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3 मई, को भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्षगांठ मनाया जायेगा

पटना,

आगामी 3 मई, 2013 (शुक्रवार) को भारतीय सिनेमा पूरे सौ साल का हो जायेगा। इसी तिथि को भारत की पहली फीचर फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र रुपहले परदे पर पदार्पण किया था। इस फ़िल्म के निर्माता भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के थे।

उक्त अवसर पर सिने सोसाइटी, बिहार आर्ट थियेटर, एवं पाटलिपुत्र फिल्म्स एंड टेलीविजन एकेडेमी, पटना के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्षगांठ मनाया जायेगा। इस कार्यक्रम के संयोजक सह सिने सोसाइटी, पटना के मीडिया प्रबंधक रविराज पटेल ने बताया कि 3 मई (शुक्रवार) समय 3 बजे अप. से सिने सोसाइटी, पटना के अध्यक्ष श्री आर. एन. दास के नेतृत्व में राजधानी स्थित कालिदास रंगालय में आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम में फ़िल्म प्रदर्शन एवं संगोष्ठी होगी। फिल्मों में क्रमशः भारतीय सिनेमा के सौ साल (वृतचित्र) , पहली फीचर फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र (मूक फीचर फ़िल्म), हरिशचंद्राची फैक्ट्री (राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फीचर फ़िल्म) , एवं पोस्टरिक्स ( सिनेमा के पोस्टर पर बनी वृतचित्र) का प्रदर्शन किया जायेगा। तत्पश्चात् भारतीय सिनेमा के सौ साल पर संगोष्ठी होगी, जिसमें बिहार के कई जाने माने सिनेमाविद्द भाग लेंगे। इस कार्यक्रम का संचालन सिने सोसाइटी, पटना के उपाध्यक्ष डॉ. जयमंगल देव करेंगे तथा कार्यक्रम नियंत्रक वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अजित गांगुली होंगे।

ज्ञातव्य हो कि दुनियां में पहली फ़िल्म पोस्टर से लेकर अब तक के पोस्टरों के महत्व पर बनी वृतचित्र पोस्टरिस्क सिने सोसाइटी, पटना द्वारा निर्मित पहली वृतचित्र है। इस फ़िल्म के निर्देशक सोसाइटी के उपाध्यक्ष सह फ़िल्म विशेषज्ञ डॉ. जयमंगल देव एवं सोसाइटी सदस्य सह पत्रकार श्री प्रशांत रंजन हैं। यह फ़िल्म फेडरेशन ऑफ फ़िल्म सोसाइटी ऑफ इण्डिया (ईस्ट ज़ोन) द्वारा आयोजित सेकेण्ड शार्ट एण्ड डोक्युमेंट्री फ़िल्म फेस्टिवल, नंदन (कोलकाता) में प्रदर्शित हो खूब प्रशंसा पा चुकी है। वहीं फेडरेशन ऑफ फ़िल्म सोसाइटी ऑफ इण्डिया (वेस्ट ज़ोन) एवं महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई में आयोजित होने वाली आगामी फिल्मोंत्सव में भी प्रदर्शन हेतु शामिल हो चुकी है। इस फ़िल्म की अवधि 26 मिनट है।

भवदीय,

रविराज पटेल,

कार्यक्रम संयोजक सह मिडिया प्रबंधक, सिने सोसाइटी,

पटना, संपर्क : 09470402200

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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