मैं क्वालिटी में देने में यकीन रखती हूँ सुशीला भाटिया

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राजू बोहरा, नई दिल्ली

निर्मात्री-निर्देशिका सुशीला भाटिया का नाम छोटे-पर्दे के दर्शकें के लिए किसी खास परिचय का मोहताज नहीं है। वह पिछले बीस वर्षों से छोटे पर्दे से जुड़ी हैं और दूरदर्शन के नेशनल चैनल्स से लेकर रीजनल चैनल्स तक से अलग-अलग रूप में जुड़ी रही हैं। कहीं बतौर एंकर जुड़ी रही तो कहीं बतौर निर्मात्री-निर्देशिका के तौर पर कई धारावाहिको व कार्यक्रम बनाये हैं। आजकल वह अपने नये धारावाहिक इम्तिहान को लेकर चर्चा में हैं जिसका सफल प्रसारण इन दिनों दूरदर्शन के नेशनल चैनल डीडी वन पर हर बुधवार और गुरुवार को रात साढ़े“ दस बजे हो रहा है। इम्तिहान अपने अलग तरह के सब्जेक्ट को लेकर बहुत जल्दी दर्शकों में खास लोकप्रिय हो गया है। उनके इस लोकप्रिय धारावाहिक को लेकर छोटे पर्दे की इस चर्चित निर्मात्री और निर्देशिका से खास बातचीत की प्रस्तुत है उसके प्रमुख अंश-

आपके नये धारावाहिक इम्तिहान की इन दिनों काफी चर्चा हो रही है, यह किस तरह का धारावाहिक है और इसकी यूएसपी क्या है ?

मेरा धारावाहिक इम्तिहान एक पारिवारिक धारावाहिक है जिसमें मैंने एक नये तरह के सब्जेक्ट को उठाया है। इसकी यूएसपी इसका अलग तरह का सब्जेक्ट और बेहतरीन स्टार कास्ट व मेकिंग हैं। हम क्वालिटी में किसी तरह का समझौता नहीं कर रहे हैं। यह धारावाहिक पूरब और पश्चिम की दो अलग-अलग संस्कृति पर आधारित है। दोनों कल्चर के माइनस प्वाइंट और प्लस प्र्वाइंट को हम इसमें दिखा रहे हैं।

इसकी कहानी में आप पूरब और पश्चिम की संस्कृतिक को दिखा रही हैं तो खुद आपने दोनों कल्चर को करीब से देखा है, आप किससे ज्यादा प्रभावित हैं ?

हाँ, मैं लगभग सभी देशों में जाती रही हूँ। जहर-जगह का कल्चर देखने का मौका मिला है, लेकिन सच यही है कि जो बात पूरब यानी हमारी संस्कृति में है वो पश्चिम की संस्कृति में नहीं है। यहां प्यार है, अपनापन है, आध्यात्मिक ज्ञान है जो बाहर नहीं दिखता है। हालांकि में किसी कल्चर की बुराई को नहीं दिखा रही हूँ बल्कि दोनों कल्चर के माइनस और प्लस प्र्वाइंट की दिखा रही हूँ। एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि अब पश्चिम के लोग भी काफी बदल रहे हैं। वो हमारी सभ्यता, संस्कृति को अपना रहे हैं और हम पश्चिम की संस्कृति में दिन ब दिन रंगते जा रहे हैं जो ठीक नहीं है। वही सब बातें हम धारावाहिक इम्तिहान के माध्यम से लोगों के बता रहे हैं।

आपने देश-विदेश के कल्चर को काफी करीब से देखा है, बच्चों पर माहौल का आपके हिसाब से कितना फर्क पड़ता है?

बच्चों पर माहौल का फर्क पड़ता ही है, जिस माहौल में बच्चे रहते हैं उसी माहौल को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं। हमारी कहानी एक ऐसे परिवार को फोकस करती है जो वर्षों से कनाड़ा में रह रहा है मगर आज भी उन्हें अपने वतन, अपने कल्चर से प्यार है। अपनी सभ्यता, संस्कृति को वो वर्षों बाद भी भूल नहीं पाये हैं भले ही वो हिन्दुस्तान से दूर सात समुन्दर पार ही क्यों न रह रहे हों। हमने इसमें एक मैसिज यह भी दिया है कि आज के समय में अभिभावकों को अपने बच्चों पर ज्यादा पाबंदियां नहीं लगानी चाहिए क्योंकि कई बार ज्यादा रोकटोक के चलते बच्चों में विद्रोह की भावना पनपने लगती है जिससे वो अपनी मनमानी करने पर उतारू हो जाते हैं।

इम्तिहान में राजीव वर्मा, रोहिणी हटगंडी, निशिगंधा वाड, मुग्धा शाह, आम्रपाली गुप्ता, जैसे कई नामी गिरामी कलाकार काम कर रहे हैं उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा है?

काफी अच्छा अनुभव हो रहा है। लगभग सभी कलाकारों के साथ मैं पहले भी काम कर चुकी हूँ। चाहे वो राजीव वर्मा हों, रोहिणी हटंगडी हों या कोई और। इसमें राजीव वर्मा की तो कमाल की भूमिका है।

आपने अब तक ज्यादातर धारावाहिकों का निर्माण व निर्देशन दूरदर्शन के लिये ही किया है। इसकी कोई खास वजह?

शुरू से लेकर आज के इस आधुनिक दौर तक दूरदर्शन ही हमारा एक ऐसा चैनल है जो अर्थपूर्ण धारावाहिक प्रसारित करता है। शहरों को छोड़ दें तो आज भी गांव-गांव में सिर्फ दूरदर्शन ही देखा जाता है। मैं हमेशा अच्छे विषय वाले शालीनता वाले धारावाहिक बनाती हूँ जो सिर्फ दूरदर्शन दिखाता है। दूरदर्शन आज भी पूरब की संस्कृति और सभ्यता वाले धारावाहिक दिखाता है जबकि अन्य अपनी टीआरपी बनाने के लिए चैनल पश्चिम की संस्कृति को ज्यादा फोकस करते हैं। मैंने साहित्य पर काफी काम किया है और आगे भी कर रही हूँ। साहित्य समाज का आईना होता है, इसीलिये मैं दूरदर्शन के लिये काम ज्यादा करती हूँ।

दर्शकों की कसौटी पर हमेशा खरा उतरना कितना मुश्किल होता है?

अच्छा काम करने में दिक्कत तो आती है पर आत्म-संतुष्टि भी मिलती है। मैं हमेशा क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी फर्क करने में विश्वास रखती हूँ। यह बात सबको हमारे धारावाहिक इम्तिहान से भी बखूबी पता चल रही है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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