बिहार में छात्रों के भविष्य पर कोचिंग माफियाओं का काला साया

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निशिकांत, पटना

बिहार में स्कूलों और कालेजों की पस्त हालत की वजह से कोचिंग का धंधा खूब फल-फूल रहा है। बिहार में पढ़ाई पूरी तरह से शिक्षा माफियाओं के कब्जे में हैं। राजधानी पटना इसका मुख्य केंद्र बना हुआ है। पटना में कोचिंग संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है और मजे की बाद हैं इन्हें बिहार के विकास के साथ जोड़ कर देखा प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। इन कोचिंग संचालकों को बच्चों के भविष्य से कुछ भी लेना देना नहीं है। इन्हें तो बस मुनाफा चाहिये, हर साल बड़ी संख्या में छात्र चाहिये, जो इन्हें पैसे दें। हर गली चौराहें पर कोचिंग का बोर्ड आपको पूरे बिहर के तमाम छोटे-बड़े शहरों एवं बाजारों में दिखाई पड़ जायेगा। राज्य के हर कोचिंग संचालक छात्रों को डाक्टर, इंजीनियर, सीए बनाने का दावा करते हैं। पटना में तो सरकारी सेवाओं के लिए आईएएस से लेकर बैंक, पीओ, कलर्क, एसएससी ग्रेड़, रेलवे व किसी भी तरह के मौसमी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थान यहां मिल जाएंगे।

एक सर्वे के अनुसार इस तरह कोचिंग में अधिकतर वही टीचर हैं जिन्होंने सभी तरह के भर्ती बोर्ड की परीक्षाओं में बैठे लेकिन उनका सलेक्शन नहीं हुआ।  अब दूसरों को परीक्षा पास करने के गुर सिखा रहे हैं। सिर्फ राजधानी पटना में कोचिंग का कारोबार करोड़ों तक पहुंच गया है। अधिकतर कोचिंग संस्थान रजिस्ट्रड भी नहीं है। ये लोग टैक्स की भी चोरी कर रहें है। इनपर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। राज्य के बाहर के कई कोचिंग संस्थान भी पटना में काँरपोरेट टाइप के कोचिंग संस्थान खोलने में लगे हुये हैं। इनके आने से पहले यहां के कोचिंग संस्थानों में हड़कंप भी मचा हुआ है।

तमाम कोचिंग संस्थान छात्रों से मनमानी फीस वसूल रहे हैं। विभिन्न कोर्सों के लिए एक छात्र से करीब नब्बें हजार से लेकर ढ़ाई लाख रुपये तक लिये जाते हैं। छात्रों को गाय भैंस की तरह क्लास में ठूंस दिया जाता है और शिक्षक पढ़ाने के लिए माइक का इस्तेमाल करते हैं। किसी भी छात्र की  हिम्मत नहीं होती कि वह शिक्षक से सवाल पूछे। यदि कोई छात्र हिम्मत जुटा कर सवाल पूछ भी दिया उसे यह कहते हुये चुप करा दिया जाता है कि दूसरे छात्रों का समय वह बर्बाद न करे। वैसे भी माइक से पढ़ाने वाले शिक्षकों के कानों में छात्रों की आवाज नहीं आती है।

कोचिंग संचालकों के मनमानी के कारण दो साल पहले राज्य के राजधानी पटना में हंगामा भी हो चुका है। 2010 के आठ फरवरी को कोचिंग संस्थानों के खिलाफ छात्रों का आक्रोश फूटा पड़ा था। नीरज कुमार के कोचिंग से घटना की शुरूआत हुई । एक छात्र द्वारा सवाल पूछने पर गालियां दी गई। छात्रों के विरोध पर धक्का मुक्की की गई। समय पर कोर्स पूरा नहीं किए जाने से छात्रों की नाराजगी पहले से ही थी । इस घटना ने आग में घी का काम किया। 9 फरवरी को शहर का एक बड़ा हिस्सा छात्रों के आक्रोश का शिकार हो गया। तीन दिनों तक लगातार चले आंदोलन के बाद जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली से पटना पहुंचे तो मामले को शांत कराया गया।

पटना में फरवरी 2010 में कोचिंग संचालक एवं छात्रो के बीच विवाद उत्पन हुआ था। तब बिहार सरकार ने कोचिंग विधेयक लाने की बात कही थी। सभी कोचिंग संचालकों को कानून के दायरे में लाने की बात हुई थी।  बाद में कोचिंग कानून भी बना। लेकिन कानून को अमली जामा नहीं पहनाया गया। कोचिंग संचालकों को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए निर्देश दिए गये। लगभग करीब ढाई सौ कोचिंग संस्थानो ने रजिस्ट्रेशन कराए। सभी संस्थानों के लिए एक नियमावली तैयार की गई जिसके तहत सभी कोचिंग संस्थानों को समय पर सिलेबस तैयार कराना था। सभी के लिए सीटों की व्यवस्था निर्धारित की गई। लेकिन एक भी कोचिंग संस्थान  मानदंड़ पर खरे नही उतर रहे हैं।

कोचिंग स्थान नियमों को ताक पर रखकर कमाई करने में जुटे हुये हैं। इसके पीछे वे तर्क देते है की फईनेंसियल दिक्कत है। कारण कि जो भी कोचिंग संस्थान है वे किराये के मकान में चल रहे है। मकान मालिक के बगैर अनुमति के तोड़ फोड़ नहीं कर सकते। इसके अलाव उनका कहना है कि एक बैच में यदि अधिक से अधिक छात्रों को पढ़ाकर उन्हें सस्ती शिक्षा दे पाएंगे।  उनका कहना है कि  सरकार की नीति है कोचिंग संस्थानों को तंग करने के लिए है, जिसका सभी कोचिंग संस्थान विरोध करते हैं।

मजे की बात है कि कोचिंग के इस गोरख धंधे में कई एसे लोग शामिल हैं जिनका शिक्षा से दूर-दूर संबंध नहीं रहा है। वे सिर्फ अपना दुकानदारी चला रहे हैं। उनको बच्चों के भविष्य से कुछ लेना देना नहीं है। राज्य के बाहर के संपन्न धनासेठ कोंचिग के इस धंधे में अपनी पूंजी लगाए हैं। उनको तो सिर्फ मुनाफा से मतलब है। और मुनाफा के लिए जरूरी है कि अधिक से अधिक बच्चें उनकी जाल में फंसे। इसके लिए वह जमकर प्रचार करते हैं। यहां तक कि बिहार से निकलने वाले तमाम दैनिक समाचार पत्र इनके विज्ञापनों से पटा रहा है। ऐसे में सारे समाचार पत्र भी कोचिंग संस्थानों में जारी लूट खसोट पर चुपी साधे हुये हैं, क्योंकि विज्ञापन के रूप में लूट का हिस्सा मीडिया को भी मिलता है। और इन संस्थानों के चमकते हुये चेहरे को बिहार के विकास से जोड़ने में मीडिया को भी सहूलियत होती है।

कोचिंग के फलने फूलने में राज्य सरकार एवं राजनीतिज्ञों की भूमिका अहम रही है। सभी कोचिंग संस्थों में कोई न कई राजनेता का फोटो बतौर गेस्ट जरूर मिल जायेगा। उन्हें स्वागत करते हुये कोचिग संचालक या तो बूकलेट देते हुये, या किसी तरह के पुरस्कार ग्रहण करते हुये बड़ा सा फोटो आपको दिख ही जायेगा।

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