बिहार में विकलांगों से भी घूस खा रहे हैं सरकारी बाबू

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तेवरआनलाईन, पटना

एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर बिहार सरकार के लगभग सभी विभागों में भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है। मजे की बात तो ये है कि क्लर्क-किरानी से लेकर बड़े-बड़े बाबू तक भ्रष्टाचार की गंगोत्री में गहरी डुबकी लगा रहे हैं। मानवीय मुल्यों को ताक पर रखकर विकलांगों तक को नहीं बख्शा जा रहा है। विकलांक सहायता कोष सी दी जाने वाली राशि तक पर भ्रष्टाचारियों की नजर है। बिना पैसा लिये हुये विकलांगों को सहायता राशि का चेक नहीं दिया जा रहा है।

कलेक्ट्रेरियट विकलांग सहायता कोष में बैठे बाबू लोग इसी ताक में रहते हैं कि कैसे कमाई की जाये। कई तरह की उलुल जलुल प्रक्रियाओं के बाद के विकलांगों कर्ज के रूप में कुछ रकमें दी जाती हैं. फाइल को एक टेबुल से दूसरे टेबुल पर जाने के लिए चढ़ावा चढ़ाना जरूरी होता है। इसके अलावा कई तरह के पैरवी की भी दरकार होती है। इसके बाद उनका चेक बनता है। मजे की बात ये है कि विकलांग सहायता कोष का दफ्तर दूसरे मंजिल पर है। अब कोई विकलांग जो सीढ़िया चढ़ पाने में असमर्थ है दूसरी मंजिल पर कैसे जाएगा समझ के परे हैं। जैसे तैसे करके यदि कोई ऊपर चढ़ भी जाता है तो उसे एक बार में तो चेक दिया ही नहीं जाता है। सीधा सा फार्मूला काम करता है कि चेक देने में देर करो ताकि विकलांक व्यक्ति मोटी रकम देने के लिए तैयार हो जाये। सामान्यतौर पर चेक देने के लिए हजार रुपये की मांग की जाती है। इससे कम पर बाबू लोग चेक देने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं।  

इस संबंध में अपने चेक के लिए दौड़ लगाने वाले एक विकलांग व्यक्ति ने बताया कि वो अपने चेक लिए पांच सौ रुपया देने के लिए तैयार था, लेकिन उससे बार-बार एक हजार रुपये की मांग की गई। अंत में हार कर उसे एक हजार रुपये देने पड़े। एक हजार रुपये का बंटवारा पोस्ट के मुताबिक वहां काम कर रहे तमाम छोटे बड़े बाबुओं के बीच बड़ी ईमान दारी से हो जाता है। अब जिस राज्य में बेईमानी का धन इतनी ईमानदारी से बंट रहा है तो उस राज्य में राज्य में भ्रष्टाचार को नेस्तानाबूत कर थोड़ी टेढ़ी खीर है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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  1. असली साम्यवाद हर गलत जगह पर दिखता है। पता नहीं कार्ल मार्क्स ने सभी गलत जगहों को देखकर ही अपना सिद्धांत दिया था या नहीं। इन भ्रष्टाचारियों में साम्यवाद का सच्चा रूप देखने को मिलता है। ये किसी से घूस लेने में नहीं घबड़ाते। चाहे वह अमीर हो, गरीब हो, विकलांग हो, अंधा हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।

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