दिल्ली का रामलीला मैदान : आंखों देखी
दिल्ली का रामलीला मैदान जहां पहुंचने का एक आसान साधन है दिल्ली मेट्रो। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन मेट्रो पर पहुंचते ही आंदोलन की आवाजें गूंज रही होती हैं। रामलीला मैदान लिखे हुए तीर वाले बैनर पहली बार वहां लगाए गए थे। लेकिन शायद इसकी जरुरत किसी को पड़ ही नहीं रही थी क्योंकि अन्ना के नोरों के साथ आने जाने वालों का हुजूम स्वत: ही उन रास्तों पर खींच ले जा रहे थें।
जैसे ही लोग मेट्रों से बाहर निकलते एक पल के लिए चौंक जाते। सारा दृष्य मेले की तरह मालूम पड़ रहा था। झंडे , बैनर, गांधी टोपी बेचने वालों की फुटपाती दुकानें हर तरफ पसरी हुईं थीं। आपके गालों पर तिरंगा बनाने के लिए सात – आठ पेंटर आपकी तरफ दौड़ कर पहुंचेंगे। आप पूछोगे कि कितने पैसे लोगे तो वे बोलेंगे एक की दस रुपए , फिर दस में आप के साथ दो बच्चों की भी बनाने को तैयार हो जाएंगे , इसलिए आप भी तैयार हो जाएंगे और देशभक्ति का रंग चढ़ जायेगा। फिर गांधी टोपी बेचने वाले बच्चे आपके पीछे पड़ जाएंगे , दस की एक टोपी ले लो। आप दस की दो बोलोगे , वे तैयार हो जाऐंगे। इस तरह से ‘मैं अन्ना हूं’ लिखी टोपी पापा , मम्मी के साथ बच्चे भी पहन ले रहे हैं।
हर तरफ नाचती गाती टोलियां रामलीला मैदान की तरफ बढ़ रही होती हैं। कुछ लोग खुली गाड़ियों में सवार तो कुछ लोग खुली सड़क पर। कुछ पल के लिए आप विश्वास नहीं कर पाओगे कि आप कौन सी जगह पर हो। हर तरफ पुलिस भी छाई है पर बिलकुल खामोशी और शालीनता से। रामलीला मैदान में अंदर जाने के लिए एक लंबी लाइन लगी है। बच्चे , बूढ़े , जवान , छात्र सभी उसमें लगे हैं। पुलिस चेकिंग के बाद एक एक कर सभी को अंदर किया जा रहा है।
सबसे उपर मंच पर अन्ना बैठे हैं। उनके पीछे गांधी की बड़ी तश्वीर। उसके नीचे वाले मंच से भाषण हो रहे हैं , कविता की लाईनें गूंज रही हैं। बीच बीच में इस आंदोलन के लिए अलग अलग राजनीतिक दल और संगठनों से मिलने वाले समर्थन की खबरों की घोषणा भी की जा रही थीं। व्यक्तिगत रुप से सांसदो और नेताओं के समर्थन की भी घोषणाएं हो रही थीं। जब कभी अन्ना खड़े हो रहे थे, इधर उधर बिखरे लोग उनकी झलक के लिए दौड़ पड़ते थे। पूरे उपस्थित लोगों में अचानक एक लहर सी उठती है। इस जन सैलाब में पारिवारिक लोगों की बहुत बड़ी संख्या है जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ हाथों में राष्ट्र का झंडा लिए झूम रहे थें। प्रेमी जोड़ों की देश भक्ति भी यहां दिख रही है। छोटे छोटे प्यारे प्यारे चेहरे कह रहे हैं कि अहिंसा की एक बड़ी लड़ाई के वे बहादुर सिपाही हैं। मंच से देश भक्ति गीत का सिलसिला जारी था। मेरा रंग दे बसंती चोला पर लोग नाच रहे थे। बीच बीच में अन्ना लोगों की तरफ अपना हाथ हिलाते और लोगों का उत्साह और अंगड़ाई लेने लगती ।
हर तरफ टेंट लगे हुए हैं पर कहीं कोई बैठने के मुड में नहीं है। हर कोई चल रहा है , हर कोई झूम रहा है। विभिन्न चैनेल वालों ने अपनी उंचाई वाली स्टेज बना कर अपनी पोजीसन ले रखी थी। बाहर से आने वालों के लिए खाने की व्यवस्था थी, जहां लिखा था – अन्ना की रसोई। एक मेडिकल साहायता केंद्र बना था। कुछ जगहों पर केले बाटें जा रहे थे, पानी की पौच और ग्लास दी जा रही थीं।
“ शहीदों की चिताऔं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनें वालों का यही बाकी निशां होगा ”
वास्तव में यह देश भक्ति का मेला था जहां लोगों के नारे पल पल गूंज रहे थे
मैं भी अन्ना तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना।