लेखिका वन्दना यादव की सैनिको की पत्नियों के जीवन पर लिखित उपन्यास “कितने मोर्चे” का सफल विमोचन

रिपोर्ट राजू बोहरा, नईदिल्ली,
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रवि पिक्चरर्स मुंबई के बैनर तले नयी दिल्ली के काँन्सीट्यूशन क्लब स्पीकर हाल में फौजियों की पत्नियों के जीवन संघर्ष पर लिखित वन्दना यादव के उपन्यास “कितने मोर्चे“ का विमोचन संम्पन हुआ, विमोचन के अवसर पर देश के अलग-अलग क्षेत्र के अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे जिनमे प्रो.पुष्पिता अवस्थी साहित्यकार नीदरलैंड, लक्ष्मी शंकर वाजपाई वरिष्ठ साहित्यकार एवं पूर्व सह महानिदेशक आकाशवाणी, सत्यकेतु  साकृत प्रो.एवं आलोचक, अरुण भगत प्रो.माखनलाल चतुर्वेदी विश्व विद्यालय नोएडा, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, कर्नल डी आर सेमवाल, तथा कथाकार व संपादक प्रेम भारद्वाज आदि मुख्य रूप से शामिल थे, इन्ही ही गणमान्य ने किताब को लॉन्च किया
इस अवसर पर संचालन अभिनेता एवं कवि रवि यादव मुंबई ने किया, वन्दना यादव एक लेखिका, कवयित्री एवं समाज सेविका है, यह उनकी बतौर लेखिका छठी किताब है, इससे पहले उनकी काव्य संग्रह और कहानियो पर 5 किताबे आ चुकी है, अपने इस उपन्यास के बारे में वन्दना यादव के कहा की यह सच है कि देश फौजियों के हौसलों पर सुरक्षित रहता है पर फौजी सिर्फ और सिर्फ अपनी पत्नियों के भरोसे सारी जिम्मेदारियाँ छोड़ कर सरहदों पर हमारे लिए ड़टे रहते हैं।
फौजियों के जीवन की असली सैनिकों को केन्द्र में रख कर लिखा गया है यह उपन्यास वे जो जीवन का संघर्ष अकेले लड़ती हैं, बच्चों की परवरिश और बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाए रखती हैं और तो और सरहद के तनाव भी उन्हीं के हिस्से में आते हैं, वे अकेली जीवन के सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक ना जाने कितने मोर्चे सम्हाले रहती हैं। वन्दना यादव के इस उपन्यास को अनन्या प्रकाशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है जिसका मूल्य साढ़े तीन सौ रूपये हैं।

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