ezeego1 जैसी कंपनियों की लूट-खसोट से जागो पप्पू जागो !!
समय बदल गया है। पप्पू ऑनलाइन हो गया है।अब पप्पू और उसके दोस्त बिजली और पानी के बिल को घर पर ही इंटरनेट से जमा कर देते हैं।पप्पू के पापा बिहार के एक सुदूर देहात के बैंक से पप्पू को मिनटों में हरे नोट के पत्ते भेज देते हैं। अब रेल, बस और हवाई जहाज़ की टिकटें भी घर से ही खरीदी जाती हैं। पप्पू रिजर्वेशन काउंटर पर लाइन में खड़े होकर दायें-बायें की दीवार को पान-गुटके की पीक से अब लाल नहीं करता है। पप्पू ट्रेन में अब कूट की पीली आयताकार टिकटें लेकर नहीं चलता। अब वो टी.टी.ई. को ई-टिकट दिखा कर टशन देता है..वो भी बिना चश्मा निकाले। जी हाँ ! आज अगर आपकी माशूका छोटे से छोटे शहर में भी रहती हो, तो भी ठीक रात के बारह बजे, जब तारीख बदल कर उसके जन्मदिन की तारीख में तब्दील होती है, एक गुलाब का फूल, चौकलेट-केक और टेडी बियर के साथ भिजवा सकते हैं। एकदम कूल इस्टाईल में। और भी ज्यादा रोमांटिक होने का मन करे तो एक बन्दा आपके निर्देश पर आपके हमकदम के लिए बर्थडे जिंगल भी गा सकता है। इतना ही नहीं अगर आपका प्यार बरसात के बेंग की तरह आम मौसम से कुछ ज्यादा ही कुलांचे मार रहा हो और आपको ठीक अगले दिन की फ्लाईट या ट्रेन पकडनी है, तो चिंता मर करिए! किसी एजेंट को फोन करने की जरुरत नहीं ! बस अपना कंप्यूटर ऑन करिए..इन्टरनेट कनेक्ट करिए और टिकट बुक!! आप सोचेंगे मैं कोई नयी बात नहीं कर रहा हूँ। अब तो पप्पू यही कर रहा है। क्योंकि पप्पू के पास टाइम नहीं है। और पप्पू मॉडर्न हो गया है। हो भी क्यों ना !! आज इन्टरनेट पर ऑनलाइन सूविधाओं की एक लम्बी फेहरिस्त है। इस बाढ़ में इतने पैसे बह रहे हैं की हर ऐरा -गैरा-नत्थू- खैरा एक बूँद पीने को बेताब है।
पर पप्पू को क्या पड़ी है।आखिर उसका क्या जाता है?
लेकिन जनाब ! दिन में आँख बंद कर के सोने से रात नहीं चली आती। और रात के एहसास में पप्पू की आँख लग भी गयी तो चोर की रोज़ी तो दिन दहाड़े चलेगी।
अपनी महबूब को वैलेंटाइन डे के दिन दिए गए गिफ्ट की कोई कीमत नहीं होती….जानता हूँ…! रात के बारह बजे अगले दिन कि टिकट मिलना भी अनमोल है। पर ऐसा तो नहीं की हमारी मोहब्बत और मजबूरी को बहाना बना कर ये ऑनलाइन सेवा प्रदाता हमसे जबरन वसूली की हद तक आ गए हैं? कभी आपने उनके किराये को विस्तार से जानने की कोशिश की है? कभी ये सोचा है कि ये ऑनलाइन सेवा-प्रदाता आपकी जरुरत पूरी करने के एवज़ में मनमाना किराया वसूल कर रहे हैं। हम अपनी गाढ़ी कमाई बिना कुछ जाने बुझे शायद मुफ्त लूटा रहे हैं।अगर ऐसा है तो हम पप्पू नहीं.. पप्पू के पापा हैं….सीनियर पप्पू….!हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है। साथ ही साथ देश में नवजात सेवा-व्यवस्था की एक गलत परिपाटी का जाने-अनजाने ही सही, एक अंग बन रहे हैं। इन व्यवस्थाओं के कर्णधारों को शह दे रहे हैं जो लाल पिली वेबसाईट बना कर, कुछ यूटिलिटी सेवा संस्करणों को खुद से जोड़ कर, इन्टरनेट पर हमें लूटते हैं। अनाप-शनाप अनर्गल किरायों की आड़ में एक बड़ा गोरखधंधा चला रहे इन लोगों पर अंकुश लगाने के बजाये हम कही इनका शिकार तो नहीं बन रहे? बिजली-पानी के बिल जमा करने वाली कतार से बहार आने के चक्कर में, ऑनलाईन सेवाओं कि जादूगरी से इतने मोहित तो नहीं हैं कि हमें उनकी मनमानी कि खबर नहीं।
माना की हमारे देश में ऐसी व्यवस्थाएं नयी हैं.पर इसका मतलब ये नहीं की जिसके मन में जो आये वो किराया हमसे वसूल करे। और ऐसा भी नहीं कि देश में इनकी कार्यव्यवस्था पर कोई अंकुश नहीं। हमारे देश में इनके लिए भी क़ानून है। इन सेवाओं को भी सेवा-क्षेत्र के आम कानूनों के तहत ही संयमित किया जाता है। इसीलिए जितने भी सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के ऑनलाइन सेवा-प्रदाता, जिनकी कॉरपोरेट पौलिसी बड़ी सुलझी और सकारात्मक होती है,वो सभी अपने सेवा-किरायों को एक सिमित और सकारात्मक ढंग से तय करते हैं, ताकि उपभोक्ताओं को हीन महसूस ना हो। आइ.आर.टी.सी, और बैंकों कि ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएं सरीखे कुछ एक उदाहरण हैं।
मैं ये बातें इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं इन सेवाओं का बहुत बड़ा मुरीद हूँ। मैं जम कर इनका उपयोग करता हूँ। मैं भी अपनी हर यूटिलिटी और टसनबाजी जरूरतों के लिए मोबाईल और इन्टरनेट का खुल कर सदुपयोग करता हूँ। मैं भी चाहता हूँ की मुझे किसी जरुरत के लिए लाइन में लगने की जरुरत नहीं। स्कूल के टाइम में सिनेमाघर के बाहर लगी लम्बी लाइन से जूझ कर टिकट लेने के चक्कर में पिटा मेरा दोस्त मुझे अब तक याद है। मैंने वैसे वो पिक्चर नहीं देखि थी(सच में). खैर सच जो भी हो, आज बस जब भी कम्प्यूटर ऑन किया और बात मिनटों में ख़त्म हो जाती है। मैंने !! आह !! से !! आहा !! तक की दूरी तय कर ली है।मुझे अपनी सारी यूटिलिटी सेवाओं कि पूर्ती अपने मोबाईल या कम्पूटर से करना अच्छा और सुविधाजनक लगता है।
पर रूकिये..! कहानी इतनी ही नहीं…और भी है। कहानी में एक ट्विस्ट है। बड़ा ही रोचक और तथ्यपूर्ण। कहानी मेरी है। और एक-दम फ़िल्मी नहीं है।
मई के महीने में मैं भी इन्ही सेवा प्रदाताओं में से एक के जाल में फस गया. www.ezeego1.co.in. का ऐड अपने क्रेडिट कार्ड के मासिक स्टेटमेंट में देखा।
लिखा था www.ezeego1.co.in से अपनी टिकटें बुक करिए और पाइए 20 प्रतिशत का डिस्काउंट।
मेरे लिए ये स्वर्णिम मौका था। एक तो मुझे अपने घर भी जाना था। दूसरा मैंगलोर से झारखण्ड की दूरी…बाप रे बाप.आप ट्रेन से जाने की सोच नहीं सकते.इसलिए मैंने तुरन्त हवाई जहाज़ की टिकट बुक कर ली।
पर अगले दिन जब मैंने अपने क्रेडिट कार्ड के स्टेटमेंट को देखा तो अवाक रह गया। कोई डिस्काऊंट नहीं था। पूरे टिकट के किराए में यही कोई सौ-डेढ़ सौ रूपए की छुट होगी। मुझे उनके ऐड की चोंचलेबाजी पर गुस्सा आया। मैंने तुरंत उनके उपभोक्ता-शाखा को फोन किया। आधे घंटे अपने ऑटो-वोइस रेस्पोंस सिस्टम में मुझे उलझाये रखने के बाद उधर से एक इंसानी आवाज़ सुनाई दी। मैंने झट अपनी समस्या कह डाली।
पर उनके खुलासे के बाद मुझे छला हुआ महसूस हुआ।
उनके अनुसार मैंने उनके ऐड में डिस्काउंट शब्द के ऊपर लगे तारे (ऐस्टरिक ) को ठीक से नहीं देखा। वो डिस्काऊंट किराए कि कुल रकम पर नहीं बल्कि बेस-शुल्क पर थी। और सबको पता है कि फ्लाइटों के किराए में बेस-फेयर कितना होता है। एक आम दिन, एक आम हवाई-सेवा प्रदाता की,एक आम आदमी के लिए, किफायती वर्ग का बेस-फेयर 600-800 रूपये होता है। इस लिहाज़ से देखें तो बीस प्रतिशत कि वो छूट छूट कम…लूट की टोपी ज्यादा लग रही थी। और दुख की बात ये थी की मुझे वो टोपी पहना दी गयी थी। या यूँ कहें की मैंने पहन ली थी।
डिस्काउंट का वो तारा मुझे दिन में तारे दिखा गया।
खैर जो भी कहू, मुझे उनके बिजनेस करने का ये ऐस्टरिक इस्टाइल थोडा कुटिल जान पड़ा। ऐसा लगा ये मनमानी कर रहे हैं। मैंने अपनी शिकायत करने के लिए दुबारा उनके ग्राहक-प्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की, पर लगातार मेरे कॉलों को जान बूझ कर काटा दिया गया. उनकी वो बदतमीज़ी मुझे देश के एक आम आदमी की बेईज्ज़ती लग रही थी। उनके काम करने के और प्रचार करने के इस अंदाज़ में मैं मदारी का बन्दर बन गया था।
इसी बीच, अचानक कुछ ऐसा हुआ की मुझे अपनी पूर्वनिर्धारित यात्रा के दिन बदलने पड़े। और मौके की नजाकत को समझते हुए मैंने अपनी तारे-टोपी वाली टिकट को सीधा एयरलाइन से ही रद्द करा दिया। चूकि मुझे बुक करने से पहले ही मालूम था की वो टिकट नौन-रिफंडेबल है इसलिए बेस-शुल्क को काट कर ही पैसा मिलेगा, जो मुझे एयरलाईन वालों की परेशानी और उनके कार्य प्रणाली को देखते हुए जायज़ लगी।
मैंने जानकारी के लिए ezeego1 को भी सूचित कर दिया की मैंने अपनी टिकट रद्द कर दी है और वो मेरा पैसा मेरे क्रेडिट कार्ड में वापस जमा कर दे। पर मेरा पारा एक बार फिर चढ़ गया। मैंने ये सुना कि मेरे टिकट के रद्द करने के लिए ये वेबसाईट भी 500 रूपये काट लेगी। उन्होंने इस लूट का नाम दिया…हैंडलिंग चार्जेस!! मुझे लगा मैं अंग्रेजों के शासन में हूँ, जहाँ किसी सिस्टम का कोई माई बाप नहीं। कोई कानून नहीं, जिसे जहाँ, जो मिल जा रहा हो उसे लूट लिया जा रहा है। मेरा अब विरोध करना जरूरी लगा, क्योंकि हैंडलिंग चार्जेस के नाम का ये किराया सरासर बेईमानी था और मैं ये बर्दाश नहीं कर सका।
क्यों?? क्योंकि मुझे टिकट की बुकिंग में ezeego1 का रोल समझ में आता है और उनके दिए गए 20 प्रतिशत की छूट का मरहम लगा के मैं उनके ऐड के दिए दर्द को थोडा ही सही, पर कम कर सकता था। पर मेरे टिकट के रद्द करने पर हैंडलिंग चार्जेस का किस्सा मेरे गले नहीं उतर रहा था। टिकट रद्द करने का काम तो मैंने किया, वो भी सीधा एयरलाइन वालों से। तो ezeego1 बीच में कैसे आ गया ??उनकी माने तो वो फिर भी हैंडल कर रहे थे। क्या..?? भगवान् जाने!
जो भी हो, वो अच्छा मज़ाक था! पर भाई ! पांच सौ रूपये का एक जोक.?? सुनना महंगा है। तब और महंगा जब इस जोक का खर्च मैं वहन कर रहा हूँ। मगर मैं इस जोक का संता या बंता नहीं बनना चाहता था। मैंने अपने पांच सौ रूपये वापिस पाने की ठान ली। एक आम समझदार नागरिक कि तरह पहले उनके ग्राहक-शिकायत डेस्क की ई-मेल पर एक मेल भेजा,जिसमें मैंने उनकी इस नीति की शिकायत की। मैंने सिर्फ मेरे पैसे वापिस करने की बात नहीं की बल्कि इस तरह के सारे अनर्गल और अतार्किक किराये को हटाने की मांग की और इस तरह के भटकाने वाले छलावेदार विज्ञापनों का भी विरोध किया ताकि देश का कोई दूसरा उपभोक्ता अनजाने में मेरी तरह लूटा ना जाए।
मेरे महीने भर की लगातार कोशिशों के बाद आखिर मैंने अपना पांच सौ रूपया वापिस पा लिया। अगले महीने हमेशा की तरह मेरे क्रेडिट कार्ड के एस्टेटमेंट में डेबिट-क्रेडिट कि ढेरों प्रविष्टियाँ थीं, पर पांच सौ रूपये का वो एक जमा-आंकड़ा मुझे सच की जीत का एहसास दिला गया।
पर दुःख अभी भी है, क्योंकि उन्होंने अपनी किराये के लिस्ट से ऐसी बेईमान और सूदखोरी भरी नीतियों को अभी तक नहीं हटाया है। उससे संबंधित मेरे सवाल पर कोई प्रतिक्रया भी नहीं दी है। इससे यही पता चलता है कि वो कितने गैर -जिम्मेदार और निरंकुश तरीके से अपना व्यवसाय चला रहे हैं। अगर वो मुझे सुन रहे हैं तो जान लें कि मेरी ये लड़ाई मुझे यही ख़तम नहीं करनी। आंकड़ों को देखे तो असली सच का पता चलता है.देश की करीब 7% जनसँख्या ब्रौडबैंड-उपभोक्ता है। इन आंकड़ों में देश के लाखों शहरी मोबाइल इन्टरनेट के सेवा उपभोक्ता शामिल नहीं हैं। एक छोटे से तालुक में भी चौक चौराहे पर ई-टिकेटिंग और ई-बिलिंग जैसी सुविधाओं से सजे प्रतिष्ठानों की आज कमी नहीं है और ऐसी ही कितने छोटे बड़े दश्मलावों को जोड़ कर सेवा का क्षेत्र देश की जी.डी.पी. पर कब्ज़ा करता जा रहा है। विकास का यही पैमाना इन ऑनलाइन सेवा उपलब्ध करने वाले बिचौलियों को लूट खसोट के लिए लालायित कर रहा है।
पर कतार में खड़ी पसीने से तर-बतर जनसँख्या को इन्टरनेट सेवाओं की सुविधाओं से अलग कर के सोचना भी बेमानी है। हम इन सुविधाओं को पुख्ता करने पर ज्यादा जोर दें तो बेहतर है। इन्टरनेट सेवाओं की सकारात्मकता को अगर ध्यान में रखा जाए तो हमें भारतीय इन्टरनेट सेवा बाज़ार को साफ़-सुथरा और आकर्षक बनाना जरुरी है। इसलिए पहले से ही ezeego1 सरीखी कंपनियों को एक इमानदार कॉर्पोरेट नीति के साथ उपभोक्ता-मैत्रिक दृष्टिकोण की सीख देनी होगी। वर्ना ये कम्पनियां हमें पप्पू समझ कर लूटती रहेंगी। तब तो और जब हमारे देश में पप्पू कि कई प्रजातियाँ है। मेट्रो का पप्पू महीने भर में ही इम्पोर्टेड सिगरेट की तीस-पैंतीस डिबिया धौंक देता है…जिस एक डिबिया कि कीमत शायद मेरे वापिस मिले पांच सौ से ज्यादा होगी। ऐसे पप्पू भले देश की उपभोक्तावादी आंदोलनों का हिस्सा ना बनें और बिना सोचे समझे इन ऑनलाइन कंपनियों की झोली भरते जाएँ, पर मुझे पता है कि देश का हर आदमी पप्पू नहीं। देश का हर आदमी पप्पू की तरह एक ग्लोबल सिटिज़न नहीं बन पाया है जो जी.डी.पी में कृषि कि सत्रह प्रतिशत की छोटी भागीदारी से अनजान है, पर सेवा क्षेत्र की पचपन प्रतिशत कि भागीदारी का कर्णधार बना लाखों लूटा रहा है। इन पप्पुओं के चक्कर में देश के बाकी लोग पप्पू नहीं बन सकते। खेती बारी के लाचार आंकड़ों से पटे अंग्रेजी अखबारों में स्नैक्स के चखने का ढेर लगा कर यूरोपियन बियर पीता पप्पू हमारे देश का भविष्य नहीं हो सकता और हमें उन पप्पुओं की पड़ी भी नहीं। एक मेहनतकश कामगार आम भारतीय ही इस देश की पहचान हैं। और इन औनलान सुविधाओं की पहुँच उनतक बननी शुरु हो गयी हैं। इन्टरनेट-सेवाओं पर देश के हर एक नागरिक का अधिकार बनता है। हमें ये सुनिश्चित करना है कि ये सेवाएं सभी के पहुच में हों। सभी को अपना हिस्सा मिल सके। ताकि सिर्फ शहर का पप्पू ही मोबाइल पर फ्री-टॉकटाइम की मलाई ना खाए। बस जरुरत है ezeego1 जैसी कंपनियों की साहूकारी का विरोध करने की। इस राह के रोड़ों को हटाने की मेरी ये लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं..हमारी है। जो ऑनलाइन सेवा पहुंचाने वाली कंपनियों के अनर्गल किरायों की पोल खोलेगी। मेरा अगला कदम ezeego1 जैसी कंपनियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का है, जो मैंने सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों के साथ मिल कर शुरू भी कर दी है। मैंने ezeego1 के कर्णधारों को उनके फाइनेंसियल-अत्याचार के खिलाफ मेरी लड़ाई की सूचना दे दी है। मैं इंतज़ार नहीं कर सकता। समय सब बदल देता है पता है..! पर पप्पू कि तरह मैं समय पर सब कुछ नहीं छोड़ सकता ! और एक बात कहूँ…अब तो पप्पू को जगाने का भी मन करता है.आखिर पप्पू कभी तो जागेगा। मेरी नहीं तो आपकी सुनेगा। आपकी नहीं तो अपनी तो सुनेगा। चलिए मिल के आवाज़ लगायें, देश के हर पप्पू- उपभोक्ता को जगाएं….! जागो पप्पू जागो….!!
कुचे कुचे में जिसकी दुकान है
सरकार कहती है कि वो इन सब से अंजन है………….
किसी ने कहा था कि सच मत बोलो
यहाँ सच को सच कहने वाला भी गुनहगार है ………..
भाई आपने सच को पवित्रता के साथ प्रस्तुत किया | हमारी स्वस्थ जरूरतों में सबसे अहम् यह भी है | अलख जागते रहिये….अँधेरा भागते रहिये
hi,
aap bilkool sahi keh rahe hain ………ajj kal ye aam hai .janta ka paisa paani ki tarah baha kar business class log aur videshi companies khoob aish kar rahi hain
Well said. Papu has to wake up.I liked your way of expressing your protest…that too in a style which seems quite unique.Very simple and to the point
good morning rishi ji
aapne hakikat bayan ki hai. aapki aawaj se pappu jaroor jagega. Use jagna padega..
Ek accha sa aartikal hamare netao per bhi ho jaaye to maja aa jaye
Title
(Commanwelth me machai loot, Neta ji bole hai sab juth,)