‘उग्र राष्टवाद’ की लहर पर सवार मोदी

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एडोल्फ हिटलर ने अपनी पुस्तक ‘मीन कैंफ’ में लिखा है, ‘कोई व्यक्ति धन और संपत्ति के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार नहीं होता है। लेकिन लोग अपने स्थापित मूल्यों और राष्टÑ के लिए मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।’ गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को हिन्दू राष्टÑवादी घोषित करके कमोबेश हिटलर के फार्मूले पर ही चलने की कोशिश कर रहे हैं। हिटलर ने राष्टÑवाद को ‘नस्लवाद’ से जोड़ा था। नस्लीय श्रेष्ठता की भावना से ओत-प्रोत हिटलर ने यहूदियों को दुश्मन नंबर एक घोषित करके उनकी पूरी तरह से सफाया करने की कोशिश की थी और अपने इस मकसद में वह एक हद तक कामयाब भी हुआ था। हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के बाद जर्मनी में यहूदियों को व्यवस्थित तरीके से हलाक किया गया। हजारों यहूदियों को प्रताड़ना कैंप में रखा गया और बचे-खुचे यहूदी जर्मनी छोड़कर भागने पर मजबूर हो गये। भारतीय राजनीति में एक शक्तिशाली नेता के तौर पर उभरे नरेंद्र मोदी के दामन पर भी 2002 में हुये गुजरात दंगों की छींटें हैं और इन दंगों में मारे गये एक खास समुदाय के लोगों के प्रति दुख व्यक्त करने के लिए नरेंद्र मोदी ने जिन अल्फाजों का इस्तेमाल किया है, उसका लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय समाज का मजबूती से ध्रुवीकरण करना है। एक साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुये कहा है कि यदि कोई कुत्ते का बच्चा भी आपकी कार के नीचे आकर मर जाता है तो आपको दुख होता है। फिलहाल नरेंद्र मोदी के दुख व्यक्त करने के इस निराले अंदाज से भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया है। एक बार फिर मोदी की जोर- शोर से आलोचना शुरू हो गई है। और शायद मोदी भी यही चाहते थे क्योंकि मोदी समर्थक उनसे इसी तरह के अल्फाज की उम्मीद करते हैं।
उग्र राष्टÑवाद की लहर
राष्टÑवाद की अवधारणा आज भी दुनिया के मुख्तलफ मुल्कों में मजबूती से अपना पैर जमाये हुये है। मुसोलिनी और हिटलर राष्टÑवाद से एक कदम आगे बढ़कर ‘उग्र राष्टÑवाद’ के समर्थक थे। उनके लिए राष्टÑ ही सब कुछ था। इन लोगों ने राष्टÑ की श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भी पूरी तरह से खारिज कर दिया था। दोनों राष्टÑवाद को सांस्कृतिक श्रेष्ठता से जोड़कर देखते थे। पहले आलमी जंग के बाद मुसोलिनी इटली में पुराने रोमन साम्राज्य की स्थापना का स्वप्न देखता और हिटलर जर्मनी में आर्यों की श्रेष्ठता को स्थापित करने का। आज भारत में नरेंद्र मोदी भी उग्र हिन्दू राष्टÑवाद का प्रतिनिधित्व करते हुये खुद को हिन्दू राष्टÑवादी घोषित करके कुछ वैसी ही लहर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इतिहास गवाह है कि किसी मुल्क में जब एक बार इस तरह के उग्र राष्टÑवादी आंदोलन शुरू हो जाते हैं तो फिर उन्हें रोक पाना काफी मुश्किल होता है और इसकी परिणति क्या होती है, खुद आंदोलन के सूत्रधारों को भी पता नहीं होता है। मुसोलिनी और हिटलर इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन दोनों ने ‘उग्र राष्टÑवाद’ को एक धारदार हथियार बना कर लोगों को मरने-मारने पर उतारू कर दिया था। खुद को हिन्दू राष्टÑवादी बता कर नरेंद्र मोदी भी इसी रास्ते पर चलते हुये दिख रहे हैं। वह जोर देकर कह रहे हैं कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वह हिन्दू राष्टÑवादी हंै। मतलब साफ है कि आगामी लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उग्र रूप से हिन्दू राष्टÑवाद का नारा गूं्जने वाला है।
इतिहास से सबक
नरेंद्र मोदी के तमाम सलाहकार इस बात पर सहमत हैं कि फिर से सत्ता में आने के लिए लोगों के मन में उग्र हिन्दूवाद की भावना को जगाना जरूरी है। इसके लिए एक लंबे अरसे से आधुनिक संचार माध्यमों का जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। शेर के साथ मोदी की दहाड़ती हुई तस्वीरें सोशल मीडिया में बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इन पर लिखे गये संदेशों में साफ तौर पर कहा जा रहा है कि भारत का मुस्तकबिल उग्र हिन्दूवाद में ही सुरक्षित है। इन सोशल साइटों पर अब तक भारत में हुये तमाम आतंकी हमलों को मुसलमानों के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है और साथ ही लोगों के सामने मोदी को इस तरह से पेश किया जा रहा है मानो  मोदी के गद्दीनसीन होते ही आतंकवाद की समस्या चुटकी में गायब हो जाएगी। मजे की बात है कि हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा तबका मोदी को मुल्क में आतंकवाद का बेहतर मर्ज भी मानने लगा है। ठीक वैसे ही, जैसे हिटलर को जर्मनी में पहले आलमी युद्ध के बाद जर्मनवासी तमाम मुश्किलों से निजात दिलाने वाले मुक्तिदाता के रूप में देख रहे थे। अब मोदी के सलाहकारों को इस बात का यकीन हो चला है कि तमाम कोशिशों के बावजूद मुल्क के मुसलमान मोदी के पक्ष में आने वाले नहीं हैं। यदि मुसलमानों को लुभाने की ज्यादा कोशिश की गई तो मोदी में यकीन रखने वाले हिन्दू भी उनसे बिदक सकते हैं। इतिहास से सबक सीखते हुये मोदी लालकृष्ण आडवाणी वाली गलती दोहराना नहीं चाहते थे। पाकिस्तान में जिन्ना के मजार पर जिन्ना को राष्टÑवादी करार देने के बाद आडवाणी जिस तरह से भारतीय राजनीति में निस्तेज होते चले गये, उसे लेकर मोदी और उनके सलाहकार काफी चिंतन-मनन कर चुके हैं। अब तक मोेदी की जो राजनीतिक शैली रही है, वह पूरी तरह से उग्र हिन्दू राष्टÑवाद पर ही आधारित है। इस लीक को छोड़ने से उन्हें लाभ हो या न हो, लेकिन नुकसान तय है। मोदी और उनके सलाहकार फिलहाल यह रिस्क उठाने के मूड में नहीं हैं।
धर्म निरपेक्षता पर विवाद
खुद को हिन्दू देशभक्त कहने वाले नरेंद्र मोदी धर्मनिरपेक्षता को भी अपने तरीके से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कह कर कि मुल्क का नेतृत्व एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के हाथ में होना चाहिए मोदी एक ओर भारतीय राजनीति में व्यावहारिक तौर पर धर्मनिरपेक्षता के महत्व को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही दूसरी ओर यह जोड़कर कि वह एक हिन्दू देशभक्त हैं, कांग्रेस द्वारा स्थापित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर जोरदार हमला भी कर रहे हैं। धर्म निरपेक्षता को लेकर कांग्रेस मोदी पर लगातार हमला करती आ रही है। अपने स्थापित सिद्धांत के मुताबिक कांग्रेस नरेंद्र मोदी को एक धर्म निरपेक्ष व्यक्ति मानने के लिए कतई तैयार नहीं है। यही वजह है कि अब मोदी सीधे तौर पर कांग्रेस द्वारा परिभाषित और स्थापित धर्मनिरपेक्षता पर ही हमला बोल रहे हैं। धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुये मोदी ने कहा है, ‘मेरे लिए, मेरी धर्मनिरपेक्षता है न्याय सबके लिए, तुष्टीकरण किसी का नहीं।’ मोदी के बयान के बाद अब यह सवाल हवा में तैरने लगा है कि क्या एक हिन्दू देशभक्त धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता? यदि एक हिन्दू देशभक्त धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता तो फिर पांच दफा नमाज पढ़ने वाला एक मुसलमान धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकता है? अब इस बहस का क्या नतीजा निकलेगा, यह तो समय ही बताएगा फिलहाल मोदी समर्थक हिन्दू देशभक्त धर्मनिरपेक्षता के मसले पर कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है। हालांकि कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने तंज करते हुये कहा है कि हिन्दू देशभक्त और मुस्लिम देशभक्त बनने के बजाय एक भारतीय देशभक्त बनना ज्यादा बेहतर होगा।
कांग्रेस को मोदीफोबिया
भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी जिस तरह से उग्र राष्टÑवाद का परचम लहरा रहे हैं, उससे  कांग्रेस ‘मोदीफोबिया’ का शिकार होती जा रही है। मोदी के हर स्टैंड पर कांग्रेस की गहरी नजर है और मोदी को कमजोर करने के लिए वह हर संभव कोशिश कर रही है। कहा जा रहा है कि जिस तरह से जद-यू मोदी को लेकर भाजपा से अलग हुई है, उसकी बिसात कांग्रेस लंबे समय से बिछा रही थी। राहुल गांधी लगातार नीतीश कुमार की तारीफ करते आ रहे थे। कांग्रेस को यकीन था कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ वह नीतीश कुमार को अपने सांचे में ढाल लेगी। इसके बावजूद अभी तक कांग्रेस मोदी को लेकर आत्मविश्वास की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि राहुल गांधी के नाम को बार-बार भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उछाला तो जा रहा है लेकिन विधिवत इसकी घोषणा नहीं की जा रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि राहुल गांधी मोदी के सामने फीके नजर आएंगे। ऐसे में मोदी से सीधे भिड़ने के बजाय अगल-बगल से हमला करना ही ज्यादा बेहतर होगा। मोदी द्वारा कांग्रेस को यह कहने के बाद कि संकट की घड़ी में वह बुर्का पहनकर बंकर में घुस जाती है कांग्रेसी नेताओं का संतुलन और बिगड़ गया है। तमाम कांग्रेसी नेता एक स्वर से मोदी के खिलाफ चिल्ला रहे हैं और इसका जबरदस्त फायदा मोदी को अपने समर्थकों को लामबंद करने में मिल रहा है।

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