मनरेगा: जन्म लेती विकास की संभावनाएं
-अक्षय नेमा मेख//
केंद्र सरकार का मनरेगा अभियान ग्रामीण हितों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ. 2009 से 2012 तक मनरेगा ने भारत भर में 37 % रोजगार मुहैया कराया है. जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति खपत में 19 % का इजाफा हुआ है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार 25 साल में पहली बार खपत के ग्राफ में बढोतरी दर्ज हुई है. जिससे यह सिध्द होता है कि भारतीय ग्रामीण अब खेती तक सीमित न रहकर,मेहनत व मजदूरी में एक कदम आगे बढे है. आर्थिक सुधार के आकड़े सामने आये हैं. जिनमें शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा बीते चार सालों में ग्रामीणों ने भारतीय बाजार से 3750 करोड़ रूपये की खरीदी की है. जबकि शहरी क्षेत्रों में खरीदी केवल 2970 करोड़ रूपये की ही दर्ज हो सकी है. मनरेगा की बढ़ती शाख ने खर्च करने के हिसाब से शहरों को पीछे छोड़ा है. गांवों के घरों- घर खुद बाजार ने दस्तक दी है. जिससे गांवों में टीवी, दोपहिया,और मोबाईल की मागें भी बढ़ी है. प्रति व्यक्ति आमदनी में भी इजाफा हुआ है. तभी गांवों में प्रति दूसरे व्यक्ति के पास मोबाईल व तीसरे परिवार के पास दोपहिया वाहन उपलब्ध हो सका है.
मनरेगा के अलावा इन्फ्रा क्षेत्र व FMCG जैसी कम्पनियों का गांवों की तरफ रुख ग्रामीणों की आमदनी को और अधिक मजबूत कर रहा है. लेकिन फिर भी भारत में स्थाई विकास की संभावनाएं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती. यहाँ व्याप्त गरीबी, भुखमरी व बेरोजगारी बेइंतिहा बढती जा रही है। रोजाना करीब 6 करोड़ की आबादी भूखी सो रही है और भारतीय आंकड़े बेरोजगारी को कम मन रहे है। यदि इन आंकड़ों पर गौर किया जाये तो भारत एक गरीब देश की श्रेणी से बाहर नहीं निकल पाया है, जिसकी यह छाप रोजगारों को प्रभावित कर रही है। जबकि बेरोजगारी का आकलन शिक्षित बेरोजगारों से लगाया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के अलावा एक बड़ा स्तर पशुओं पर भी आश्रित है। जिनमें गाय, भैंस व बकरी जैसे पालतू जानवर सामिल है। इन जानवरों से ग्रामीण या किसान दूध निकालकर डेयरियों में या घरों-घर बेचकर अच्छा मुनाफा कम रहे है। लेकिन फिर भी वैश्विक मंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था किस तरह डगमगाई है और भारत में FDI की नौबत क्यों आई? इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010-11में 44 अरब डालर का निवेश भारत के उघोग पतियों ने भारत की अपेक्षा विदेशों में किया, जबकि इसी दौरान देश में कुल 27 अरब डालर का ही निवेश हो सका। यदि बीते दिनों भारत के वित्तीय घाटे पर ध्यान दिया जाये तो वर्ष 2008-09 में भारत का वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.2 फीसदी था और राजस्व घाटा वित्तीय घाटे का 75.2 फीसदी था। बाद में वर्ष 2009-10 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 6.6 फीसदी था और राजस्व घाटा वित्तीय घाटे का 80.7 फीसदी रहा था।
हाँ यह जरुर है कि FDI से भारतीय हितों की अपेक्षा नुकसान अधिक है पर इन नुकसानों पर भी सरकार चाहे तो काबू पा सकती है। इसके लिए उसे विदेशी निवेशकों के लिए एक शर्त रखनी होगी जिसके अनुसार निवेशकों द्वारा भारतीय बाजार से कमाई गई रकम या मुनाफें को भारतीय बैंकों में ही रखना होगा, उन्हें यह रकम वापिस ले जाने की अनुमति नहीं होगी। यदि सरकार यह सख्त कदम उठा पाती है तो भारतीय रूपये की स्थिति में भी सुधर आयेगा, साथ ही वित्तीय घाटे व राजस्व घाटे को कम किया जा सकेगा।
वैसे FDI के आने से भारत में उघोगो का स्तर बढेगा। नए बाजारवाद का उदय व विकास होगा। भारत में निवेशकों की संख्या में इजाफा होगा जिससे यहाँ की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की हल होगी। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण किसानों, मजदूरों व छोटे व्यापारियों को FDI से नुकसान न होने की बात कही थी। उन्होंने साफ कहा था कि FDI से भारत को फायदा होगा। इससे हमारा IT सेक्टर मजबूत होगा तथा करेब 1 करोड़ नौकरियां भारतियों को दी जाएगी। यही कारण है कि भारत की बढ़ती विकास दर के हिसाब से FDI का मसौदा कुछ भी मंहगा नहीं है। बल्कि अन्य सियासी दल अपनी सियासत के लिए इस मसौदे को मंहगा साबित करने में लगे है और भारत के विकास में बाधा डाल रहे हैं। मगर हम सभी भारतीयों को सियासत अलग रख कर एक बार भारत के विकास की संभावनाओं पर विचार करके देखना चाहिए।