माहौल है? ये लोग तो कुंये में पड़े हुये मेढ़क से भी बदतर है। दिमाग के सारे खिड़की और दरवाजे बंद कर रखा है। नई रोशनी और नई हवा के लिए कोई जगह ही नहीं है। और मजे की बात है कि ये आपको ही गलत साबित करने पर तुले हुये हैं, ”, सिगरेट का गहरा कश लेने के बाद धुआं को उड़ाते हुये नीलेश ने अपने बगल में बैठकर चाय पीते हुये सुकेश से कहा।

“तुमने फिर मेरा दिमाग खाना शुरु कर दिया। चुपचाप सिगरेट पीओ और अंदर चलकर काम करो,” सुकेश ने कहा।

दोनों दफ्तर के बाहर सड़क के दूसरी तरफ बने चाय की दुकान में बैठे हुये थे।

“मुझे तो लगता है कि बिहार में क्लीन जर्नलिज्म मूवमेंट की जरूरत है, बिहार में ही क्यों पूरे देश में क्लीन जर्नलिज्म मूवमेंट की जरूरत है। ऐसे लोग पत्रकारिता के पेशे में आ गये हैं जिनका पत्रकारिता से दूर- दूर तक कोई लेना देना नहीं है, और ऐसे लोगों की संख्या अधिक है। ऐसे में स्वाभाविक है कि बेहतर पत्रकार हाशिये पर चले जाएंगे, या फिर उन्हें ढकेल दिया जाएगा और यह पत्रकारिता के हक में नहीं होगा। बिहार में तो स्थिति और भी चौपट है। इस स्थिति को देखकर बौखलाहट होती है। ”

“तुम अपने अपने आप को एक बेहतर पत्रकार मानते हो? और यदि मानते हो तो यह सर्टिफिकेट तुम्हें किसने दिया। जिस तरह से तुम खुद बेहतर पत्रकार का सर्टिफिकेट ले रहे हो, उसी तरह से उनलोगों ने भी खुद को बेहतर पत्रकार का सर्टिफिकेट दे रखा है। मेरी नजर में तो बेहतर पत्रकार वही है जो किसी संस्थान में बेहतर पोस्ट पर बैठा हो और मेरी क्या दुनिया की नजर में भी सच यही है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने पत्रकारिता को ग्लैमरस बना दिया है। हाथ में माइक हो तो चार-पांच प्रश्न तो कोई भी पूछ सकता है। ऐसी स्थिति में चमकते चेहरे वालों को ही तरजीह दी जाएगी ना,”, सुकेश ने कहा। “फोन करके पूछो, रंजन अभी तक क्यों नहीं आया।”

“तुम्हें पता है मेरे लाइफ की पहली और आखिरी इच्छा यही थी कि मैं एक पत्रकार बनू। आज भी मैं इसी पर कायम हूं। यूरोपीय देशों में पत्रकारों ने बड़े-बड़े आंदोलनों के लिए जमीन तैयार की है। यूरोप की बात छोड़ो अपने ही देश में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े कई बड़े नेता खुद का अखबार चलाते थे। यह पेशा सिर्फ रोजी रोटी की चाह रखने वालों के लिए नहीं रहा है। ग्लैमर से मुझे परहेज नहीं है, लेकिन टोटलिटी में हम बात करें तो कहीं न कही यह पेशा इंटलेक्ट की डिमांग करता है, इन्सान से जुड़ी बुनियादी फलासफाओं की समझ की मांग करती है और उस धारा की समझ की मांग करता है, जिससे होकर इंसानी कारवां गुजरा है और गुजर रहा है। राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक समझ की मांग करता है। तुम्हें नहीं लगता कि यहां पत्रकारिता पूरी तरह से अंधकार की स्थिति में है। जिस दफ्तर में हम काम कर रहे हैं उसी की बात लो, पत्रकारिता को छोड़कर बाकी सब कुछ हो रहा है। लगता है कि रत्नेश्वर सिंह को भी किसी पागल कुत्ते ने ही काटा था, जो चैनल खोलकर बैठ गये हैं। सारे नमूनों को भर्ती कर लिया है। चैनल का धंधा इनर्फोमेशन का धंधा है, इसमें आदमी को लगातार मेंटली रिच करने करने की जरूरत है। सीधा सा फार्मूला है, आपके वर्कर जितना ज्यादा जानेंगे, उतना ही अच्छा काम होगा। यहां तो पूरा मामला ही उल्टा है। पहले यहां अखाबर आता था उसे इसलिये बंद कर दिया गया कि लोग यहां बैठकर अखबार देखते हैं, वो भी एक चैनल के दफ्तर में अखबार बंद करने का आदेश चैनल का चेयरमैन देता है,” नीलेश थोड़ा भड़का हुआ था।

“माफ करना मुझे आने में देर हो गई। एक प्रोग्राम का लोचा था। मैं तो सुजान से परेशान हूं। दिन भर उसका मुंह महकते रहता है। शराब पीये वगैर वह काम नहीं कर पाता। और पीकर के इतनी गड़बड़ी करता है कि पूछो मत। मैं ठीक कराते –कराते परेशान हो जाता हूं। किसी का बाइट कहीं भी लगा देगा, ”, झोपड़ी में दाखिल होते हुये रंजन ने कहा।

“अब इसकी बाइट सुनो,” रंजन की तरफ इशारा करते हुये नीलेश ने सुकेश से कहा, “सुबह आने के बाद यह प्रोग्राम के लिए जी जान लगाये रहता है, अभी तक इसने एक लाइब्रेरी भी नहीं बनवायी है, जहां सारे फीड को सुरक्षित रखा जा सके। इसकी हर स्टोरी में, चाहे वह किसी भी डिपार्टमेंट का क्यों न हो, कुट्टी काटने वाले एक बूढ़े का विजुअल्स जरूर रहेगा, आपके चैनल का सबसे हिट हीरो वही है। कभी-कभी तो यह कहते हैं कि बिना विजुअल्स देखे ही मैं पूरा स्क्रिप्ट लिख दूं। अब तुम ही बताओ बिना विजुअल्स के कोई क्या लिखेगा?    ”, नीलेश लगातार बोले जा रहे था। भीड़भाड़ में अमूमन वह चुप ही रहता था, लेकिन एक बार जब बोलना शुरु कर देता था तो फिर बोलता ही जाता था।

“तुम लाइब्रेरी की बात करते हो, कहां बनेगा लाइब्रेरी और कौन संभेलगा उसे। तुम्हें पता है यहां एक-एक कैसेट का हिसाब हो रहा है। और मुझे तो यह भी याद रखना पड़ता है कि किस कैसेट में क्या है। अब ये एक आउटपुट हेड का काम है कि वह कैसेट का हिसाब रखे। एक-एक रिपोटर को बोलता हूं तब जाकर वो फीड लाकर देते हैं। रिपोटरों को यह कह कर भड़काया जा रहा है कि वो प्रोग्रामिंग के लिए फीड नहीं दे, क्योंकि प्रोग्रामिंग रिपोटिंग का हिस्सा नहीं है। महेश के कहने पर यह काम भूपेश कर रहा है, ” नीलेश और सुकेश के बीच में बैठते हुये रंजन ने कहा।

“जो भी हो, मुझे लगता है इन सब चीजों को लेकर सभी लोगों की एक सामुहिक मीटिंग होनी चाहिये। यहां लोगों की एनर्जी एक दूसरे से टकरा रही है और एक दूसरे को डिस्ट्रक्ट कर रही है। इसे सही दिशा में चैनेलाइज करने की जरूरत है, उसकी पहली शर्त यह है कि उन चीजों की पहचान कर ली जाये जो इस चैनल को आगे ले जाने में बाधक है,” नीलेश ने कहा।

“तुम सिर्फ थ्योरी बघारते हो। तुम्हारी सारी थ्योरी से मैं पूरी तरह से अपने को सहमत पाता हूं, लेकिन मैं जानता हूं कि जो तुम कह रहे हो वैसा कभी नहीं हो सकता है और कम से कम अभी तो बिल्कुल नहीं। यहां लोग एक दूसरे पर झपटने और गुर्राने में लगे हुये हैं, और यह स्थिति बनी रहेगी, क्योंकि बहुत सारे गंदे लोग इसमें घुस चुके हैं। उस दिन तुमने टेली प्राम्टर को लेकर रियेक्ट किया था, आज देखो सारे एंकर बिना टेली प्राम्टर के बिना ही एंकरिंग कर पढ़ रहे है। इसे लेकर कोई बाइट देने को तैयार नहीं है। मैंने पहले ही कहा था यह बिहार है, कभी नहीं सुधरेगा। लोगों की मानसिकता एक दिन में नहीं बदल सकती है ” रंजन ने कहा।

“और तुम इसे अपनी बहादुरी मान रहे हो ! तुम्हारी बात सुनकर मुझे शर्म आ रही है। होना यह चाहिये था कि तुम तत्काल टेली प्राम्टर के लिए हंगामा करते, यदि स्टूडियो में शूट करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है तो,  ” नीलेश ने भड़कते हुये कहा।

“और उसी दिन नौकरी से हाथ धो बैठता, क्यों? आपको सीधे तौर पर कहा जाता कि आप काम छोड़ दीजिये।”

“ऐसा कैसे हो सकता है? ”

“ऐसा ही होता और इसके अलावा कुछ नहीं होता, और जिन लोगों के लिए टेली प्राम्टर लाने की बात तुम कर रहे हो ना, वे इसी तरह से काम कर रहे होते, ” रंजन पूरे विश्वास के साथ कहा।

“यानि कि तुम एक गलत परंपरा की शुरुआत कर दोगे?”

“मैं कौन होता हूं गलत परंपरा की शुरुआत करने वाला, यहां लोग बिना कुर्सी के टेबल के पीछे एंकरों को झुका कर खबरे पढ़वाते हैं। आज नोटिस टंगा है स्टूडियो के बाहर, “कृपया जूता और चप्पल उतार कर स्टूडियो में जाये, आदेशानुसार, सीएमडी। यहां की छोटी-छोटी खबरें विस्तार के साथ रत्नेश्वर सिंह के पास जा रही है। मेरी कोशिश है जब तक इज्जत से काम चलता रहे, करता रहूं। इन सारे पचड़ों को लेकर में ज्यादा सोचने की स्थिति में नहीं हूं, पहले ही बहुत सोच चुका हूं, जिसका जो मन में आये बाइट्स देता रहे, मुझे पता है यहां कैसे काम करना है,” रंजन ने कहा।

“ थोड़ी देर पहले यही बात मैं भी इसे समझा रहा था तो यह मुझे पत्रकारिता की थीसीस पढ़ा रहा था, ” सुकेश ने रंजन से कहा फिर खड़ा होते हुये नीलेश की तरफ पलटा, “ चलो पैसा दो, बहुत देर से तुम्हारी बक बक झेल रहा हूं।”

“पैसे मैं दे देता हूं, तुम इसे समझाते रहो,” खड़ा होकर जेब में हाथ डालते हुये रंजन ने कहा।

“तुमने तो कुछ खाया ही नहीं,” नीलेश ने कहा।

“चाय तो मैं पीता नहीं हूं और लगता है आज समोसे इसने  बनाये नहीं है। जब से यहां काम कर रहा हूं खाने पर भी आफत आ गई है। वैसे आज नीलेश की बाइट्स से मेरा पेट भर गया है। यहां एडिटर सब भी एंकरिग पर हाथ साफ करने की जुगाड़ लगा रहा है। यहां तो रोज एक से एक बाइट्स सुनने को मिल रहा है, सब पर ध्यान दिये तो चला काम।  ”

26.

“देखिये सर, कंट्री लाइव की खबर ओपेन फार मीडिया डाट काम पर छपी है। पता नहीं कौन लिखता है? ”, कंप्यूटर पर पोर्टल ओपेन फार मीडिया डाट काम को खोलने के बाद अमलेश ने चहकते हुये कहा। उसके बगल में बैठे हुये नीलेश ने एक नजर उसके स्क्रीन पर डाली। हिन्दी के तमाम साइटों और ब्लाग्स पर नीलेश की पैनी नजर रहती थी। अमूमन हर रोज वह सैंकड़ों और ब्लाग्स और साइट्स खोलता था और अपने पसंद के आलेख या रिपोर्ट पढ़ लेता था। पिछले तीन साल से वह एक सामुहिक ब्लाग आवृति का सदस्य भी था और मौका मिलने पर उस पर कुछ कुछ लिखता भी रहता था। संचार की दुनिया में में ब्लाग्स और साइट्स का आगमन एक चौंकाने वाला कदम था। अपने धारदार आलेख और रिपोर्टों की वजह से कई ब्लाग्स और साइट्स लोगों को आकर्षिक कर रहे थे। इसने खबरों के पारंपरिक दायरे को भेद दिया था। अब खबर बनाने वाला पत्रकार समुदाय के साथ-साथ मीडिया घराने के लोगों पर भी बेबाकी से खबरें लिखी और पढ़ी जा रही थी। कई साइटों पर तो तीक्ष्ण वैचारिक संर्घषों को भी प्रमुखता से स्थान मिल रहा था।

“क्या लिखा है इसमें कंट्री लाइव के बारे में?”,  स्क्रीन पर नजर दौड़ाते हुये नीलेश ने पूछा

“दफ्तर के अंदर चलने वाली इश्क मोहब्बत की खबरें है। कंट्री लाइव की एक मैडम किसी से इश्क लड़ा रही हैं, हालांकि नाम नहीं दिया गया है, ” अमलेश ने थोड़ चहकते हुये कहा।

“और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवा। नाम तो इसने ओपन फोर मीडिया रखा हुआ है, लेकिन खबर लगा रहा है टुच्चे की तरह, ” दूसरी तरफ मुंह फेरते हुये नीलेश ने कहा।

“सर आप जानते नहीं है, लोग यही सब चीज तो पढ़ना चाहते हैं। बहुत हिट साइट है यह, बिहार के मीडिया वालों की ऐसी की तैसी कर रखी है इसने, ” अमलेश ने जोर देते हुये कहा।

“वो कैसे? ”

“पटना के किस संस्थान में किसका अफेयर्स किससे चल रहा है सब आता है इस पर। किस बौस की नजर किस एंकर पर है, किस रिपोटर का टांका किस बौस से भिड़ा हुआ है, सब कुछ। एक बार पढ़ कर तो देखिये। ”

“भइया तुम ज्ञान वर्धन करो,  मुझे यह साइट देखना ही नहीं है। अपनी भूख कुछ और ही है.”

“आप लोग पुराने फैशन के हो, नई जेनरेशन की बात नहीं समझोगे, ” अमलेश ने कहा।

“मुहब्बत और सेक्स किसी जेनरेशन की मुहताज नहीं होती है। जिस खबर की बात कर रहे हो न उसके नीचे वाली खबर की हेडिंग देखो, आधी रात को बौस के केबिन में रासलीला। इस साइट को पढ़ने के बजाय मैं पोर्न साइट्स पढ़ना ज्यादा बेहतर समझूंगा। इस साइट्स का एप्रोच ही सेक्सुअल है और तुम मुझे कह रहे हो कि मैं जेनरेशन से ही कटा हुआ हूं। अभी बाहर सिगरेट पीकर आया हूं और मेरा मूड एक दम फ्रेश है, इसलिये मुझे अपने दिमाग में कूड़ा कचड़ा बिल्कुल नहीं चाहिये।”

“अमलेश को क्यों हड़का रहे हैं सर,” दायीं तरफ बैठे हुये चंदन ने हंसते हुये पूछा।

“जानते हैं संचार क्रांति के बाद दुनिया की सबसे बड़ी समस्या क्या है ?  दिमाग को डस्टबिन होने से बचाना। यहां तो पहले से ही हर कोई आपके दिमाग में उल्टी करने के लिए तैयार बैठा है। और अब यह काम संचार के तमाम आधुनिक माध्यमों से हो रहा है और ऊपर से तूर्रा यह कि हम खबर परोस रहे हैं, आपको अवेयर कर रहे हैं। यह सही है कि कनेक्टिविटी बढ़ी है, खबरों का फ्लो बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही पोल्यूशन भी बढ़ा है। कंट्री लाइव की महिला किसी से इश्क मोहब्बत कर रही है, अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि इस खबर को मैं क्यों पढ़ू, या फिर कोई क्यों पढ़े? , ” नीलेश ने कहा।

“ फिल्मी दुनिया की खबरे इसी तर्ज पर बनती है, लेकिन उसका उद्देश्य पोपुलरिटी और प्रोपगेंडा होता है और एक हद तक ये खबरें प्रायोजित भी होती हैं,” बातचीत में रुचि लेते हुये रंजन ने कहा।

“ भाई आपके संस्थान की एक लड़की तो खूब इश्क लड़ा रही है,” गलियारे में घुसते हुये भुजंग ने ऊंची आवाज में कहा। “रंजन जी सावधान रहिएगा पता चला कि किसी दिन आप पर भी इस तरह की खबरें छपने लगी हैं।”

“मुझसे ज्यादा आपको सावधान रहने की जरूरत है,” रंजन ने हंसते हुये कहा।

“इलेक्ट्रानिक मीडिया में ये सब चलता है, लोग ओपेन माइंड होते हैं।”

भुजंग के आने के बाद काफी देर तक बातचीत का सिलसिला यूं ही चलता रहा। जाने के पहले उसने एक कैसेट अमलेश को पकड़ाया और बोला, “इसमें एक स्कूल का डांस प्रोग्राम है। इससे एक प्रोग्राम काट कर रांची भेज दो। उस डांस में मेरा बेटा भी है।”

“यह खबर किसी साइट पर चलती तो ज्यादा बेहतर होता कि कंट्री लाइव का बिहार प्रमुख अपने बेटे की डांस की खबर चला रह है, इन्हीं लोगों की वजह से बिहार में खबरों के लाले पड़े हुये हैं,” नीलेश ने थोड़ा खीजते हुये कहा।

“इस पर रत्नेश्वर सिंह की बाइट्स लेकर कंट्री लाइव पर ही खबर चलाने में ज्यादा मजा आता,” रंजन के इतना कहते ही वहां पर मौजूद सभी लोग जोर-जोर से हंसने लगे।

जारी—————

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