विभूति नारायण राय फणीश्वर नाथ रेणु साहित्य सम्मान से हुए पुरस्कृत
सांस्कृतिक कार्यक्रमों से हुआ भव्य स्वागत, असम के बिहु ने लोगों का मन मोहा
सहरसा, 08 नवम्बर, 2012; शहर सहरसा, कोसी अंचल की अदबी रवायत व गंगा-कोसी तहजीब के लिए वुधवार का दिन यादगार क्षण था। मौका था- कला, संस्कृति तथा साहित्य संस्थान, बटोही द्वारा सहरसा के टाउन हॉल में आयोजित एक समारोह के दौरान महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति व सुप्रसिद्ध साहित्यकार विभूति नारायण राय को फणीश्वर नाथ रेणु साहित्य सम्मान, 2012 से सम्मानित किया जाना। दो दिवसीय (07 व 08 नवम्बर, 2012)अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव के अवसर पर पदम् श्री रामप्रसाद जायसवाल व त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमाण्डू के प्रो.सूर्यनाथ गोप ने कुलपति राय को पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र तथा एकतीस हजार रूपये भेंट कर सम्मानित किया। कोलकाता व असम से आए लोक कलाकारों ने अपनी कला से कुलपति राय का भव्य स्वागत किया।
कोसी अंचल में देशभर से आए साहित्य प्रेमियों को संबोधित करते हुए विभूति नारायण राय ने कहा कि मैं पहली बार यहां आकर बहुत प्रसन्न हूँ। रेणु रचित‘मैला ऑचल’ मेरे प्रिय उपन्यास रहे हैं। जब मैं ट्रेन से गुजर रहा था तो कई जगहों से परिचित था-तीसरी कसम फिल्म से तथा मैला आंचल को पढ़कर। उन्होंने कहा कि पहले सिर्फ कवियों को ही साहित्यकार समझा जाता था, लेकिन पहले प्रेमचंद और फिर फणीश्वरनाथ रेणु ने इस मिथक को तोड़ा। इन दोनों के ही कारण कथा साहित्य केंद्र में आ सका। रेणु की कृति अमर है। जिनका साहित्य देश ही नहीं पूरी दुनिया में कोसी अंचल को स्थापित कर इसकी पहचान बनायी है। यह धरती रचनात्मकता से भरी हुई है। कोसी अंचल, फणीश्वरनाथ रेणु, राजकमल चौधरी, विभूति भूषण बंधोपाध्याय, सतीनाथ भादु़ड़ी, बालयचंद बनफूल, अनूपलाल मण्डल जैसे महान साहित्य विभूतियों की सर्जन भूमि रही है। रेणु के नाम पर यह पुरस्कार मिलना मेरे लिए एक गौरव की बात है।
इस अवसर पर कवि वरूण कु.तिवारी ने कुलपति राय की रचनाधर्मिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री राय प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी साहित्य कर्म को अपनाया तथा इन्होंने सामाजिक सुधार के लिए अपने गांव में शिक्षा की अलख जगाने के लिए रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय खोला, जिससे वहॉं के नौजवान लाभान्वित हो रहे हैं। इनसे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि हम भी सामाजिक कार्यों में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकें।
साहित्यकार डॉ.शांति यादव ने कहा कि 28 नवम्बर, 1951 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मे विभूति नारायण राय 1975 बैच के यू.पी. कैडर के आई.पी.एस. अधिकारी हैं। विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार तथा पुलिस मैडल से सम्मानित राय एक संवेदनशील पुलिस अधिकारी के साथ-साथ प्रगतिशील चिंतक तथा एक उच्चकोटि के कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके द्वारा लिखित ‘घर’, ‘शहर में कर्फ्यू’, ‘तबादला’ ‘प्रेम की भूतकथा’ तथा ‘किस्सा लोकतंत्र’ हिंदी के बहुचर्चित उपन्यास हैं। ‘शहर में कर्फ्यू’ हिंदी के अलावा अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला, मराठी आदि भाषाओं में अनुदित हो चुका है। ‘तबादला’ पर उन्हें अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान तथा ‘किस्सा लोकतंत्र’ के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का सम्मान प्राप्त हुआ है। उपन्यासों के अलावा उनका व्यंग्य संग्रह ‘एक छात्र नेता का रोजनामचा’ और संस्मरण ‘हाशिमपुरा : उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास का एक काला अध्याय’ बहुचर्चित रचनाएं हैं। हिंदी जगत की चर्चित पत्रिका ‘वर्तमान साहित्य’ के पंद्रह वर्षों तक संपादन के साथ ‘समकालीन हिंदी कहानियॉं’ का संपादन उनका उल्लेखनीय कार्य है।
खचाखच भरे सभागार में शिपाझार, असम तथा इप्टा, कोलकाता द्वारा प्रो.ओम प्रकाश भारती लिखित नाटक ‘बांध टूटने दो’ का भव्य मंचन देवासीन बोस के निर्देशन में हुआ। अतिथियों का स्वागत करते हुए साहित्योत्सव के संयोजक प्रो.ओम प्रकाश भारती ने कहा कि श्री विभूति नारायण राय के आगमन से यह संपूर्ण कोसी अंचल अभिभूत हैं। श्री राय जैसे महान साहित्य विभूति को सम्मानित करते हुए कोसी अंचल स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। शुरू में नेन्सी एवं साथी द्वारा स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया। संगीत व स्वर रूपमश्री, खुशबू व मनोज राजा का था। असम के असीमनाथ के संयोजन में बिहु नृत्य आकर्षण का केंद्र बना रहा। दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का उद्घाटन किया गया तथा किसलय कृष्ण ने संचालन किया। इस अवसर पर प्रो.सुभाष चन्द्र यादव, प्रो.विनय कु.चौधरी, डॉ.गयाधर यादव,अमित विश्वास, डॉ.अखिलेश अखिल, बटोही के सचिव डॉ.महेन्द्र सहित बड़ी संख्या में कोसी अंचल के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।