लिटरेचर लव

स्त्री और शब्द

—महिला दिवस पर विशेष

शब्दों में ढालकर स्त्री को कमजोर किया गया है, और स्त्री के लिए चुन-चुनकर वैसे शब्द गढ़े गये हैं जिनकी गूंज थोड़ी कमजोरी होती है…स्त्री के साथ बुने गये चीजों और शब्दों को संपूर्णता में समेटती है चंदन कुमार मिश्र की यह कविता। महिला दिवस पर समर्पित है उनकी यह कविता।     

क्यों?

आखिर क्यों?

होता है वह हरेक शब्द

स्त्रीलिंग

जो आदमी को परेशान करता है

जिंदगी, समस्या, दिक्कत

जरूरत, दौलत, कीमत

जमीन-जायदाद, वसीयत

सरकार, पुलिस

पढ़ाई, गरीबी

बीमारी, तबीयत

प्यास, आस

हड़बड़ी, गड़बड़ी

समय की घड़ी

परीक्षा, नौकरी

ताकत, हैसियत।

लिखने वाले के लिए

भाषा, कलम, किताब, कॉपी।

चिंता, निराशा, अभिलाषा

कामना, भावना

हर वो चीज

जो लाचार है

क्यों बन जाती है औरत।

क्यों बन जाते हैं छलने वाले शब्द

जो पुल्लिंग नहीं हैं –

हँसी, मुस्कान, आँख

जो बिकती है वो भी

जिसमें बेची जाती है वो भी

चीज, वस्तु

दुकान।

 जो तोड़ती है दिलों को

दुश्मनी, मुहब्बत, हवस।

जब होती है चहल-पहल

समय बन जाता है दिन

जब हो जाता है शांत, सहमा हुआ समय

बन जाता है रात, सुबह, शाम।

सीना ताने खड़ा रहता है शोर

पर चुप रहती है शांति।

पहले होता है देश

फिर बन जाता है राज्य

तय करते हुए सफ़र

फिर बन जाता है – पंचायत

 बनते हैं कानून

चुप रहती है संसद

लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभा

सब कुछ बन जाता है स्त्रीलिंग।

 सब कुछ छिन लेती है

मौत

फिर स्त्री बनकर।

जिसके पास बल है

वही रहता पुल्लिंग।

समस्या का समाधान

दौलत से अमीर

चीज से मालिक या खरीदार

हड्डियों से शरीर

प्यास बुझाता है पानी

भाषा से व्याकरण

लिखने से साहित्यकार

जनता से नेता।

कुछ लोग कह सकते हैं मेरे विरुद्ध

अन्य शब्द, शब्दकोष से लेकर।

क्योंकि अक्षर और वर्ण से लेकर

शब्द और वाक्य तक

पुल्लिंग कोश में पाये जाते हैं पुल्लिंग।

छोटी होती है, – कथा, कविता, गजल

लेकिन कथा-संग्रह, कविता संग्रह

सारे संग्रह

बन जाते हैं पुल्लिंग।

उपन्यास रहता है पुल्लिंग

छोटी उपन्यासिका बन जाती

स्त्रीलिंग।

किसने गढ़े हैं

सारे शब्द

किसी आदमी ने नहीं

किसी पुल्लिंग शब्द ने गढ़ा होगा

क्योंकि

हम सब शब्द हैं केवल

जब निकल जाती है जान

मर जाती है मानवता

छुप जाती है संवेदना

तब हम बन जाते हैं

शरीर से

लाश

एक स्त्रीलिंग शब्द।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button