खूब खून बहेंगे अबूझमार के घने जंगलों की अबूझ पहेली जानने के लिए

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अखिलेश अखिल

अखिलेश अखिल
अखिलेश अखिल, नई दिल्ली

इसे केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल विरोधी अभियान का हिस्सा माने या फिर अबूझमार के घने जंगलों में रह रहे 26 हजार से ज्यादा आदिमकालीन  मारिया जनजाति को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की अनुठी पहल । सरकार छत्तीसगढ़ के बस्तर, दंतेवाड़ा नारायणपुर और आंध्रा के खम्माम और महाराष्ट् के  गोंदिया और गढ़चिरौली तक फैले अबूझमार जंगलों में रह रहे आदिवासियों को पुनस्र्थापित करने की एक व्यापक योजना पर काम कर रही है। सरकार के लोग दबी जुबान से इसे विकास की नीति बता रहे हैं जबकि नक्सली इसे आर्मी आपरेशन की तैयारी मान रहे हैं । सरकार की योजना है कि जंगल में रह रहे इन आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालकर पहले उन्हें सड़क के किनारे बसाया जाए और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और अन्य मौलिक सुविधाओं से लैश किया जाए। हालांकि यह योजना अभी शुरूआती दौर में है और गुपचुप तरीके से इस पर जिला स्तर के अधिकारी अंजाम देने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि –  ‘अबूझमार के जंगलों में रह रहे लोगों की बेहतरी के लिए इस तरह की योजनाओं की संभावनाओं पर कोशिश हो रही है लेकिन इसके विरोध होने की भी कम संभावना नहीं है। नक्सली कभी नहीं चाहेंगे कि यहां इस तरह के काम किए जाएं। क्योंकि ऐसा होने से उनका आधार क्षेत्र कमजोर होगा और वे ऐसा हरगिज नहीं चाहेंगे’।

            क्या है सरकार की गुपचुप नीति और क्यों होगा नक्सलियों का व्यापक विरोध है, इस पर हम चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले हम आपको ले चलते हैं अबूझमार के घने जंगलों में जो साल के 12 महीनें अंधकार में डूबा होता है, सूर्य की तेज रोशनी भी जंगल को भेद नहीं पाती । अबूझमार एक ऐसी पहाड़ी और जंगली जगह है जहां जाना मौत से खेलना है । जैसा की इसके नाम से ही ज्ञात है कि इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं। 400 वर्ग किलोमीटर में पसरा है यह इलाका। बाघ के अलावा कई और जानवरों का घर है अबूझमार। साल 2001 में केंद्र सरकार ने इस इलाके यानि जंगल की सही तस्वीरें सैटेलाईट से लेने की कोशिश की लेकिन सही तस्वीर नहीं मिली । इस घने जंगल के नीचे की जमीन खोजने में सैटेलाईट फेल कर गया।  दो साल पहले भी इसी तरह की कोशिशें सरकार ने की, सफलता नहीं मिली। सरकार का इरादा नक्सलियों के ठिकाने को ढूंढना था और साथ ही मारिया जनजाति को समझने का इरादा। अबूझमार को सरकार आजतक नहीं समझ पायी है लेकिन वहां के लोग सरकार को समझ रहे हैं । कहते हैं कि इस जंगल के भीतर 237 गांव है जिसमें 26 हजार से ज्यादा मारिया और अन्य आदिवासी रहते हैं । यहां के आदिवासी मीलों चलकर बाहर तो निकलते हैं  लेकिन सरकार और उसके लोग उनके गांव और उन तक नहीं पहुंचती। आप कह सकते हैं कि इन गांवों में लोकतंत्र नहीं पहुंचा है। फिर भी यहां एक सरकार चलती है, वह माओवादियों की सरकार । यहां के 237 गांवों पर माओवादियों का कब्जा भी आप कह सकते हैं  और यहां जो आदिवासी हैं वे भय से या फिर लोभ से उनके रहमो करम पर जीने को अभिशप्त।

                 इसी जंगल का एक हिस्सा है ओरछा प्रखंड। ओरछा इलाका का नाम सुनते ही पुलिस बल के शरीर में भी सनसनी फैल जाती है। यही वह इलाका है जहां माओवादियों का मुख्यालय है  और यहीं  है माओवादियों का सीएमसी यानि सेंट्ल मिलीट्री कमीशन  नियंत्रण कक्ष। आपको बता दें कि यही कमीशन बड़े -बड़े नक्सली अटैक को अंजाम देता है। माओवादियों के गुरिल्ला दस्ते यहीं रहते हैं और यही से देश के किसी कोने में होने वाले नक्सली आपरेशन को अंजाम दिया जाता है। बाल दलम और महिला दलम  समेत कई और विशेष दलम का प्रशिक्षण यहीं होता है। कहते हैं कि ओरछा के  इस के घने अबूझमार जंगल में माओवादियों के 2000 से ज्यादा खतरनाक गुरिल्ला रहते हैं। सभी तरह के आधुनिक तकनीक से लैश। इनके खुफिया इतने ताकतवर और सटीक होते हैं कि इसे सरकार की हर गतिविधियों की जानकारी मिलती है लेकिन सरकार इन तक पहुंचने में हमेशा चुक जाती है। यहां रह रहे आदिवासी इन माओवादियों के सुरक्षा कवच हैं। फिर माओवादी क्यों चाहेंगे कि इन आदिवासियों का विकास हो और उन्हें जंगल से बाहर निकाल कर बसाया जाए?

     छत्तीसगढ़ सरकार और गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक ओरछा के जंगलों में रह रहे आदिवासियों के विकास की जो नई रणनीति बन रही है, वह नक्सली इलाकों के केंद्र की  समन्वित क्रिया योजना का हिस्सा है । ड्राफ्ट योजना के तहत अबूझमार के जंगलों में रह रहे 237 परिवारों के 26 हजार लोगों को जंगल से बाहर निकाल कर बसाने की योजना है। सरकार 20 से 25 विकास केंद्र बनाने की तैयारी में है। ये विकास केंद्र 400-500 हेक्टेयर में बनाए जाऐंगे और सभी आदिवासियों को 2 से 4 एकड़ तक खेती लायक जमीन मुहैया करायी जाएगी। इन जमीनों पर सभी लोग मिलकर सामुदायिक खेती करेंगे। सरकार इस केंद्र पर हर तरह की सुविधा मुहैया कराएगी जैसे शिक्षा,स्वास्थ्य और अन्न भंडारण की सुविधा। जंगल से निकालकर यहां जिन आदिवासियों को विकास केंद्र में बसाया जाएगा उसके लिए इंदिरा आवास योजना के तहत मुफ्त में मकान,पिछड़े क्षेत्र ग्रांट फंड के तहत बिजली की मुफ्त सुविधा  और मनरेगा योजना के तहत तमाम तरह की अन्य सुविधाएं देने की बात है।

        दंतेवारा के एक उच्च अधिकारी का कहना है कि -‘ हालांकि यह  योजना अभी सोंच के स्तर पर ही है और एक प्राथमिक ड्राफ्ट भर तैयार हुआ है । इस बारे में अभी पूरी बात नहीं की जा सकती, और अगर ऐसा होता है तो इसके लिए सबसे बड़ी समस्या आदिवासियों को समझाने की है। आदिवासी अपना मौलिक स्थान छोड़ना नहीं चाहते और  फिर नक्सली नहीं चाहेंगे कि उनका कवच उनसे दूर हो, समस्या तो आएगी ही।’

     सरकार की मंशा चाहे जो भी हो, नक्सली इस गुप्त योजना को सलवा जुडुम का दूसरा रूप समझ रहे हैं। नक्सालियों ने आरोप लगाया है कि सरकार जंगलों से आदिवासियों को बाहर निकाल कर नक्सलियों के खिलाफ व्यापक आर्मी आपरेशन करने की तैयारी कर रही है । जब सलवा जुडुम से सरकार को लाभ नहीं मिला तो अब इस नई योजना को अंजाम देना चाहती है। दरअसल छत्तीसगढ़ में रमन सरकार ने  2005 में कई अन्य कांग्रेसी नेताओं से मिलकर सलवा जुडुम की रचना की थी। सरकार ने इसे नक्सलियों के विरूद्ध आदिवासियों का स्वतः स्फूर्त आंदोलन बताया था। जंगल से बाहर सड़क के किनारे व्यापक सुरक्षा के घेरे में दर्जनों कैंप में आदिवासियों को बसाया गया  और छोटे छोटे लड़के  और लड़कियों के हाथ में अपनी और कैंप सुरक्षा के नाम पर हथियार थमा दिए गए ।  बाद में इसी सलवा जुडुम पर 500 से ज्यादा  नक्सलियों की हत्या करने का आरोप भी लगा। लेकिन सच्चाई ये है कि नक्सलियों के नाम पर ऐसे आदिवासियों की हत्या की गई जिनका नक्सली गतिविधियों से कोई रिश्ता नहीं था । पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इसको अवैध ठहराते हुए इसे खत्म करने का आदेश भी दिया । सुकमा से सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य  सरकार का यह पूरा खेल सलवा जुडुम को दूसरे रूप में चलाने का है और किसी भी तरह बस्तर को नेस्तनाबूत करने का । बस्तर के इस इलाके में कोबरा समेंत अर्द्धसैनिक बलों की कई टुकड़ियां पहले से ही तैनात है, सरकार का अगला कदम क्या होता है इस पर सबकी नजरें टिकी हैं। लेकिन इतना तय है कि अबूझमार की अबूझ पहेली जानने के लिए खून भी कम नहीं बहेंगे।

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