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खबर का असर : चुनाव आयोग ने सूचना एंव जनसंपर्क विभाग से जवाब तलब किया

तेवरआनलाईन टीम, पटना

तेवर ऑनलाइन पर प्रकाशित “चुनाव आचार संहिता की वाट लगा रही है बिहार सरकार की साइटें” खबर का संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग बिहार से इस बाबत स्पष्टीकरण माँगा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार त्वरित कार्रवाई करते हुए वेबसाइट के फूटर से लिंक्स को हटा दिया गया है। इस बीच हमारे एक सजग पाठक ने सभी मीडिया हाउसों को इस खबर की प्रति कल भेजी थी लेकिन जैसा कि अपेक्षित था किसी ने इस खबर को प्रकाशित करने का साहस नहीं दिखाया।

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बहरहाल ताज़ा स्थिति यह है कि वेबसाइट के फूटर से लिंक को हटा दिया गया है लेकिन विडियो अभी भी चल रहे हैं और खूब चल रहे हैं। सवाल यह है कि जो चुनाव आयोग विपक्षी पार्टियों पर धड़ाधड़ एफ.आई.आर. दर्ज किये जा रहा है वह इस गंभीर उल्लंघन पर खामोश क्यों है? क्या आयोग के पदाधिकारी अपने समकक्षों को बचाने के कवायद में लगी है? क्या यही उल्लंघन विपक्षी पार्टियों कि तरफ से हुआ रहता तो आयोग का रवैया यही रहता?

बिहार के लिए यह दुर्भाग्य का विषय है कि किसी भी विरोधी दल में नवीनतम तकनीक के जानकार नेताओं का भयंकर अकाल है और इसका फायदा सरकारी तंत्र से लेकर सत्तानासीन चतुर सुजान उठा रहे हैं। खबर तो यह भी आ कर आ रही है कि हमारे भांडा फोड ने विभाग के गुपचुप प्रचार करने की योजना की मिट्टी पलीद कर दी है। विभाग ने बड़े जतन से यह योजना बनायी थी कि वह अपने वेबसाइट के नियमित पाठकों को सरकार की उपलब्धियों का बखान करता रहे।

जो खबरें छन कर आ रही हैं उससे यह भी खुलासा हो रहा है कि विभाग ने यह योजना महीनों पहले बना रखी थी और नयी एजेंसी  के चयन के साथ ही विभागीय वेबसाइटों में आमूल-चूल परिवर्तन किया गया था ताकि सरकार के समर्थकों में बिना अवरोध के सूचनाएं वितरित कि जा सकें। ज्ञातव्य है कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट अत्यंत लोकप्रिय है एवं बिहार के बाहर रह रहे बिहारियों को सरकार के योजनाओं एवं कार्यक्रमों की अधिकारिक सूचना देने वाली एकमात्र कड़ी है।

कई पत्रकार नीतीश सरकार के दौर को इंदिरा गाँधी के आपातकाल से जोड़ कर देख रहे हैं।  इंदिरा गाँधी  दंड-भेद की नीति पर चलती थीं, लेकिन नीतीश सरकार ने उसमें साम और दाम भी जोड़ दिया है। सरकारी रुख का समर्थन नहीं करने वाली मीडिया हाउस के साथ बुरा बर्ताव एवं विज्ञापन देने में भेदभाव करने के आरोप कोई नए नहीं हैं, लेकिन मीडिया हाउसों के मालिकान जनहितों को नजरअंदाज कर कमाई करते आ रहे हैं।  अब चूँकि आदर्श अचार संहिता लग चुका है ऐसे में वो मीडिया हाउस जिनका वर्तमान सरकार के रुख से मतैक्य नहीं है अथवा जो किसी मायने में निष्पक्ष हैं इस विभाग के खिलाफ
बोलने का साहस जुटाने लगे हैं। बात निकली है मगर यह कितनी दूर तक जाती है यह कहना अभी मुनासिब नहीं है और संभव भी नहीं है।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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3 Comments

  1. यह एक ऐसी दुर्घटना है मेरे साथ की इसका जवाब मुख्य मंत्री विगत १२ महीनों से नहीं दे पाएं हैं |इनका मंत्री सिर्फ गाली दे सकता है और अपने पद पर बने रहने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है |जैसे बिहार विधान परिषद में झूट बोल सकता है और बोला भी है |
    मुख्य मंत्री ने जितना रुपैया इस बार कृषि विभाग को खर्च करने के लिए दिया है वो समय बतला देगा की किसानों को क्या फायदा हुआ |फायदा तो होगा इनके मंत्री को, इनके कृषि विभाग के अफसरों को जो रोज घटिया सामान को कभी कृषि यंत्रीकरण ,कभी कृषि मेला ,कभी किसान दिवस पर बाँट रहे और अख़बारों में अपना नाम छपवा रहे है की आज मुख्य मंत्री बीज तीव्र विस्तार योजना में इतना बीज बंटा,तो कभी इतनी राशि किसानों के अनुदान में दिया |एक तरफ मुख्य मंत्री जी का फोटो छपता है और दूसरी तरफ श्री मान शेर सिंह जी का |हरेक जिला कृषि पदाधिकारी २ -३ लाख रुपैया प्रति माह शेर सिंह को पहुंचाता है| डी.ए.पी. खाद में प्रति ५० किलाग्राम के बोरे पर २५ रुपैया,यूरिया और पोटाश पर १५ रुपैया प्रति बोरा ,एन.पी.के. पर २०-२५ रुपैया प्रति बोरा एक जिला कृषि पदाधिकारी थोक उर्वरक विक्रेता से लेता है और पटना तक बाँट कर करोड़ों रुपियों का वार न्यारा करता है |

    ढैंचा बीज खरीद में २५ करोड रुपैया की उगाही हुई है |जो बीज बाजार में १० रुपैया प्रति किलोग्राम मिल रहा था उसकी खरीद ३० रुपैया प्रति किलोग्राम दिखाई गयी है |इन्ही बाजारू बीज को प्रमाणित बीज का मोहर लगा कर किसानों के बीच बांटा गया है |यही है नितीश जनित सुशासन |

    चना और मसूर बीज में पहले ही कुमारी जी करोड़ों बना कर चली गयीं ,किसी को कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि किसी के बाप का पैसा तो नहीं जा रहा है , अगर जा रहा है तो पब्लिक फंड |

    सुशासन में लूट की खुली छूट मिली हुई है |बस पब्लिक की नज़र से बच कर सावधानी से सब करना है | राम जीवन बाबू कभी कृषि मंत्री थे ,उनसे सबक लेना चाहिए सुशासन बाबू को और ऐसे चरित्र वाले आदमियों को इतनी महत्वपूर्ण जगह देनी चाहिए |न की सीधे एक बेईमान , और माओवादियों के संगठनकर्ताओं को |जब कभी कोई माओवादी कांड होता है तो यही मंत्री उसको शांत करा कर वाह-वाही लूटता है और नीतीशजी की नज़र में ,बिलकुल साफ़ छवि बना लेता है |

    चलिए सुशासन बाबू कोई बात नहीं है |४.५ वर्ष बाद तो बात कीजियेगा न , तब देखा जायेगा | कल के हम उद्योगपति हैं , आज सब्जी फल ठेला पर रख के आपके सचिवालय के सामने बेचेंगे तब कम से कम आपको लोग आशीर्वाद तो देगा ही की एक हमारे जैसा चोर , खाद में मिटटी मिलाने वाला , मारवाड़ी को सुशाषित कर दिए हैं |

    कोई बात नहीं है नीतीशजी आपका ईमानदार मंत्री तो पहले ही कह चूका है की हमलोग दो नंबर के आदमी हैं |हम भी इन्तेज़ार करेंगे की इस ईमानदार की असलियत कब जनता के सामने आएगी |

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