शिवभक्तों की आस्था पर रोक और चुनावी तैयारी जोरो पर !

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रवि आनंद

रवि आनंद,वरिष्ठ पत्रकार

देशभर में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भारत में यह आंकड़ा 6 लाख को पार कर चुका है। जबकि देश में अनलॉक-02 एक जुलाई से लागू हो चुकी है इसमें में कमोवेश छूट के स्तर को बढ़ाया ही गया है पर बीमारियों को लेकर अभी तक कुछ पुख्ता इंतजाम नहीं हो पाया है। रोग और रोग के लक्षण में भी बदलाव की खबर चिन्ता को बाढ़ देती है। देश भर में पूजा पाठ को लेकर हर दिन एक नई गाइडलाइंस आ जा रही है जगरनाथ यात्रा को कोर्ट के आदेश के बाद धार्मिक अनुष्ठान के तहत सम्पन्न भी करा कर लोकल स्थानीय प्रशासन ने जनता की भावना की और परंपराओं का उचित निर्वाहन किया। देशभर में ऐसा कम ही देखने को मिला जहां मानवीय संवेदना और संविधान की रक्षा करते हुए जनता की आस्था की भी मान रखी गई हो। अब सावन का महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए उतना ही पावन है जितना इस्लाम में रमजान। सरकार हर साल सावन के आरम्भ में अमरनाथ यात्रा, देवघर में कांवड़ यात्रा और केदारनाथ मंदिर के पवित्र दर्शन के साथ प्रदेश भर के शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए शिव भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। सावन का महीना बरसात का महीना होता है इसमें साधरण बीमारियों को बल मिलता है ऐसे में जनता के स्वस्थ सेवा को दुरुस्त रखना जहां चुनौती होती है। वहां जनता के जनभावनाओं को दरकिनार कर जनप्रतिनिधि अपने लिए आगामी विधानसभा चुनाव पर गुना भाग आरंभ कर दिए हैं।

सोशल डिस्टेंसिंग, कंटेनमेंट जोन और होम क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन जैसे कई मुद्दे हैं जिसके कारण सैकड़ों साल की परंपरा को स्थगन करने की बात बहुत आसानी से करने वाली प्रशासन केवल 70 साल पुरानी भारत की लोकतंत्र के पर्व को क्यों नहीं रोक लगा पा रही है।

मंदिर को एक छोटी बड़ी ट्रस्ट के माध्यम से चला कर सरकार जहां चढ़ावे की रकम पर मंदिर से कर वसूली कर सकती है उस स्थान में पहुंचने से लोगों को नुकसान होगा तो जनता को पोलिंग बूथ पर खड़ा करने से आम जनता को क्या मिल जाता है?

किसी भी सरकार ने निजी क्षेत्र के वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं की जबकि लॉकडाउन कि घोषणा के वक़्त कहा गया कि निजी कंपनियों से किसी की नौकरी नहीं जाएगी। लॉकडाउन कानून का पालन करने वाले को पूरी वेतन दी जाएगी। सरकार आपके घरों तक भोजन की सुविधा उपलब्ध कराएगी। जब तक लोगों के पास पैसा रहा लोगों ने सरकार के साथ खड़े रहे जैसे ही वेतन आना बंद हुआ सरकार ने भी उपेक्षा आरम्भ कर दी नतीजा लोगों को पैदल ही सड़क पर उतर कर गांव की ओर रूख करना पड़ा। जिसमें कुछ ने रेलवेट्रैक और कुछ सड़कों पर जान गवाई। और ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा था कि क्या बिहार चुनाव जो इस साल के आखिरी में होना है वह वक्त पर हो पाएगा या नहीं हो पाएगा? बिहार की 243 सदस्य विधान सभा का कार्यकाल 29 नवंबर को पूरा हो रहा है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों को अमल में लाने में अब तक विफल रही सरकार ने कोरोना संक्रमण के केवल बचाव के लिए ही ध्यान में रख कर काम किया है तो ऐसे में चुनाव की चुनौती के दौरान मंत्रालय के नियमों का पूरी तरह से पालन कैसे हो पाएगा? लेकिन जिस तरह से देश इस वक्त कोरोना काल से गुजर रहा है इससे बिहार चुनावों को लेकर असमंजस की स्थिति बन गयी है।

इस सब के बीच चुनाव आयोग ने जिस तरह से तैयारियां करने शुरू की हैं उसे इस बात की ओर इशारा तो जरूर मिल रहा है कि चुनाव आयोग की कोशिश यह है कि चुनाव अपने तय वक्त पर हो सकें। क्योंकि इसका लाभ और नुकसान जनप्रतिनिधियों को मिलेगा ना कि आम को। जनता तो कोरोना काल की भारी उपेछाओं को भूल कर एक बार फिर अपनी जाति समुदाय के लिए वोटिंग मशीन के सामने कोरोना संक्रमण की चुनौती को दरकिनार कर खड़े हो जाएगी। गरीब जनता एक बार भी नहीं पूछेगी कि सरकार और सरकारी तंत्र पर जो राशि खर्च हो रही है उसे दो वक्त की रोटी दी जाती तो ज्यादा अच्छा होता।

पर जनत को सोशल डिस्टेंसिंग, कंटेनमेंट जोन और होम क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन जैसे कई सारे मुद्दे पर भरमा कर अगले पांच साल की चाभी लेनी है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि अक्टूबर के आखिरी हफ्तों में या नवंबर के शुरुआती हफ्तों में बिहार में चुनाव करवाए जा सकते हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ने कोरोना काल में लोकतंत्र के महापर्व में लोगों को शरीक होने में दिक्कत भी ना हो ऐसे उपाय पर चर्चा भी आरम्भ कर दी है। यह अलग बात है हरिद्वार और देवघर के पर्व को स्थगित रखने का भी मन बना लिया गया है। वहीं चुनाव आयोग इसी कड़ी में केंद्रीय चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव आयोग से कहा है कि वह राज्य की पार्टियों के साथ बैठक करें और चर्चा करे। यानी कि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और लोकतंत्र के महापर्व में लोगों को शरीक होने में दिक्कत भी ना हो।