सुशासन बाबू की तसवीर के लिए खतरे की घंटी है यह
(ग्राम पंचायत राज, लाला भदसारा, प्रखंड- दुल्हिन बाजार(पटना) की महिला मुखिया इंदु देवी से अनिता गौतम की खास बातचीत के अंश-)
नीतीश राज में सचमुच सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। नौकरशाही और उस की लाल फ़ीताशाही दीमक बन कर योजनाओं को चाट रही है। विकास के कामों में भ्रष्टाचार का घुन भी कम नहीं है। गांव में सड़क, खडंजा से लगायत आंगनवाड़ी, शिक्षा-मित्र तक में घपला ही घपला है। बी.पी.एल.कार्डों तक में धांधली है। पैसे ले कर पैसे वालों को ही दिए जा रहे हैं। योजनाएं सिर्फ़ कागजों पर दौड रही हैं। महिलाओं के लिए भी स्थितियां अनुकूल नहीं हुई हैं। अफ़सर जन प्रतिनिधियों की बात को न सुनते हैं, न तरजीह देते हैं। बस रबर स्टांप बन कर रह गई हैं महिला जन प्रतिनिधि। नीतीश कुमार के सुशासन बाबू की तसवीर के लिए यह खतरे की घंटी है। नीतीश जी सुन सकें तो यह घंटी सुनें ज़रुर। नहीं बाद में मुश्किल ही मु्श्किल होगी। दुल्हिन बाज़ार ब्लाक की प्रमुख इंदु देवी से अनिता गौतम ने बात कि तो उन की बातचीत का लब्बो-लुआब कुछ यही था। बातचीत में जैसे उन के दुख का बादल फट सा गया। अंतर्विरोध देखिए कि वह नीतीश राज को तो अच्छा बताती रहीं लेकिन अफ़सरों के मनमानीपन और भ्रष्टाचार की गाथा भी सुनाती रहीं। तो कहां जा रहा है यह बिहार, सोचा जा सकता है। पति, परिवार, तीन बच्चे और ब्लाक को एक साथ संभालती इंदु जी से बातचीत यहां पेश है :
कितना बदला बिहार, कितनी बदली महिलायें और उनकी स्थिति तथा महिलाओं की सत्ता में भागीदारी पर सवालों के जवाब में नीतीश राज में महिलाओं की बदलती स्थिति पर इंदु देवी ने संतोष जताया। उनका मानना था कि राज्य स्तर पर महिलाओं की भागीदारी से हम महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है। कल तक जहाँ महिलायें चूल्हा-चौका का प्रतीक थीं आज हर क्षेत्र में बेहतर कर रही हैं। उनके अनुसार राजनीतिक सूझ-बूझ महिलाओं की बेहतर होती हैं, साथ ही उन्हें अपनी बात रखने में भी कोई दिक्कत नहीं आती। बस सामने वाला सुनने को तैयार नहीं होता।
राजनीतिक कार्यकलापों के संदर्भ में उन्हें ढेर सारी शिकायतें थीं। व्यवस्था में सुधार की पक्षधर इंदु देवी की सबसे बड़ी शिकायत नीतीश राज में हावी हो रही अफसरशाही को लेकर थी। उनका स्पष्ट कहना था कि बिहार में अफसरशाही से लोकतंत्र को खतरा हो रहा है। अपने ही संदर्भ में उन्होंने कहा कि कितनी दफा जब वे मीटिंग में होती हैं तो अफसर सिर्फ औपचारिकता करना चाहते हैं। अपने आगे किसी की नहीं सुनते और योजनाओं को थोपते हैं। इस तरह की बातों पर उनकी संबंधित अफसर से झड़प हो जाती है और वे कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर निकल आती हैं। पर इन सबका भी उनपर कोई असर नहीं होता। हमें रबर स्टांप की तरह से इस्तेमाल करने की कोशिश की जाती है। बस कागजों पर हस्ताक्षर करने तक की उम्मीद।
गांव में अच्छी सड़क का अभाव है, पर सारी सड़कें कागजों पर तैयार कराई जा रही हैं। गांव के भीतर की सड़कें उनके अधिकार क्षेत्र में आती हैं, परंतु उनके निर्माण के संदर्भ में हम लोगों को कोई जानकारी नहीं है।
सर्वाधिक जरूरी संस्था आंगनबाड़ी, जिसका योगदान गांव-गांव के विकास में सबसे ज्यादा है की भी हालत अच्छी नहीं है। वहां काम तो हो रहे हैं पर बिना किसी के दिशनिर्देश और दखल के। उनको पूरी तरह से संचालित कर रहीं हैं स्थानीय सीडीपीओ, बिल्कुल अपनी मनमर्जी से। न तो हमारी भागीदारी जरूरी समझी जाती है और न गांव वालों का सहयोग लिया जाता है। कुल मिलाकर स्थिति यहां भी बंदर बाट जैसी ही है।
गांव की शिक्षा व्यवस्था पर भी इंदु देवी ने असंतोष जताया। शिक्षा मित्र की बहाली के नाम पर पैसे का गबन हो रहा है। उन्हों ने कहा कि 2003 से शिक्षा मित्र की बहाली हुई है पर कौन-कौन लोग रुपये ले रहे हैं और काम कर रहे हैं इसकी पंजी गायब है। पंजी मांगने पर भी उपलब्ध नहीं करवाये जा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि यहां भी सिर्फ कागजों पर ही काम साधा जा रहा है।
सर्वाधिक बुरी स्थिति बीपीएल कार्ड-धारकों की है। आठ-आठ बीघे जमीन वालों को कार्ड मुहैया करवाये गये हैं। मुझे जाति से उपर उठकर लोगों ने वोट दिया है। गरीबों और जरूरतमंदों के लिये ईमानदारी से कुछ करना चाहती हूँ। अपनी प्राथमिकता तय करने के सवाल पर उन्हों ने कहा कि सबसे पहले बीपीएल कार्ड जिन गलत हाथों तक पहुंचा है उन्हें चिह्नित कर उसे कैंसिल करवाऊंगी तथा कोशिश होगी कि जरूरतमंदों तथा सही हाथों में यह कार्ड पहुंचे।
घर और पंचायत की जिम्मेदारी का वहन एक साथ करती हैं, कोई परेशानी नहीं होती, कैसे तालमेल करती हैं? जैसे सवालों पर इंदु देवी ने कहा कि परेशानी तो होती है पर जनता ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौपी है तो उसे ही प्राथमिकता देती हूँ। तीन तीन छोटे बच्चे हैं, पति हैं और परिवार के अन्य सदस्य हैं, सभी को एक साथ संभालना पड़ता है। पर परिवार और पति की खास शुक्रगुजार हूँ कि उनके सहयोग के बिना यह संभव नहीं हो सकता है। ऐन चुनाव के वक्त पति एक बहुत बड़ी सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये थे। सिर के ऑपरेशन करने पड़े। खासी परेशानी का दौर था वह, फिर भी हमने अपनी उम्मीदवारी कायम रखी और आज जनता की सेवा का यह अवसर प्राप्त हुआ है। जनहित में जितना बन पड़ेगा करुंगी।
Sabke aur sab taklifo kaa ilaaz ek hi hai Nitish babu. Ham sabhi Bihariyon ke liye sharm ki baat hai ki ghaplaa ham sab karte hain aur…… badaliye apne aap ko aur bhir Bihar ko
सबका इलाज तप पंजी ही है। पंजी गायब कर दो, काम तमाम!
बिहार में सब कुछ ऐसा ही हो रहा है, देश में भी।
मेरा सलाम आपको
nitish ko bolna chahiye ki aapka ye aur baaki ka sushashan se related articles padhein…