बिहार में शिक्षा माफियाओं का निवाला बन रही है नई पीढ़ी

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बालिका साइकिल योजना की सफलता भले ही नीतीश कुमार को दोबारा सत्ता में दाखिल कराने में सहायक रही, लेकिन जिस तरह से नीतीश कुमार के शासन काल में शिक्षा माफियाओं का वर्चस्व बढ़ा है वह चिंता का विषय है। एक ओर राज्य सरकार द्वारा स्कूलों और कालेजों को दुरुस्त करने की बात की जा रही है, तो दूसरी ओर शिक्षा माफिया सूबे में अपनी पैठ मजबूती से बनाते जा रहे हैं। राजधानी पटना तो पूरी तरह से शिक्षा माफियाओं के गिरफ्त में है और यह संस्कृति सूबे के दूर दराज के इलाकों में भी तेजी से पैर पसार रही है। पटना में देश के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में दाखिला की तैयारी कराने के लिए हजारों की संख्या में निजी कोचिंग संस्थान खुले हुये हैं जो पूरी तरह से बेलगाम हैं। इन निजी कोचिंग संस्थानों के आसान शिकार ग्रामीण इलाकों के छात्र हो रहे हैं।

बिहार में एक अदना सा आदमी भी यही चाहता है कि उसके बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले। नव उदारवाद के इस दौर में तकनीकी व प्रबंधन शिक्षा के प्रति लोगों को रुझान बढ़ा है। मोटी सैलरी के साथ-साथ एक बेहतर लाइफ स्टाइल की चाह में सूबे की नई पीढ़ी तकनीकी शिक्षा हासिल करने के लिए लालायित दिख रही है और इसी का भरपूर फायदा निजी शैक्षणिक संस्थान वाले उठा रहे हैं। राजधानी पटना की तमाम सड़कें शत प्रतिशत सफलता का दावा करने वाले निजी शैक्षणिक संस्थानों के होर्डिंग से अटे पड़े हैं। इतना ही इन निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा दूर दराजके ग्रामीण इलाकों में भी छात्र-छात्राओं को आकर्षित करने के लिए सघन अभियान चलाया जा रहा है। अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दिलाने के लिए ग्रामीण इलाकों के लोग अपना पेट काटकर पैसे का इंतजाम कर रहे हैं। यहां तक की अपनी पुश्तैनी जमीन को भी बेचने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। उनकी बस एक ही इच्छा है कि किसी तरह से उनके बच्चे मनोकूल शिक्षा हासिल करने में सफल हो जाये। लेकिन उन्हें पता नहीं है कि राजधानी पटना में खुले निजी शैक्षणिक संस्थान किस तरह से संगठित गिरोह की तरह उन्हें लूट रहे हैं। मजे की बात यह है कि इन निजी संस्थानों में दाखिला के पूर्व ही छात्र-छात्राओं से पूरी फीस वसुल ली जाती है। कुछ दिन पढ़ने के बाद जब छात्र-छात्राओं को यह अहसास होता है कि पढ़ाई का स्तर निहायत ही घटिया है तो वे अपन आप को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं। ऐसी स्थिति में जब वे प्रबंधन से शिकायत करते हैं तो उन्हें कह दिया जाता है कि पढ़ना है तो पढ़ो, नहीं तो रास्ता नापो। अपने पैसे वापस मांगने की स्थिति में उन्हें किराये के गुंडों द्वारा तरह-तरह से धमकाया भी जाता है।

निजी शैक्षणिक संस्थाओं में छात्रों के साथ हो रही इस धोखाधड़ी की शिकायत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार तक भी पहुंच चुकी है। ऊपरी तौर पर इन शैक्षणिक संस्थाओं को रेग्यूलेट करने की बात तो सरकार कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत में अभी तक कोई खास बदलाव होता हुआ नहीं दिख रहा है। यहां तक कि सुपर 30 के संस्थापक आनंद के खिलाफ भी एक छात्रा के साथ  पैसों को लेकर बदसलूकी का मामला आ चुका है। लेकिन इन तमाम बदसलूकी के बावजूद निजी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं की भीड़ लगी रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा दी जा रही शिक्षा में कोई गड़बड़ी है, जिसकी वजह से छात्र-छात्राओं को अपना भविष्य संवारने के लिए इन निजी शैक्षणिक संस्थानों की शरण में आना पड़ता है?

सूबे में विकास और सुशासन का नारा देने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने प्रथम कार्यकाल में ही प्राइमरी शिक्षकों को ठेकेदारी प्रथा में लाकर पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही नव उदारवादी माडेल पर ढकेल दिया है। रिश्वत लेकर बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को शिक्षक बनाया गया जिनकी बुनियाद काफी कमजोर थी। अब ऐसे शिक्षक भावी पीढ़ी को कैसी शिक्षा देंगे इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। सूबे के तमाम स्कूलों और कालजों में योग्य शिक्षकों का अभाव होता जा रहा है। ऐसे में स्वाभाविकतौर पर निजी शैक्षणिक संस्थानों के लिए बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के नाम पर लूट-खसोट का रास्ता साफ हो जाता है। निजी शैक्षणिक संस्थान वाले भी यही चाहते हैं कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाये, ताकि उनके लिए लूट-खसोट के अवसर में और इजाफा हो।

सबसे बुरी स्थिति तो उन अभिभावकों की है जो कर्ज लेकर अपने बच्चों को निजी शैक्षणिक संस्थानों में भेज रहे हैं। उनका पैसा तो बर्बाद हो ही रहा है साथ ही बच्चों का भविष्य भी खऱाब हो रहा है। हर साल देश भर के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में सफल वाले छात्र-छात्राओं की लंबी-चौड़ी सूची यहां से प्रकाशित होने वाली अखबारों में जोर-शोर से प्रकाशित की जाती है, लेकिन उन छात्र –छात्राओं को कहीं कोई जिक्र नहीं होता जो इस नवीन व्यवस्था में पूरी तरह से टूटते जा रहे हैं। जेपी आंदोलन से निकलने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अवसर की समानता के सिद्धांत को पूरी तरह से ताक पर रखकर सूबे की शिक्षा-व्यवस्था के साथ खेलवाड़ कर रहे हैं। साइकिल योजना को तो नये प्रारुप में ढाला तो जा रहा है, और जोर शोर से इसका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है, लेकिन बुनियादी तौर पर योग्य शिक्षक को गढ़ने की कवायद देखने को नहीं मिल रही है। सूबे को बेहतर बुनियादी शिक्षा की सख्त जरूरत है, इसकी अनदेखी करके विकास को गति देने की बात महज एक दिवास्वपन ही साबित होने वाला है। चमक-दमक के साथ विकास का यह कतई मतलब नहीं है कि नींव को ही कमजोर कर दिया जाये और सूबे की नई पीढ़ी को सहजता के साथ शिक्षा माफियाओं का निवाला बनने के लिए छोड़ दिया जाये।

2 COMMENTS

  1. फिर वही हाल! आप लिख गये। सोच रहा था कि इस पर लिखूँ। वैसे लूट पर तो लिखा है यहाँ भी। शिक्षक, खासकर पटना के अमीर शिक्षक बहुत खुश हैं सरकार से, कारण यही लूट की छूट है। इसपर लिखना है जल्द ही।

  2. private participation in education is good indication but it must be regulated and
    controlled by goverment and deo….ncert standard and fees must be controlled by govt.

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