इन्फोटेन

शोखी का पर्याय एक थीं दिव्या भारती

शोख,चुलबुली और देहाभिनय की एक नई भाषा गढ़ने वाली दिव्या भारती की याद है क्या आप सब को अभी भी? चलिए हम ही याद दिला देते हैं। विश्वात्मा फ़िल्म में सपना मुखर्जी ने एक गाना गाया था, ‘ओए-ओए !’ रातो-रात सपना मुखर्जी की धूम मच गई थी। यह गाना इन्हीं दिव्या भारती पर फ़िल्माया गया था। इस गाने ने दिव्या भारती को भी स्टार बना दिया था। एक बार तो लगा कि श्रीदेवी का सिंहासन अब दिव्या ही संभाल लेंगी। यह अस्सी के दशक के आखिर की बात है। पर फ़िल्मी पंडितों का यह कयास कयास ही रह गया। दिव्या भारती की दिव्य देह बिला गई। जो देह शोला बनने को बेताब थी, जुगनू बन कर बिसर गई। पर वह, उन की शोखी, उन की देह की मादकता और उस का जादू मन में जैसे अभी भी जस का तस शेष है। लेकिन वह हम से इतनी जल्दी इतनी दूर चली जाएंगी, भला किसे मालूम था? मालूम तो बहुत सारे लोगों को उन की शादी की बात भी नहीं थी, पर यह बेमेल शादी ही उन की जान की फांस बन गया। जिस शादी की खातिर उन्हों ने अपना नाम तक बदल डाला था। तब क्या पता था कि यह शादी उन के जीवन की सांसों पर लगाम लगा बैठेगी और उन के करोड़ों चहेतों का दिल बैठ जाएगा। इस में दिव्या का युवा दिलों पर चला जादू का जज्बा न जाने कितनों पर जानिसार था और न जाने कितने दिलों की धड़कन थी वह। यह उस की मौत के बाद दीवानगी की हद तक हुई कुछ घटनाओं से पता चला। वैसे छन-छन कर आई खबरों का खुलासा यह था कि दिव्या ने फ़िल्म इंडस्ट्री में पहली बार गोविंदा से दिल लगाया। ज़िंदगी में पहली बार दिव्या ने किस से और कहां दिल लगाया इस का ब्यौरा तो उपलब्ध नहीं, पर गोविंदा से दिल लगाना गोविंदा के बड़े भाई और फ़िल्म निर्माता कीर्ति कुमार को नहीं भाया। यहां तक कि ‘बोल राधा बोल’ से दिव्या को निकाल दिया गया। लेकिन ऐसा करते हुए कीर्ति कुमार खुद उस के ‘नज़दीक’ जाने के फेर में पड़ गए। लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। ‘शोला और शबनम’ फ़िल्म के सेट पर गोविंदा से मिलने गए साजिद नाडियाडवाला इस फ़िल्म की नायिका दिव्या भारती को पहली ही नज़र में दिल दे बैठे। फिर क्या था, मुलाकातें बढ़ीं और दोनों तरफ लगी आग में दोनों जलने लगे। मां-बाप की तमाम खिलाफत के बावजूद दोनों चुपके-चुपके परिणय सूत्र में बंध गए। 

शादी के बाद दिव्या की मां अपनी बेटी-दामाद के साथ खलनायकी करती रहीं। फ़ोन पर गालियां, धमकियां देती रहीं और गुंडों को साजिद के पीछे लगाती रहीं। नती्ज़तन साजिद-दिव्या का दांपत्य दरकने लगा और वह मानसिक रूप से डिस्टर्ब रहने लगीं। शायद इस लिए दिव्या के बीमा एजेंट पिता ओम प्रकाश भारती को जब दिव्या की मौत की खबर मिली तो उन्हों ने छूटते ही दिव्या की मौत का ज़िम्मेदार उस की मां को बताया। दिव्या के माता-पिता का दांपत्य भी कभी मधुर नहीं रहा, जिसके चलते दिव्या पहले ही से बिगड़ैल हो गई और शराब जैसी चीज़ें उस के लिए ‘टैबू’ नहीं रहीं। मरने की कोशिश उस ने पहले भी एक बार नस काट कर की थी, पर तब बच गई थी। अब की जैसे मौत उस को गोद में लेने को तैयार बैठी थी। परेशान वह पहले से ही थी। उसकी परेशानी के फ़िलहाल अब तक तीन कारणों का सार्वजनिक खुलासा हुआ है। एक तो यह कि मुंबई बम विस्फोट के सूत्रधार मेमन बंधुओं की साजिद की दोस्ती है, जिस के कारण दिव्या इधर बहुत परेशान हो कर खूब शराब पीने लगी थी। दूसरा, दिव्या के ‘दिल आशना है’ फ़िल्म में कैबरे दृश्यों से साजिद काफी नाराज थे। इसे ले कर दोनों में बोलचाल कुछ दिनों बंद तक रही। साजिद की माली हालत इधर बहुत खस्ताहाल हो गई थी। उस की फ़िल्में पिट रहीं थीं। नई फ़िल्म बनाने के लिए उसे कोई पैसा नहीं दे रहा था। सो, साजिद दिव्या को बार-बार लोगों से पैसा मांगने के लिए जोर डालता था। इस से भी दिव्या परेशान थीं। खास कर फ़िल्म निर्माता हनीफ और समीर की फ़िल्म ‘दिल ही तो है’ में दिव्या भारती ने काम भी किया था। इन्हीं हनीफ और समीर से दिव्या ने साजिद के कहने पर कर्ज लिया था और साजिद फिर दिव्या पर इन से और कर्ज मांगने के लिए दबाव डाल रहा था। दिव्या उस से कर्ज मांगने के लिए आना-कानी करने लगीं तो साजिद नाराज हो गया। 

अपनी पहली हिंदी फ़िल्म ‘विश्वात्मा’ में दिव्या भारती ने अभिनय का कोई खास धागा तो नहीं बुना, पर यह तो उन्हों ने जता ही दिया कि उन की देह में दम है। उन की शोखी और देह लावण्य जब एक साथ झलका तो लोग उन के कायल ही नहीं, दीवाने भी हो गए। ‘शोला और शबनम’ के बाद जब ‘दीवाना’ आई तो जैसे वह अपने चहेतों के लिए नायिका नहीं, नशा बन गर्इं। गोविंदा के बाद शाहरुख खान के साथ उन की जोड़ी सिर्फ फिट ही नहीं, बल्कि हिट भी हो चली थी। हालां कि वह ‘लाडला’ में अनिल कुमार के साथ भी आने वाली थीं, पर करोड़ों दिलों की लाडली ‘लाडला’ पूरी करने से पहले ही कूच कर गई। दिव्या का डंका तो बज गया था, पर वह डंका अभी परवान चढ़ना बाकी था। वह चटक शोखी अभी और चहकनी, चमकनी बाकी थी। वह शोखी और शरारत की सीढ़ियां जिस तेज़ी से चढ़ती हुई औचक सौंदर्य की रेखाएं गढ़ती जा रही थीं, उन्हें देख लगता था कि श्रीदेवी के हाथ से छूटता नंबर एक का सिंहासन दिव्या भारती ही संभालेगी। पर ऐसा भी नहीं हुआ। 

आखिर ऐसा क्यों है कि शोख और चुलबुली नायिकाओं के हिस्से ऐसे दुर्निवार संयोग पड़ जाते हैं? आप को ‘जूली’ फ़िल्म की याद है। जूली की नायिका लक्ष्मी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। इधर, ‘जूली लव यू’ की धूम मची और उधर लक्ष्मी ने आत्महत्या कर ली। रेखा, हेमा मालिनी, श्रीदेवी सरीखी शोख किंतु परेशानकुल अभिनेत्रियों की त्रासदी भी किसी से छिपी नहीं है। तब के साल फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार समारोह में जब दिव्या भारती नहीं आई और पुरस्कार पिता ने लिया, खटका तो तभी हो गया था। पर यह खटका भी इतनी जल्दी खड़क जाएगा, भला किसे मालूम था?

दयानंद पांडेय

अपनी कहानियों और उपन्यासों के मार्फ़त लगातार चर्चा में रहने वाले दयानंद पांडेय का जन्म 30 जनवरी, 1958 को गोरखपुर ज़िले के एक गांव बैदौली में हुआ। हिंदी में एम.ए. करने के पहले ही से वह पत्रकारिता में आ गए। वर्ष 1978 से पत्रकारिता। उन के उपन्यास और कहानियों आदि की कोई 26 पुस्तकें प्रकाशित हैं। लोक कवि अब गाते नहीं पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद सम्मान, कहानी संग्रह ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ पर यशपाल सम्मान तथा फ़ेसबुक में फंसे चेहरे पर सर्जना सम्मान। लोक कवि अब गाते नहीं का भोजपुरी अनुवाद डा. ओम प्रकाश सिंह द्वारा अंजोरिया पर प्रकाशित। बड़की दी का यक्ष प्रश्न का अंगरेजी में, बर्फ़ में फंसी मछली का पंजाबी में और मन्ना जल्दी आना का उर्दू में अनुवाद प्रकाशित। बांसगांव की मुनमुन, वे जो हारे हुए, हारमोनियम के हज़ार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाज़े, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास),सात प्रेम कहानियां, ग्यारह पारिवारिक कहानियां, ग्यारह प्रतिनिधि कहानियां, बर्फ़ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), कुछ मुलाकातें, कुछ बातें [सिनेमा, साहित्य, संगीत और कला क्षेत्र के लोगों के इंटरव्यू] यादों का मधुबन (संस्मरण), मीडिया तो अब काले धन की गोद में [लेखों का संग्रह], एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी [ राजनीतिक लेखों का संग्रह], सिनेमा-सिनेमा [फ़िल्मी लेख और इंटरव्यू], सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित) तथा सुनील गावस्कर की प्रसिद्ध किताब ‘माई आइडल्स’ का हिंदी अनुवाद ‘मेरे प्रिय खिलाड़ी’ नाम से तथा पॉलिन कोलर की 'आई वाज़ हिटलर्स मेड' के हिंदी अनुवाद 'मैं हिटलर की दासी थी' का संपादन प्रकाशित। सरोकारनामा ब्लाग sarokarnama.blogspot.in वेबसाइट: sarokarnama.com संपर्क : 5/7, डालीबाग आफ़िसर्स कालोनी, लखनऊ- 226001 0522-2207728 09335233424 09415130127 dayanand.pandey@yahoo.com dayanand.pandey.novelist@gmail.com Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest

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3 Comments

  1. kshama karen lekh uttam hai par ek suchna galat hai “julie” film ki nayika “lakshmi narayan “ne aatmhatya nhi ki wo aaj bhi jeevit hain …balki priyadarshan nirmit “hulchul “(pradarshit 2004) mein lakshmi ne kareena ki dadi ka role bhi kiya hai …

  2. अमृता जी सूचना बिलकुल सही है। कि जूली फ़िल्म की नायिका लक्ष्मी छाया ने आत्म-हत्या की थी। आप अपनी जानका्री दुरुस्त कर लें। वैसे भी आप लक्ष्मी नारायन की बात कर रही हैं। और मैं लक्ष्मी छाया की।

  3. मेरी जानकारी दुरुस्त है ….अगर आप १९७५ में प्रदर्शित उस जुली की बात कर रहें जिस का प्रीती सागर दवारा गया गीत my heart is beating बहुत प्रसिध हुआ था ….जिसमे लक्ष्मी ,नादिरा ,विक्रम ,रीता भादुरी और श्रीदेवी थी ……तो इस फिल्म की नायिका लक्ष्मी आज भी जीवित हैं …१९९८ में “जींस” मूवी में लक्ष्मी ने एश्वर्या राय की दादी माँ का रोले निभाया था और २००४ में “हलचल ” मूवी में उन्होंने करीना की दादी का रोले निभाया था ……जानकरी तो ये भी है की आज इस समय भी उस दुनिया में हैं ,,,हाँ किस हालत में हैं ये नही कह सकती ………..और जानकारी के लिए इनकी पुत्री ने भी बॉलीवुड में काम किया है …नाम है ऐश्वर्या ……फिल्म थी “गर्दिश”(1993)……सह कलाकार जैकी शोर्फ्फ़ और डिम्पल कपाडिया ……..ये हो सकता है की जब दुनिया फिल्म जुली की लक्ष्मी की दीवानी ही रही थी तो लक्ष्मी ने आत्महत्या का प्रयास किया हो ……पर वो सफल न रही हूँ ….हलकी ये भी मेरी जानकारी में नही है …ये भी आप के ही लेख में हैं ……मेरी जानकारी दुरुस्त है …

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