जर्नलिज्म वर्ल्ड

कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज ने वैचारिक क्रांति की जमीन को टटोला

तेवरआनलाईन, पटना

बिहार की राजधानी पटना में हेगेल पर चर्चा हुई, मार्क्स पर चर्चा हुई, बाजार और इसके चलन पर चर्चा हुई। प्रायोजित विचार, मीडिया और मीडिया के लोग, सरकार और उसका निष्ठुर तंत्र, सरकते हुये मानवीय मूल्य, एकल परिवार के नये चलन, मरती संवेदना जैसे पहलुओं को छूते हुये यह चर्चा आगे बढ़ते रही। इस अवसर के इजादकर्ता थे कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज और वाह जिंदगी। दिल्ली से भी कुछ लोगों ने इसमें शिरकत किया था, और स्थानीय स्तर पर भी बौद्धिक हलकों में अपनी धमक रखने वाले लोग भी इसमें शामिल हुये। स्थान था पटना का विधान परिषद सभागर, जो इस खास मौके पर युवाओं से छलक रहा था। विषय था चाहिए एक वैचारिक क्रांति। एक के बाद एक कई लोग इस पर बोलते गये, और उन चीजों को टटोलने की कोशिश करते रहे, जो सरकार, सरोकार और जिंदगी से जुड़ी हुई हैं।

आउटलुक पत्रिका की फीचर संपादक गीताश्री ने थोड़ा जोर देते हुये कहा कि वैचारिक अकाल जैसी कोई स्थिति नहीं है, चूंकि इसके पूर्व कुछ वक्ता वैचारिक अकाल जैसे शब्द का इस्तेमाल कर चुके थे। अब तक किसी ने वैचारिक क्रांति जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था। जबकि मंच के पीछे लगे बैनर में वैचारिक क्रांति शब्द का इस्तेमाल किया गया था। वह आगे बोलती गई कि आज भी बौद्धिक बहस हो रही है, लेकिन लोगों की आर्थिक और सामाजिक मजबूरियां उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है। समाज में सबसे पहले बहस शुरु होता है, फिर वैचारिक क्रांति आती है, इसके बाद ही हथियारों की लड़ाई शुरु होती है। उन्होंने आगे कहा कि बिहार का रिक्शावाला तक समाज और राजनीतिक की बातें करता है, इसके प्रति उसकी चेतना जागृत है।          

इसके पहले मुहल्ला लाइव डाट काम के संपादक अविनाश स्वामी विवेकानंद की बातों को दुहराते हुये कि जब तक इस देश में एक भी आदमी भूखा और गरीब है धर्म की बात करना बेकार है अपनी बात कह गये, जो विषय को ट्रैक पर नहीं ला सका था। भावनाओं में हिलकोरे खाने के बावजूद गीताश्री भी विषय से भटकती हुई सी लगी।      

मौर्य टीवी के मुकेश ने यह कहते हुये फलक को विस्तार देने की कोशिश की कि आज लोगों पर प्रायोजित विचारों का हमला हो रहा है। इन प्रायोजित विचारों पर लोगों को ढालने की साजिश चल रही है। सारे विचार बाजारवाद को पोषित करने का हिस्सा है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम प्रायोजित विचारों की पहचान करे और उन विचारों की ओर अग्रसर हो, जिसकी समाज को वाकई में जरूरत है। इसके पहले मौर्य टीवी के राजनीतिक संपादक नवेन्दु इस बात को नकार चुके थे कि समाज वैचारिक अकाल के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने जोर देते हुये कहा था कि चिंतन मानव का स्वाभाविक गुण है, और जहां मानव है वहां वैचारिक अकाल कभी नहीं पड़ सकता।   

पत्रकार वर्तिका नंदा ने सर्च इंचन गूगल बाबा के नाम का सहारा लेते हुये चर्चा को आगे बढ़ाते हुये कहा कि पटना में कदम रखने से पहले वह यह पता लगा रही थी कि गूगल पर बिहार के संदर्भ में सबसे अधिक हिटिंग किसे मिल रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह के हिटिंग से यह पता चलता है कि लोगों में जानने की भूख है। थोड़ी देर बाद विषय की पटरी को छोड़ते हुये वह कहने लगी कि बिहार की नकारात्मक छवि बनाने मे मीडिया की भी भूमिका है, जबकि बिहार कि सकारात्मक चीजों एवं उपलब्धियो को नज़रअंदाज़ किया जाता है। भौतिकता और नैतिकता साथ साथ नहीं चल सकती।

कवि संजय कुमार अग्रणी वक्ताओं में से थे, और वह भी विषय से हटकर ही बोल रहे थे, हालांकि उनके बोलने का लहजा बेहतर था। उन्होंने कहा कि हम खुद से यह सवाल क्यों नहीं करते कि अगली पंक्ति में खड़े होकर सामाजिक सरोकार से जुड़ी बातों की जिम्मेदारी हम क्यों नहीं लेते। वर्तमान से निराशा व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि हमें विचारों के लिए बार-बार विगत की ओर क्यों मुड़ना पड़ता है। पहले संयुक्त परिवार में लोग रिश्तों को पहचानते थे, परिवार में माता-पिता, दादा-दादी के अलावा चाचा, मामा, और फूफा भी होता था, लेकिन अब लोग खुद में ही सिमटते चले जा रहे हैं।   

पटना यूनिवर्सिटी के प्रो. नवल किशोर चौधरी ने सिमेज तथा कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज के निदेशक नीरज अग्रवाल के साथ-साथ कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज के हेड पुरोषोतम को इस तरह के आयोजन के लिए धन्यवाद देते हुये कहा कि ऐसे आयोजन बता रहे हैं कि समाज चिंतनशील है, आगे बढ़ रहा है। फिर तत्काल विषय को टच करते हुये उन्होंने कहा कि विषय व्यापक है इसे हल्के में नहीं समेटा जा सकता। फिर सीधे हेगेल और कार्ल मार्क्स का नाम लेते हुये पूरे चर्चा को एक नई लेकिन सही दिशा में बहा ले गये। उन्होंने कहा कि हेगल मार्क्स का गुरु थे। मार्क्स हेगेल के दर्शन से आकर्षित भी हुये और उसे खारिज भी किया। दोनों की बातों का उल्लेख करते हुये उन्होंने बड़ी ही सहजता से यह बताया कि कैसे सामाजिक संरचना आर्थिक संरचना पर टिकी हुई है। एक उदाहरण देते हुये उन्होंने कहा कि पहले एक गांव में दो परिवार के लोग एक-एक बैल रखते थे, और आपसी सहयोग से खेत जोतने के लिए समय-समय पर एक दूसरे के बैल का इस्तेमाल करते थे। यह एक तरह का को-आपरेशन था, जो आर्थिक आधार पर टिका हुआ था। अब डाक्टर, इंजीनियर, पत्रकार आदि बनने के लिए किसी अन्य के सहयोग की दरकार नहीं होती, इसलिए लोग अपने आप में सिमटते जा रहे हैं, यह ट्रांसफार्मेशन है। समाज बदलता है, बदल रहा है और इसका आधार आर्थिक है। हेगल विचार को ही सबकुछ मानते थे। वह कहते थे दुनिया में जो कुछ है वह विचार ही है, और दुनिया का बदलवा विचार से ही हो रहा है, लेकिन मार्क्स ने ठीक इसके विपरित यह निष्कर्ष निकाला कि विचार का आधार भी अर्थ है। विचार के स्थान पर उसने मैटर को महत्व दिया, जो ट्रांसफार्म करता है। और जब मैटर ट्रांसफर्म करेगा तो विचार भी ट्रांसफार्म करेगा। हर दिन हर क्षेत्र में नई –नई चीजें आ रही हैं, इनका प्रभाव विचार पर पड़ेगा ही, और इस तरह से वैचारिक क्रांति खुद-ब-खुद अपना रास्ता बनाते जाएगी।

इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र ने कहा की बदलते समय के साथ, हमारी सोच में बदलाव आया है। बिहार की प्रतिभाओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार के लोगों ने हर क्षेत्र मे बिहार का नाम बढ़ाया है एवं बाबा नागार्जुन की कविताओ में सभी प्रकार के विचारों का समावेश है। उन्होंने कहा की शिक्षा के प्रचार प्रसार की व्यापक ज़रूरत है व व्यवहार में आर्थिक योजनाओं के अनुपालन की ज़रूरत है।  

चर्चा को को-आर्डिनेड करने वाले शख्स हर वक्ता के बाद कविताओं के माध्यम से सत्र को आगे बढ़ा रहे थे। बेहतर होता वह चर्चा को ही आगे बढ़ाते। ओजपूर्ण कविताओं की पंक्तियां निसंदेह सुनने में अच्छी लगती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह चर्चा को ही लीड करे। गंभीर चर्चा में कभी-कभी कविताओं की पंक्तियां फिसलती हुई सी लगती है। वक्ताओं का क्रम भी ठीक नहीं था। विषय की ओपनिंग धाकड़ तरीके से होनी चाहिये थी।  

मोर्या टीवी के मुकेश और पटना यूनिवर्सिटी के प्रो. नवल किशोर चौधरी चर्चा को ऊंचाई देते हुये दिखे, लेकिन अन्य वक्ता इधर उधर भटकते हुये से लगे। बहरहाल कैटेलिस्ट मीडिया कालेज की ओर से यह एक रोमांचित करने वाली पहल थी। खासकर ऐसे समय में जब चारो ओर यह कहा जा रहा है कि लोग विचार शून्यता की दौर में जी रहे हैं इस तरह के आयोजन निसंदेह सुकून देते हैं। लगभग सभी वक्ता नये मीडिया के तौर पर ब्लाग लेखन और डाट काम को वैचारिक क्रांति का प्रमुख गढ़ मानते हुये से दिखे। सभी को इस बात का अहसास था कि इस नये मीडिया में सरोकारों को लेकर बेहतर काम हो रहा है।  

कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज के निदेशक नीरज अग्रवाल ने कहा की इससे पहले भी कैटलिस्ट मीडिया कॉलेजसामाजिक समस्याओं तथा पत्रकारिता से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को प्रमुखता से उठाता रहा है, चाहे बिहार मे पहली बार आयोजित एडिटर्स मीट हो, या बिहार के तत्कालीन डीजीपी तथा आजतक के प्रसिद्द क्राईम रिपोर्टर शम्स ताहिर खान के मध्य क्राईम-मीडिया और पुलिस की भूमिका का ज़िक्र हो, या प्रसिद्द शायर निदा फाज़ली की नज्मो और शायरी द्वारा दुनिया को देखने का नजरिया। इन कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को एक सकारात्मक सन्देश देने की कोशिश की है, कैटलिस्ट मीडिया कॉलेज ने। यह कार्यक्रम भी उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में भी वैचारिक क्रांति को बल देने के लिए बाबा नागार्जुन की रचनाएँ भी पढ़ी गई जिससे की युवाओ को उनकी रचनाओ से प्रेरणा मिल सके।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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