जमाना मुहब्बत का (कविता)

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गूंज रहा है गलियों में, नया तराना मुहब्बत  का,
जवान दिल जो धड़का बना एक फ़साना मुहब्बत का.

इस खुदगर्ज शहर की फितरत अब बदलने लगी है,
सब दे रहे हैं,एक दूसरे  को, नजराना मुहब्बत का.

कहाँ दम घुटता था फिजा में, नफरत और जलन से ,
हर तरफ छलकता है अब ,पैमाना मुहब्बत का .

शिकायतें कम करते हैं, चेहरे रौशन दिखते हैं उनके,
बनाया है जिन्होंने, अपने दिल को, आशियाना मुहब्बत का.

दौर खत्म हो रहा है, जाम के लिए दर-दर भटकने का,
अब तो हर मदभरी आँखों में बसता है ,मयखाना मुहब्बत का.

आजकल शहर में गुनाह नहीं होते, दरकार ही किसे है,
जब हर कोई लुटाये जा रहा है, खजाना मुहब्बत का.

जो मर्ज़ हुआ करता था, यहाँ दवा बन चूका है,
जिसे देखो, वो बन गया है, दीवाना मुहब्बत का.

यूँ तो ये मुहिम, अकेले ही शुरु की थी महिवाल,
पर जल्द ही तुमने बना लिया है, सारा जमाना मुहब्बत का.

राहुल रंजन महिवाल,
भारतीय प्रशासनिक सेवा,
जिलाधिकारी,
अमरावती, महाराष्ट्र

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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