संवेदनशीन सूचना पर पटना पुलिस का उजड्ड रवैया, जितेंद्र राणा साहेब कैसे पीपुल फ्रेंडली होगी पटना पुलिस ?

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आलोक नंदन, पटना

क्या प्रशासनिक अधिकारियों के फेरबदल से पुलिस की मानसिकता बदल जाएगी ? क्या कमिश्नर नर्मदेश्वर, डीआईजी उपेंद्र कुमार सिन्हा, डीएम अभय कुमार सिंह और एसएसपी जितेंद्र राणा यहां के पुलिस महकमें और प्रशासन पर हावी ओझी और अनफ्रेंडली मानसिकता को दुरुस्त कर पाएंगे ? क्या पटना के तमाम पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों को जनता के साथ बेहतरीन कॉआर्डिनेशन में लाया जा सकेगा, वैसे जरूरत तो बिहार के तमाम प्रशासिनक और पुलिस अधिकारियों को पीपुल फ्रेंडली बनाने की है। पटना के गांधी मैदान में भगदड़ से हुई 33 लोगों की मौत के बाद पटना की आयुक्त एन विजय लक्ष्मी, डीएम मनीष कुमार वर्मा, डीआईजी अजिताभ कुमार और एसएसपी मनु महाराज को को चलता तो कर दिया गया लेकिन प्रशासनिक नॉर्म्स को पीपुल फ्रेंडली बनाने की कवायद कहीं नहीं दिख रही है। पटना के पुलिसकर्मी अभी भी पुरानी पारंपरिक मानसिकता में ही जी रहे हैं। यहां तक कि जनहित से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को कैसे चिन्हित किया जाये और कैसे  व्यवस्थित तरीके से कदम बढ़ाया जाये इसका प्रशिक्षण भी उन्हें हासिल नहीं है। इसके विपरित सूचना देने वाले के पीछे ही पुलिसिया रौब में पड़ जाते हैं। पटना पुलिस की मानसिकता और चरित्र को ठीक से समझने के लिए यहां मैं एक वाक्ये का जिक्र कर रहा हूं।

कल शाम तकरीबन सात बजे के करीब मैं फुलवारी स्थित बजरंग कॉलनी का चक्कर काट रहा था। बकरीद के मौके पर मैं इलाके का जायजा ले रहा था, इस उद्देश्य से की शायद तेवरऑनलाइन के लिए कुछ लिखने को मिल जाये। बजरंग कॉलनी फुलवारी शरीफ और पुलिस कॉलनी के बार्डर पर स्थित है। बजरंग कॉलनी से सटा मुस्लिम बाहुल इलाका है हारूल नगर। बजरंग कॉलनी के पूर्व में पुलिस कॉलनी है और पश्चिम में हारूल नगर।

बजरंग कॉलनी के मुख्य सड़क पर नौजवानों के दो गुट आपस में बुरी तरह से उलझे हुये थे। हाथापाई हो रही थी। एक मुस्लिम नवयुवक को किसी ने बुरी तरह से पीट दिया था और वह लगातार रोते हुये अपने साथियों से बदला लेने की गुहार लगा रहा था और साथ ही यह भी कह रहा था कि उसे सेट करके निशाना बनाया गया है। उसको पीटने की तैयारी पहले से ही थी। इसके पहले कि हाथापाई मारपीट में बदलती मैंने अपने तरीके से यह कहते हुये रोक दिया कि आज बकरीद के दिन नो फाइटिंग। मेरी बात का उन पर तात्कालिक असर तो हुआ लेकिन मैं खुद को इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं कर पा रहा था कि आगे लड़ाई नहीं होगी। युवा टोलियों की भीड़ंत पटना में आम बात है। अक्सर यहां के युवक अपनी एनर्जी का इजहार आपस में मारपीट के जरिये करते हैं।

खैर मौका बकरीद का था, और अभी-अभी गांधी मैदान एक बड़े हादसे का गवाह बन चुका था, इसलिए मैं कोई रिस्क नहीं चाहता था। इस क्षेत्र की डेमोग्राफी को देखते हुये इस बात की आशंका मेरे मन में बनी हुई थी कि कहीं छोड़ी झड़प दावानल में न तब्दील हो जाये।

वहां जुटे लड़कों से यह आश्वासन लेने के बाद कि अब फाइटिंग नहीं होगी, मैं आगे बढ़ गया, लेकिन जिस तरह से वे लोग फोन पर अपने लोगों को मोबलाइज कर रहे थे उससे मेरी चिंता बढ़ गई थी। इस संबंध में मैंने पुलिस को इत्तला देना मुनासिब समझा और 100 नंबर डायल कर दिया और कंट्रोल रूम में मैंने घटना की पूर जानकारी दे दी। कंट्रोल रूम से मुझसे कहा गया कि आप लाईन पर बने रहिये मैं फुलवारी थाना में आपकी बातचीत करवाता हूं। नये सिरे से मैंने फुलवारी थाना को भी पूरी बात बता दी, तो उधर से आवाज आई कि हम अभी फोर्स भेजते हैं। मैंने उन्हें सलाह दी कि फोर्स भेजने से इलाके में हैवोक क्रिएट हो जाएगा, बेहतर होगा कि कुछ पुलिसकर्मी सादे लिबास में जाये और उस इलाके पर नजर रखें। दूसरी तरफ से लाइन काट दी गई। तकरीबन 20 मिनट बाद मेरा मोबाइल बज उठा। उठाने पर दूसरी तरफ से कहा गया, ‘फोर्स घटनास्थल पर पहुंच गई है और यहां कोई भी नहीं है। आप यहां हाजिर हो।’

मैंने उन्हें कहा कि मेरा वहां आना मुमकिन नहीं है, आप फोर्स के साथ पहुंचेंगे तो स्वाभाविक है सारे लड़के आपको देखते ही वहां से भाग जाएंगे। अब आप मुझे वहां बुलाकर क्यों सबके सामने मेरी पहचान करवाना चाहते हैं। मैंने पहले ही ताकीद कर दी थी कि फोर्स के बजाये आपलोग सादे लिबास में जाये। फिर भी यदि आप मुझसे मिलना ही चाहते हैं तो उस जगह से हटकर दूसरी जगह पर मिलें। मेरा वहां आना उचित नहीं है। मेरा इतना कहते ही पुलिस वाले मुझे धमकाने लगे और मुझ पर पुलिस को गलत सूचना देने का आरोप लगाने लगे। लाख कोशिश के बावजूद मैं उन्हें यह समझाने में नाकामयाब रहा कि मेरा ऐसे सरेआम वहां पर आना उचित नहीं है। खैर दूसरी तरफ से लाइन काट दी गई।

तकरीबन पांच मिनट बाद फिर से मेरा फोन बजा। इस बार फोन कंट्रोल रूम से था। एक बार फिर मैंने अपनी पूरी बात दूसरी तरफ लाइन आये हुये पटना के पुलिस जांबाज के सामने रख दी। लेकिन वो जनाब भी मेरी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। तुरंत तू-तड़ाक पर उतर आये। कंट्रोल रूम के इस पुलिसकर्मी को कंट्रोल करने के लिए मुझे धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी पड़ी। अंग्रेजी सुनकर उनका टेंपर थोड़ा डाउन हुआ लेकिन वे इस बात पर कायम रहे कि मैंने उन्हें गलत सूचना दी है। और उस इलाके में अमन चैन बरकार है। और आगे इस तरह की किसी भी प्रकार की सूचना देने के पहले मैं सावधानी बरतूं। जिस अंदाज में वो बोल रहे थे उससे तो यही लगता था कि वो महाशय फोन से निकलकर मुझ पर टूट पड़ेंगे। पटना पुलिस से मुझे यही उम्मीद थी। हालांकि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि फोर्स के पहुंचने के बाद तमाम लड़के दुबक गये होंगे।

वैसे इस वाक्या से मुझे इतना तो अहसास हो गया कि पटना पुलिस पीपुल फ्रेंडली कतई नहीं है, और हर मसले को रगड़घस से ठीक करने पर आमाद रहती है। किसी घटना का क्या असर हो सकता है इससे भी ठीक तरह से तौल नहीं पाती है। दोष पटना पुलिस की नहीं बल्कि उस संस्कृति है जिसे यहां पुलिस वर्षों से अपनाये हुये है। पटना पुलिस में पेशवर तौर तरीकों का सर्वथा अभाव है। जब कोई शख्स अपनी पहचान छुपाकर आपको ऐसी सूचना दे रहा है, जिससे इलाके का अमन चैन एक नाजुक दिन को प्रभावित हो सकता है तो उसे किस तरीके से हैंडल किया इसकी समझ तो पटना पुलिस को होनी ही चाहिये। क्यों जितेंद्र राणा साहेब, आप क्या कहते हैं इस बारे में। अभी-अभी आपने पटना एसएसपी का पदभार ग्रहण किया है, 33 लाशों के बिछने के बाद। क्या अपनी पुलिस को थोड़ा पीपुल फ्रेंडली करेंगे। बेशक पुलिस का सोचने, समझने और कार्य करने का अपना तरीका होता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पुलिस सर्वज्ञानी है, उसे भूत, वर्तमान और भविष्य सबकुछ दिखाई देता है। सहज और वैज्ञानिक तौर तरीकों से बहुत कुछ आसान हो सकता है। आम जनता भी कई मायनों में पुलिस से बेहतर समझ रखती है, इसलिए आम जनता को जोड़कर साथ चले तो कई तरह की मुसीबतों से आम जनता बच सकती है। जितेंद्र राणा साहेब बेशक यदि कंट्रोल रूम में मेरे अल्फाज टेप हुये होंगे तो उन्हें आप सुन सकते हैं, कैसे टाक करती है आपकी पटना पुलिस और कैसे सलाह देने के बाद मूर्खतापूर्ण एक्शन लेती है आपकी पुलिस। शिकायत पुलिस से नहीं है, ना ना। शिकायत उस पुलिसिया मानसिकता से है जो हर चीज को अपने तरीके से हांकने वाली है। जितेंद्र राणा साहेब जरूरत है पटना पुलिस को पीपुल फ्रेंडली करने के साथ-साथ इसे वैज्ञानिक तरीके से संचालित करने की। अब ये कैसे होगा एक हद तक ये आपकी जिम्मेदारी है।

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