बलात्कार क्यों… कौन… और किसलिए ?

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अरविन्द कुमार पप्पू //

यूं तो मेरा इस विषय पर विचार, शोध और जानकारी निश्चित रूप से
विवादित, हास्यास्पद एवं मूर्खतापूर्ण ही लगेगा और यह मैं मान कर ही चल रहा
हूँ और मूर्ख और पप्पू पप्पू ही रह गया का उपमा स्वीकार करने को तैयार
हूँ !
निश्चितरूप से जब पूरे संसार में आजादी पाने के लिए सिवाय हिंसा आजादी की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उस हिंसक परंपरा को तोड़ कर महात्मा गाँधी जी ने अहिन्सात्मक आन्दोलन का सृजन किया और आज पूरे विश्व ने इसका अनुशरण किया। शुरुआती दौर में गाँधी जी को भी लोगों ने मूर्ख से ही संबोधित किया था। ये हाल तो परंपरा तोड़ने वालों का होता ही है, कुछ ऐसा ही हाल राजा राम मोहन राय का भी सती प्रथा के विगुल फूंकने पर हुआ था। वर्तमान में अभी हाल  के दिनों में उच्चतम नायालय ने सामाजिक परंपरा को तोड़ते हुए समलैंगिक को जायज ठहराया है। आज इस विषय पर समाज भी असहज महसूस करता है परन्तु आज के परिपेक्ष्य में ये अव्यवहारिक लगता है परन्तु कल निश्चय ही ये समाजिक स्तर पर विचारणीय होगा।
बलात्कार क्यों ? कौन ? और किसलिए ? के बीच चर्चा जोरों पर कुचालें भर रहा है, तमाम टीवी चैनल और सड़क से ले कर संसद तक सभी तरफ इसे रोकने और फांसी की सजा दिलाने की नाकाम और पुरजोर कोशिश की जा रही है। नाना प्रकार की बातें छन-छन  कर आ रही हैं जैसे कुंठित मानसिकता , दरिंदगी भरे कारनामें , विक्षिप्तता के परिचायक वगैरह।
परन्तु मूल प्रश्न आज  भी यक्ष की तरह विराजमान है।
अ) बलात्कार होता है …… क्यों ?,
ब )  बलात्कार करता  है …..कौन?
स) बलात्कार होता है …..किसलिए ?
अ ) क्यों ?….आम लोगों की भाषा में विक्षिप्त,विकृत, दरिंदा, वहशी,निराश, महिलाओं को खिलौना समझने वाला ही बलात्कारी हो सकता है परन्तु मेरा मत भिन्न है।  बलात्कार के कारणों में मुख्य कारण है–
”कुंठा ” जो शरीर का स्वाभाविक भूख जिसकी आवश्यकता होने पर ना मिटा पाना और उसके फलस्वरूप उसका कुंठित होना और कुंथाधारी व्यक्ति को मौका मिले तो उसके मानसिक संतुलन में दंरिन्दगी हावी हो जाती है।
ब) बलात्कारी कौन ?…….. फिर वही प्रश्न जिसका उत्तर भी वही रटी रटाई विक्षिप्त, विकृत, दरिंदा, वहशी, निराश, महिलाओं को खिलौना समझने वाला वगैरह। मेरा मत है कि अधिकांश बलात्कारी वैसे शादीशुदा व्यक्ति होते हैं, जो अपने परिवार से दूर कमाने के लिए अकेले रहते हैं और बलात्कारी यदि समूह में हो तो उकसाने में उनकी अहम भूमिका होती है।
स ) किसलिए ?…….. इसका उत्तर मैं निराकरण में देना चाहता  हूँ।
निराकरण
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आप जरा गौर फरमायें ”सुरक्षित यौन सम्बन्ध के लिए अपनाएं …. कंडोम ”  ये बातें आज से 30 वर्ष पहले संभव ना हुआ क्यों ? क्योंकि परिस्तिथियाँ अनुकूल नहीं थी , चुंकि परिस्तिथियाँ परिवर्तनशील होती है इसलिए आज 2012 में ये संभव हुआ और इस विज्ञापन पर विवाद शून्य है और सहमति अपार
बलात्कार रोकने का आसान रास्ता है परन्तु इसके लिए बृहत् सोच और निर्णय की आवश्यकता है, बड़े शहरों में ये बात आम हो चली हैं कि पार्कों और अन्य सार्वजनिक स्थलों में युवा से लेकर प्रौढ़ तक अपने साथियों के साथ अश्लील हरकत करते पाए जाते हैं। इसे देखकर बच्चों की मानसिक स्तिथियाँ क्या और
कैसी  होंगी  इसका अंदाजा आप स्वयं  लगाये। बड़े शहरों में ये देखा गया है कि एकांत के गुजारने में बहुत कठिनाई होती है। 80 % आबादी छोटे-छोटे घरों में या झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जहाँ पति पत्नी को भी एकांत का पल बा- मुश्किल से नसीन होता है और उन लोगों के लिए तो और मुश्किल है जो अपने परिवार से दूर अकेला ही अपने कुंठित जीवन जीने को बाध्य होते हैं। अपने स्वाभाविक शारीरिक भूख मिटा पाने की इच्छा होते हुए भी सम्भव नहीं हो पाता बावजूद इसके कि उसकी महिला मित्र एकांत के पल में सहयोग करने को सहमत होती है। इसप्रकार के समाधान और एकांत का पल न मिलना ही कुंठा से
परिपूर्ण रहता है। इस कुंठा रहित ही बलात्कार को रोकने का मूल मंत्र है। सरकार को बड़े शहरों में ”मिलन स्थल ” का निर्माण करना चाहिए जहाँ कम पैसे देकर निश्चित अवधि के लिए वयस्कों को एकांत का पल मुहैया कराया जा सके और जिसमें उस व्यक्ति की पहचान पूर्ण रूप से गुप्त हो। इस प्रक्रिया
से दो सहमत व्यस्क अपनी स्वभाविक शारीरिक भूख शांत करेंगे और अपनी कुंठित जीवन जीने को बाध्य नहीं होंगे फलतः बलात्कार की घटना में अप्रत्याशित  रूप से कमी आएगी और सरकार को राजस्व की प्राप्ति का एक और मार्ग प्रशस्त होगा । याद  रखिये हर बलात्कारी बलात्कार के बाद अफसोस जाहिर करता है, मतलब स्पस्ट है शारीरिक भूख न मिटा पाने की कुंठा ही उसे हैवानित की ऒर धकेलती
है , यदि कुंठा ही न हो तो हैवानियत कैसी ?

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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