कौन है 23 मासूमों की मौत का जिम्मेदार?

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अपनी विकास यात्राओं पर करोड़ों रुपये फूंकने और सरकारी अमला को हर वक्त  साथ लेकर चलने वाले बिहार के मुख्यमंत्री मिड डे मील खाने की वजह से 23 बच्चों की मौत पर लगातार नजर चुरा रहे हैं। इतना ही नहीं, बिहार सरकार के तमाम आला अधिकारी और मंत्री मिड डे मील व्यवस्था में व्याप्त खामियों की ईमानदार समीक्षा करने की बजाय इस थ्योरी को स्थापित करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को एक सुनियोजित साजिश के तहत जहर दिया गया है, हालांकि यह थ्योरी लोगों के गले नहीं उतर रही है। इस घटना के विरोध में छपरा और पटना में व्यापक तोड़-फोड़ के दौरान लोग यही सवाल कर रहे थे कि सरकार इतनी असंवेदनशील कैसे हो  सकती है? मिड डे मील खाकर 23 बच्चों की मौत हो चुकी है और सरकार तमाम जिम्मेदारियों से बचते हुए इस घटना को साजिश से जोड़कर क्या साबित करना चाहती है? 23 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है? यदि थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाये कि यह साजिश थी तो अब तक तमाम साजिशकर्ता सलाखों के पीछे क्यों नहीं हैं? इस प्रकरण में नीतीश हुकूमत के भोथरे तर्कों पर लोगों का गुस्सा और भी बढ़ता जा रहा है। लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार अब तक अरबों रुपया अपनी छवि को चमकाने पर फूंक चुके हैं। यदि यह पैसा बच्चों के बेहतर भोजन पर खर्च किया जाता और मिड डे मील के प्रबंधन में व्यापाक सुधार किया जाता तो सूबे में इस तरह के हादसे पेश नहीं आते।
मिड डे मील की हकीकत
मिड डे मील की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। बच्चों की थाली में सड़े हुये अनाज लंबे समय से परोसे जा रहे हैं। सूबे में मिड डे मील योजना पर पूरी तरह से माफियाओं का कब्जा है। सरकारी कर्मचारी भी इन माफियों से मिले हुये हैं। ऐसा नहीं है कि मिड डे मील योजना में जारी धांधली के खिलाफ आवाज नहीं उठी है। लोग लगातार इसकी शिकायत करते रहे हैं, इसके बावजूद महकमे के तमाम आला अधिकारी कान में तेल डाल कर सोये हुये हैं। नीतीश कुमार की विकास यात्राओं के दौरान जब कभी लोगों ने इसकी सीधी शिकायत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से करने की कोशिश की तो अधिकारियों ने उन्हें परे धकेल दिया। मजे की बात है कि नीतीश कुमार खुद को जनता का नेता बताते हैं, लेकिन अभी तक वह इस हकीकत को नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं कि सूबे में मिड डे मील योजना पूरी तरह से माफियाओं के रहमोकरम पर है। इतना ही नहीं, बच्चों को खाने में सड़ा-गला अनाज तो दिया ही जा रहा है, खाना तैयार होने के बाद उस खाने को चखने की जहमत भी कोई नहीं उठा रहा है। ऐसे में लोग यह खुलकर कहने लगे हैं कि नीतीश हुकूमत पूरी तरह से अनाज माफियाओं की गोद में बैठी हुई है। 23 मासूम बच्चों की मौत से भी वह सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है। इसके विपरीत इसका ठीकरा किसी और के सिर पर फोड़ने की जुगत लगाते हुये इस त्रासदी को सरकार एक साजिश साबित करने की कोशिश कर रही है, जबकि लोगों का कहना है कि यह मामला पूरी तरह से अधिकारियों और अनाज माफियों के बीच की आपसी सांठ गांठ का है।
खराब तेल की शिकायत
वियाडा भूमि घोटाले में अपने परिवार के लिए अच्छी खासी भूमि हड़प करने वाले शिक्षा मंत्री पीके शाही शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि बच्चों के खाने में जहर मिलाया गया है। अब वह बता रहे हैं कि धर्मासती गांव में अपने पति अजय राय की किराना दुकान से प्रधानाध्यापिका मीना कुमारी मिड डे मील की सामग्री खरीदती थीं। हादसे के दिन रसोइये ने जब खराब तेल की शिकायत की, तो प्रधानाध्यापिका ने इसी तेल में सब्जी बनाने का फरमान जारी किया। यदि पीके शाही की बातों पर ही यकीन करें तो सवाल उठता है कि मिड डे मील से संबंधित यह पहलू पहले ही सरकारी अधिकारियों की नजर में क्यों नहीं आई? प्रधानाध्यापिका मीना कुमारी लगातार अपने अपने पति की किराना दुकन से सामान खरीद रही थीं, तो इस बात की तस्दीक करने की जिम्मेदारी किसकी थी कि उसके पति की किराना दुकान से आ रहे सामान की गुणवत्ता सही है या नहीं? आखिर हादसे के बाद सरकार की नींद क्यों टूटी? मतलब साफ है कि बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता न तो प्रध्यानाध्यापिका को थी और न ही सरकारी अधिकारियों को। इन्हें तो बस अपनी जेबें भरने से मतलब था। अब इस तथ्य का खुलासा हो गया है कि खाना बनाने में इस्तेमाल किये गये तेल में ही कीटनाशक ‘आॅगेर्नो फॉस्फोरस’ मिला हुआ था, जिससे 23 बच्चों की मौत हुई है।
नीतीश हुकूमत की लापरवाही
नीतीश हुकूमत की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने केंद्र सरकार द्वारा सूबे के सारण सहित 12 जिलों में मिड डे मील योजना को लागू करने में व्याप्त खामियों को लेकर भेजे गये अलर्ट की भी पूरी तरह से अनदेखी की। अब सूबे के मानव संसाधन विभाग के प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा ढिठाई के साथ यह दावा कर रहे हैं कि उन्हें इस तरह का कोई अलर्ट नहीं मिला था। जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार पूरी तरह से ब्यूरोक्रेट्स के चंगुल में हैं। नीतीश कुमार वही देखते और सुनते हैं, जो उन्हें ब्यूरोक्रेट्स दिखाते और सुनाते हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार सूबे की जमीनी हकीकत से पूरी तरह से दूर हो चुके हैं। यदि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में सूबे की जनता नीतीश कुमार को धक्का मारने में जरा भी नहीं हिचकेगी। सूबे की ब्यूरोक्रेसी पूरी तरह से करप्ट हो चुकी है और नीतीश कुमार ब्यूरोक्रेट की आलोचना सुनने के लिए कतई तैयार नहीं हैं। इस प्रकरण में ब्यूरोक्रेसी नीतीश कुमार से ज्यादा खुद का बचाव करती हुई दिखती रही है। पूूरे प्रकरण पर मौन रह कर नीतीश कुमार भी ब्यूरोक्रेसी का समर्थन ही कर रहे हैं, जिसकी वजह से लोगों का गुस्सा उन पर बढ़ता ही जा रहा है।
विपक्ष का रवैया
कल तक नीतीश कुमार के साथ सत्ता में मजा कर रही भाजपा अब नीतीश कुमार पर खुलकर निशाना साध रही है। सुशील कुमार मोदी समेत तमाम भाजपा नेता एक स्वर से नीतीश कुमार को नाकारा साबित करने पर तुले हुये हैं, जबकि बिहार में ‘माफिया राज’ कायम करने में भाजपा की भी अहम भूमिका रही है। ऐसा नहीं है कि मिड डे मील में चल रही धांधली की जानकारी भाजपा नेताओं को नहीं थी। भाजपा के कई छुटभइये नेता भी मिड डे मील योजना में जमकर मलाई काट रहे थे और आज भी काट रहे हैं। 23 मासूम बच्चों की मौत के लिए एक हद तक भाजपा भी जिम्मेदार है। बिहार में अनाज माफियाओं का राज रातों-रात कायम नहीं हुआ है। इस रवायत को मजबूत करने में भाजपा की भी अहम भूमिका रही है। सूबे में 23 बच्चों की मौत पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद और लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान भी घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं और नीतीश कुमार का इस्तीफा मांगते हुये दोषियों के खिलाफ हत्या का मामाल दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। इन दोनों दलों के भी कई नेता नीतीश हुकूमत में अनाज माफिया में तब्दील हो चुके हैं। बिहार में अनाज माफियाओं की जड़ें काफी गहरी हैं। हर दल के साथ इनकी सांठगांठ है। अब जिस तरह से मासूम बच्चों की मौत पर राजनीति हो रही है, उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि इस हादसे की पूरी सच्चाई शायद ही सामने आ पाये। पुलिस की सुस्ती का आलम यह है कि अभी तक स्कूल की प्रिंसिपल को भी हिरासत में नहीं लिया जा सका है। कहा जा रहा है कि वह एक रसूख वाली महिला है और लगभग सभी दलों में उसकी गहरी पैठ है। यही वजह है कि अभी तक कानून के हाथ उस तक नहीं पहुंचे हैं।
मुआवजा पर रोष
धर्मासती गंडामन गांव में जहां यह हादसा पेश आया है, मासूम बच्चों के परिजन अभी भी चीत्कार कर रहे हैं। उनके आंसू थम नहीं रहे हैं। हादसे के तत्काल बाद जिस तेजी से नीतीश कुमार ने बच्चों के परिजनों को दो -दो लाख रुपया देने की घोषणा की थी, उसे लेकर गांव वालों में खासी नाराजगी है। गांव वालों का कहना है कि यदि समय पर बच्चों को इलाज मुहैया हो जाता तो उनमें से कई की जान बच सकती थी। जिस समय बच्चों को छपरा से पटना के पीएमसीएच में लाया जा रहा था, उस वक्त नीतीश कु्मार मुआवजा की घोषणा करने में व्यस्त थे। क्या इन बच्चों के जान की कीमत महज दो लाख रुपया है? आखिर नीतीश कुमार को मुआवजा देने की इतनी हड़बड़ी क्यों थी?

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  1. गंदमन धर्मसती मे छायी मातमी बिरानी को चीरती करुण रुदन मानवीयता को पूरी तरह झकझोरती है कोई कुछ भी बोलने को त्यार नही अपने नव्निहालो को खो चुकी लोग भावसुन्या नजरो से गाव मे आने वाले लोगो को कातर निग्हू से देखते है जैसी अपने बचो के मौत का हिसाब मांग रही हो \मेरी पत्नी बगल के पंचायत बहरौली कुंवर टोला उत्क्रमित मध्ये बिद्यलाई मे शिक्षिका है सरकारी बिद्यालयियो मे आने वाले बचो की दारुण दशा और सरकारी ववास्था मे मची लूट से बेहद आहत रहती है बीमार है बिगत २ वर्सो से इस कारन बिद्यालाई नही जा पा रही अक्सर वह कहती थी की मिड डे मिल मे जो खाना बनता है अगर विद्यालयी के शिक्षक नही खाते तो आप समझ सकते है की उसकी क्वालिटी कैसी होगी \खैर धर्मं सती की वक्ती तस्वीर बेहद भयावह है इस गाव के कमासुत जो पंजाब हरियाणा देलही मे रोजी रोटी का जुगार करने गै थे आब वापश आ चूकी है मौत के मातम के बाच सर्कार द्वारा घोषित अनुदान की चर्चा छिर्तै ही वे लोग गुस्से और आक्रोश मे आ जाते है ग्रामीणों मे सबसे जादा आक्रोश मुख्यमंत्री के नही आने को लेकर है लोग कहते है की इतनी बरी घटना हो गई और साहब हमारे अंशु पोछने नही आये वे आते तो दिल को सुकून मिलता वोट की राजनीती मे मासुमू के मौत को पिरित भूलने को तयार नही नेताऊ पर और स्थ्नियै सरकारी अधिकारिओ पर उन्हे भरोषा नही \मशरख पर्खंड मे पर्खंड सिक्षा पध्धिकारी के परभार मे dpo थे हाल तक स्थनिअयै मफ़िअऒ के डर से वे किसी विद्यालाई तक मे नही जाते थे उससे पहले कोई पर्बोध कुमार थे उनहू नै सभी विद्यलैओ पर टैक्स बांध रखा था सिकायत हुई तो बर्खास्त हुऐ \इस पूरी वयवस्था के खिलाफ मैने खुद बिगुल फुका था २ वर्ष पहले मुख्याई मंत्री \सिक्षा मंत्री को आवेदन दी कर मिड डे मिले पर सवाल उठाया था करवाई के नाम पर कई सरकारी चिठिया पटना वय छपरा मशरख तक चकर काटी रही स्थनियै संसद जो उस समय थे उमाशंकर बाबु जो रिश्ते मे मेरे फूफा लगते थे उन्होने भी सम्बंधित बिभाग को पत्र लिखा था ..अगर उस पर करवाई हुई होती तो यह घटना नही होती\धर्मसती की घटना के बाद आरोप परत्य रोप पर भी गाव के ग्रामीण खामोश है मीना कुमारी के बारे मे पता चला की वह नाम मात्र की परभारी थी पूरा खेल तो उसका पति देखता था उसकी दबंगई के चलते कोई भी आवाज़ नही उठता था यसही हालत पर्खंड के अन्यै सरकारी बिद्यालयियो का भी है \हम रात मे एक ऐसी घर मे पहुचाई जहा घर का एकलुता चिराग बुझ गया है उस बचे की माँ को बेहोशी की दावा दी कर बेहोश किया जा रहा था पूछने पर पता चला की अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है उसका पति लुधियाना मे मजदूरी करता था घर लौटा तब तक एकलुता बेटा मिटी मे समां चुक्का था वह कहता है की पयिषा से का हमर बेटा वापश आ जाई हमरा मुआवजा ना चाही हमरा बाबु के वपश ला दी लोग हम कैसै जियाब बाबु के बिना जिनगी किसी काटी………….उसकी सवालो से हमरी अंखि भी भर आई

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