नारी नमस्ते

ससुराल और मायके की चक्की में पिसती महिलायें

‘लड़की हो ज्यादा मत बोलो , अकेली मत घूमो , यह करो …यह न करो , लगभग इन्हीं वाक्यांशों के बीच मध्यम वर्गीय परिवार की बेटियाँ प्रायः बड़ी होती हैं । कब उनके गुड्डे गुड़ियों से खेलने का समय निकल जाता है, स्वयं उन्हें भी पता नहीं चलता । जाने अनजाने उन्हें भी इसका अहसास तब होता है जब अपनी रूटीन पढ़ाई के दरम्यान किसी दिन घर की किसी महिला सदस्य से यह पता चलता है कि जल्दी ही उनकी शादी होने वाली है और अब उन्हें अपने नये जीवन के बारे में सोचना चाहिये ।

क्या है उनका यह नया जीवन ? क्यों ऐसी बाते सिर्फ लड़कियों के लिये ही इस्तेमाल में लाई जाती है । क्यों नहीं लड़कियों को भी अपनी पढ़ाई के बाद कैरियर बनाने का मौका दिया जाता । … और सचमुच इस पारंपरिक रिवाजों को ढोते हुये अपने भविष्य से बिल्कुल अंजान लड़की जब मायके से विदाई के बाद ससुराल में अपना पहला कदम रखती है तो अपने आपको सभी अंजाने चेहरों के बीच पाती है । बंद घूघंट के बीच उसका हाथ किसी के हाथों में दे दिया जाता है जिसे उसने कभी देखा भी नहीं हो और कुदरती रिश्तों से कोसो दूर ससुराल , पति , सास , ननद , देवर और न जाने कितने छद्म रिश्तों के बीच वह पहुंच जाती है । फर्क यह होता है कि अब तक भाई-बहन , माता-पिता , दादा-दादी, चाचा-चाची इत्यादि के इशारों पर नाचने वाली लड़की आज ससुराल रुपी परिवार के इशारों पर नाचने को मजबूर होती है । हद तो तब हो जाती है जब उसका नया घर ,जिसके ख्वाब उसे हमेशा दिखाये जाते थे , में उसे एक  तकलीफ देह माहौल का सामना करना पड़ता है । सास की धौंस , ननद का बात- बात पर आँखें दिखाना , देवर के नखरों और इन सबसे हटकर उसका पति ,जिसने उसे सात फेरों के साथ सात वचन भी दिये थे के द्वारा क्रूरता की हद को पार करती हरकत ,यानी मार पिटायी ।

आये दिन अखबार की साधारण सी खबरें बन पाती हैं ससुराल में बहुओं पर अत्याचार के , लेकिन माहौल अत्यंत गमगीन तब हो जाता है जब कहीं कहीं दहेज प्रताड़ना के नाम पर किसी की लाडली जिन्दा जला दी जाती है । न्यायालय की शरण में जाकर भी इनके लिये न्याय की उम्मीद बेमानी लगती है, क्योंकि न्यायालय से इन्हें कानूनी अधिकार तो शायद मिल जाये पर वह प्यार, वह अधिकार, वह अपनापन ,वह समर्पण और संतोष जिन पर उनका हक है जिसका वादा उनसे किया गया था, वह क्या मिल पायेगा ?           क्या सिर्फ कानून का भय वह अपनापन लाने में सक्षम है । एक बहु को बेटी का दर्जा मिल सकता है ? क्या दहेज लोलुपता खत्म हो सकती है ? क्या आधी आबादी की इस जटिल समस्या का समाधान आसानी से निकल सकता है  ? यह अनेकों ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर शायद समय ही दे सकता है।

आज दहेज को कानूनी मान्यता भले न मिली हो पर समाज आज भी अत्यधिक दहेज लेने देने को ही अपनी प्रतिष्ठा मानता है । अभी भी बेटियों को उनकी योग्यता पर अच्छा वर नहीं मिलता बल्कि उनका पैमाना होता है , उनके पिता का पद और दहेज में दी जाने  वाली मोटी रकम । उनकी योग्यता और   सुदंरता तो रकम कम कराने के काम आती है । निचला तबका, मध्यम वर्गीय परिवार या फिर उच्च वर्ग , परिस्थितियां सब जगह लगभग समान ही हैं । एक साड़ी में बहु लाने का रिवाज एक सपना भर है । सिर्फ कहने सुनने और जी बहलाने की बातें ।

बहरहाल मामला दहेज का हो या किसी दूसरी बातों का , बेटियों का काल-कवलित होना हमारे समाज का सबसे बड़ा कलंक है । ससुराल से निकाले जाने के बाद यदि महिलायें अपने मायके में शरण लेती है तो भी वह संयमित और सुरक्षित नहीं हो पाती । सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि महिलाओं को उनके मायके में भी वह जगह नहीं मिल पाती और इस प्रकार दो पाटों के बीच पिसकर रह जाती है सृष्टि की एक खूबसूरत रचना ।

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6 Comments

  1. bahut nagetive hai. sab kuchh vahi nahin hai. jaisa aapne likha hai.
    thanks.

  2. The characterisation of girls in our society is almost the same as depicted in this story. But the irony is, girls are tortured after marriage by another female members of the in-laws in day to day activities. Only in extreme cases men are found to be involved. Thus women should come forward to save another women otherwise making only hue and cry about atrocities on women will not serve the purpose.

  3. HUM har aurat ya ladki ke bareme ekhi dharna bana chuke hai ki “sasural aur mayke ke chakki me pisti mahila”hamari soch galat hai dahej ka chalan un dhanadhy logonme hai jo apni shan dikhane hetu dahej ka danaw paida kiya hai.aj bhi kai samaj aise hai ki ladki ke shadi me war pakshaki aur se paise lekar shadi hoti hai .pariwarik riti riwaj me pali ladki hi ek accha pariwar sambhalti hai usko bachapanse acche sanskar milte hai to wah ladki jatehi apna pariwar samjkar naye gharki jimedari utthathi hai har nand dewar sas aakhe dikhane wale nahi hote hai. jin swantantra vichar dhara waleladkiya hai wah kabhi pariwar ke sath milkar rahna nahi chahthi wah sirf akele apne pati ke sath rahana chahti hai akele rahne ke badbhi wah sukhi nahi rahte donome matbhed hone par koi samjane wala nahi hota aiseme sirf talak tak bat pohch jati hai .iska parinam anewale bache bhugate hai /

  4. बहुत हद तक सही कहा आपने पर इसमें नारी ही ज्यादा दोषी है……….हम बेटी को उच्च शिक्षा जरुर दिलवातें है पर आत्म विश्वास नहीं बढ़ाते और ना जाने कितनी मान मरियादायें थोप देते है ,………

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