अंदाजे बयां
मानव ने प्रकृति से बहुत खेल खेला… (कविता)
दीपशिखा शर्मा
सावन की घटा छाई
रिमझिम बूंदों की सवारी संग आई ,
हर जगह पहले तो वर्षा की खुशी थी छाई
फिर कैसे दुखों की घड़ी है आई।
रिमझिम बूंदों का जो ख्वाब था सुनहरा
चारों तरफ हरियाली का था डेरा ,
सुख – समृद्धि का लगा था जैसे मेला
वहां आज पानी का है बसेरा
चारों तरफ बाढ़ का है घेरा।
प्रकृति रुप ये है अलबेला ,
मानव ने प्रकृति से बहुत खेल खेला ,
प्रदुषण से कर दिया इसे मैला
अब प्रकृति पर पड़े प्रभाव का दुष्प्रभाव है मानव ने झेला
सुनहरे सावन का विनाशक रुप है फैला
अभी भी नहीं जो मानव समझा ,
तो प्रकृति का रुप हो जाएगा विषैला….
कुछ ऐसी ही कविता मैंने भी लिखी थी आज से 6-7 साल पहले। साफ कहूँ तो कविता लिखने वाली अभी कविता की शुरुआत कर रही हैं, ऐसा मेरा मानना है। तुक तो है लेकिन प्रवाह और लय नहीं लेकिन भाव तो सच बयान कर रहा है कि मानव ने प्रकृति का शोषण जम कर किया है। लेकिन आश्चर्य है कि मानव ने प्रकृति के खिलाफ़ चलने से ही उन्नति भी की है। http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009_04_01_archive.html अवश्य देखें अगर आप इस प्रकृति के साथ संघर्ष को समझना चाहते हैं और इस लिंक को मानव को समझने के लिए मैं अत्यन्त सशक्त मानता हूँ।
nice
manav ne prakrati ke sath bahut chhed-chhad ki hai uska ye parinam hai ki aaj manv ko sans tak lena muskal ho gaya hai …. manav ne paryawaran ko bahut doosit kiya hai. usne apne upbhoog ke liye prakrti ka apman kiya hai.Too ab prakrti ka koap se koi nahi bach payega …..
-bhookamp , badh, sookha, jalplawan, anbdhi-toofan se manav ki bahut badi hani hogi or ho rahi hai. maira aap se nivedan hai ki prakrati se chhed-chhad or uska apman na karen…………