और कानपुर ने रच दिया इतिहास

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अरविन्द त्रिपाठी //

.कानपुर में नौ दिसंबर 2012 की सुबह खासी सर्दीली थी. इसकी चिंता किये बिना गंगा के किनारे बसे इस शहर के बाशिंदों ने एक संकल्प ले लिया था. संकल्प भी ऐसा वैसा नहीं था. बिना रण-क्षेत्र में उतरे पाकिस्तान को पराजित करना था. यह राष्ट्रीय गान को एक स्थान पर एक साथ गाने के भारतीय रिकार्ड की रक्षा और उसमें सुधार कर अपराजेय बना देने का संकल्प था. एक तरफ सूरज ने धीरे-धीरे आसमान में चढ़ना शुरू किया और उसकी किरणों में गर्मी आनी शुरू हुयी, तो दूसरी  तरफ कानपुर में राष्ट्रीय भावनाओं का ज्वार युवा उमंगों के साथ परवान चढ़ने लगा. शहर के स्कूल-कालेजों ने छात्र-छात्राओं का अपने शिक्षक संवर्ग के संरक्षण में आने का क्रम तेज होने लगा. धीरे-धीरे कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में सवा  लाख लोगों का हुजूम आ इकठ्ठा हुआ. भीड़ संयम खो देती इसलिए तय समय से पहले ही राष्ट्रगान आरम्भ कर दिया गया. वजह यह थी की तय समय से एक घंटा दस मिनट पहले ही ग्रीन पार्क की सभी क्षमताएं पूरी हो चुकी थीं और जनता का निरंतर आना जारी था. नगर के प्रशासनिक अधिकारियों सहित दूसरे समीक्षकों की उम्मीदों से काफी ज्यादा जन-समुदाय आ इस पुण्य काम के लिए जुट जाना यूं ही नहीं था. पाकिस्तान के रिकार्ड से ढाई गुने ज्यादा के लगभग आये जन-समूह ने एक साथ ‘जन-गण-मन’ गाकर और गिनीज बुक ऑफ़ रिकार्ड में इसे दर्ज कराकर देश-दुनिया के सामने कानपुर का नाम एक बार फिर सुर्ख़ियों में ला दिया, जिनके अनुसार इस कार्यक्रम में 1,12,172 लोगों ने भाग लिया.
यह घटना क्षणिक उन्माद का उदाहरण नहीं है. यह घटना सकारात्मक सोच के पांच लोगों द्वारा लगभग पांच साल पहले बनाए गए ‘परिवर्तन फोरम’ के संघर्षों को कानपुर के शहरवासियों की मान्यता थी. इस समूह का मानना है, कानपुर उत्तर प्रदेश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक की धुरी बनने की क्षमता रखता है. प्रदेश की सबसे अधिक आबादी वाला शहर निम्नतम नागरिक सुविधाओं और आर्थिक उन्नति में सहायक आधारभूत ढाँचे के घोर अभाव के बावजूद प्रदेश ही नहीं वरन देश की आर्थिक उन्नति में अपनी अनिवार्य भूमिका बनाए रखने की जद्दोजहद में लगा है. “बदलो खुद को, बदलो शहर को” के नारे के साथ पांच साल पहले घर-घर कूड़े के संकलन के लिए चलाये गए हरे-हरे रिक्शों से शुरू की गयी मुहिम पार्कों के सुन्दरीकरण और कूड़ा-घर के स्वरूप परिवर्तन के मार्ग पर निरंतर अग्रसर है. वैचारिक और बौद्धिक पैमाने पर बहुत प्रौढ़ इस समूह में अनिल गुप्ता, गणेश तिवारी, कैप्टन सुरेश चन्द्र त्रिपाठी, राजीव भाटिया, संदीप जैन की केन्द्रीय भूमिका है. इन पाँचों ने समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में महारत हासिल की हुयी है. देश की सभी घटनाओं से कदमताल करता यह समूह लगातार शहर, प्रदेश और देश के साथ दुनियावी परिवर्तन से जुड़ाव रख जनता की बेहतरी मंश व्यस्त है. चाहे ‘विजन कानपुर’ दस्तावेज का निर्माण रहा हो या फिर अन्ना के आन्दोलन से जुड़ाव, इस समूह ने मजदूरों की बहुलता वाले शहर को फिर से ज़िंदा रखने के लिए तमाम योजनाओं पर कार्ययोजनाएं बना रखी हैं. इस समूह द्वारा राजनीति में भले आदमी के प्रवेश की हिचक को तोड़ने के लिए पहल करते हुए नगर निगम चुनावों में महापौर पद के लिए गणेश तिवारी को निर्दलीय प्रत्याशी बनाया गया. कानपुर की जनता ने भी इस सही पहल को हाथोंहाथ लेते हुए उन्हें तीसरे क्रम तक पहुंचाया.
कानपुर शहर के राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर नेतृत्वहीनता को ठीक से समझ बना चुके इस समूह ने इन सभी स्तरों पर बनायी कार्ययोजनाएँ वास्तविकता के धरातल पर उतारनी शुरू कर दी हैं. यूं तो कानपुर के सांसद कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और केन्द्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, परन्तु बहुचर्चित कोयला घोटाले ने उनकी लोकप्रियता को निम्नतम स्तर पर ला दिया है. दूसरी तरफ बिना किसी कैडर के केवल अधूरे संगठन के दम पर आज के इस कार्यक्रम में बिना किसी भगदड़ के शांतिपूर्वक संपन्न होना एक शुभ संकेत है. प्रशासन की निष्क्रियता ने इस कार्यक्रम को भगदड़ या फिर आये हुए लोगों में अफरातफरी फैला कर असफल करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी, परन्तु केवल सकारात्मक सोंच के लोगों के इस समूह ने इस कार्यक्रम के शांतिपूर्ण आयोजन से उन्हें यह सबक दिया की कानपुर का यह नागरिक समुदाय वास्तव में सभ्य और जिम्मेदार शहरी समुदाय का सच्चा हिमायती है, जिसे अपनी नागरिक जिम्मेदारियों की गहरी समझ है. इस आयोजन का यह निहितार्थ भी है, “परिवर्तन फोरम” के ये पांच पांडव शहर को सम्हालकर उसकी थाती को आने वाली पीढ़ियों को सकुशल सौंपने में सक्षम हैं. अब दूसरे कनपुरिये भी अपनी बदहाली और यथास्थितिवादी नकारात्मक सोंच को त्यागकर इनके साथ कदमताल करने में अपना सौभाग्य मान रहे हैं. यह परिवर्तन नीयत का है, जिससे नीति परिवर्तन संभव हो रहा है. शिक्षा, उद्योग, व्यवसाय, राजनीति सहित सभी क्षेत्रों में काबिज काकस ने इस समूह को अपने लिए खतरे की घंटी समझ लिया है.

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