मेंटल असाइलम मे जिंदगी की गुमनामी में राजकिरण
आंखो मे नमी हंसी लबों पर …क्या बात है क्या छुपा रहे हो? हिप हिप
हुर्रे ,अर्थ तथा और भी कई फिल्मों मे अपने शानदार अभिनय से जीवंत करने
वाले राजकिरण आज अमेरिका के एक मेंटल असाइलम मे अपनी जिंदगी के गुमनाम
दौर को जी रहे हैं । असफलता जब आती है तो हर तरफ से आती है और ये बात
राजकिरण के साथ भी घटी …फिल्म मे किस्मत से मार खाने के बाद जब व्यसाय
से जुडे तो वहां भी असफलता ने दामन पकडे रखा नतीजा वो शारीरिक रूप से
बीमार रहने लगे और परिवार ने भी उनका साथ छोड़ दिया। अपनापन ही प्यारा
लगता है, यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह
आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है और यही अपनापन जब छूट जाता जाता है तब
इंसान अपने आप को पूरी तरह से खो देता है।
राजकिरण के साथ भी यही होता दिखाई दे रहा है। रूपहले पर्दे पर खूबसूरत
मुस्कान बिखेरने वाला एक फिल्मी सितारा आज रोने की स्थिति में भी नहीं है।
अपने आप को एक परिवार बताने का दंभ भरता हिन्दी फिल्मी दुनिया की असलियत
यही है। कभी नादिरा, तो कभी ऐ.के.हंगल, कभी साधना तो कभी परवीन
बाबी…कितने ऐसे नाम हमें यहां मिलेंगे जो जीवन के अकेलेपन से जूझते हुए
कुंठा का शिकार हो बैठे और ये रंगीन दुनिया बडी आसानी से अपनी राह चलता
चला गया। बालीवुड हमेशा से बडी आदर्शों की बात करता रहा मगर जिस आदर्श के
व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो,
वह भयंकर है। ये दोनो बातें आज बालिवुड का हिस्सा बन चुकी है।
इस चकाचौंध की दुनिया मे जाने कितनो के दम घुट गये इस बात के कई प्रमाण
है…मगर जो बात सबसे ज्यादा टीस पहुंचाती है वो यह है कि आखिर यहां ऐसा
क्यूं है ? यहां जरा सी असफलता ने आपको छुआ नहीं कि आप श्रापित मान लिए
जाते हैं। इस बालीवुड में सफलता एक सार्वजनिक उत्सव है , जबकि असफलता
व्यक्तिगत शोक और जब कोई व्यक्तिगत शोक के लिए अकेला पड जाता है, तब
उसकी जिंदगी मे आनेवाले आंसू किसी को दिखते नहीं। हमारा बालीवुड इस बात
पर अडिग रहता है कि संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के
शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।
वैसे भी विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही देता है। आज राजकिरण
का साथ देने के लिए ऋषि कपूर और दीप्ति नवल जैसे इंसानी कलाकार आगे आ रहे
हैं। अगर इसी तरह से पूरा बालीवुड आगे आये तो निश्चित तौर पर यह मानव-कल्याण की
दिशा मे एक बडा कदम होगा। पर क्या ऐसा हो पाएगा.?..क्योंकि ये दुनिया तो मानती है कि
अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धु:- संसार मे धन ही आदमी का भाई है और बिना धन वाले विपत्ति में पडे
एक इंसान के प्रति क्या इनकी कोई संवेदनशीलता नजर आ पाएगी? खैर ये तो समय
ही बताएगा..पर संभावना बहुत कम नजर आती है।
आज राजकिरण तो निस्तेज हो चले हैं और निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार
करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब
मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि
क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है । आज
राजकिरण जिस सर्वनाश के द्वार पर खडे हैं क्या इससे उन्हें कोई बाहर ला
पाएगा? ये सवाल आज बालीवुड के सामने सर उठा कर खडा है कि आखिर वो अपने
परिवार के एक सदस्य की कोई मदद करेगा ? इस व्यस्त दुनिया के लोग क्या कुछ
समय निकालने का प्रयास करेंगे?
मानवी चेतना का परावलंबन – अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना , आज की
सबसे बडी समस्या है । इस समस्या से निकल पाना बडा कठिन माना जाता है
….सच मे यह दिख भी रहा है। इस बालीवुड मे इतने सारे लोग और इतनी थोडी
सोच ! अगर यहां कोई सालों से लापता है तो उसे पता करने के बजाये लोग उसे
मृत मान लेने मे ज्यादा सहूलियत महसूस करते हैं। यहां ज्ञान की बातें तो
बहुत की जाती है पर आचरण? आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है, शायद इस
बात से यहां के लोग बिलकुल अंजान है…या फिर अंजान बनने का ढोंग भी तो
कर सकते हैं। यहां कुछ भी हो सकता है..और हो भी क्यूं न….ये सितारों की
दुनिया जो ठहरी।
हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है । इस सितारों की
दुनिया को अब दुबारा किसी अपने को गुमनामी से बचाने के लिए प्रथम चरण
बढाने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। खुशियों और पार्टियों का दौर चलाने
वाला बालीवुड क्या राजकिरण को फिर से एक नयी जिंदगी देने के दिशा मे कोई
कदम बढाने वाला है? भलाई का एक छोटा सा काम हजारों प्रार्थनाओं से बढकर
है । आशा करता हूं कि राजकिरण फिर से हमे रूपहले पर्दे पर दिखाई दें और हम
सभी उन्हें फिर से उसी जगह का हिस्सा बनते देखें जहां की बेरूखी ने उन्हें
जीवन से इतना अलग कर दिया है। साथ ही साथ उन सभी गुमनाम सितारों को भी एक
बार पुन: वैसे ही सम्मान दिए जाने की जरूरत है जो कभी इस दुनिया से उन्हें
मिला था। इस दिशा मे बालीवुड को निश्चित रूप से एक ठोस एवं कदम उठाने की
जरूरत है।
विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना बंद कर हमारी फिल्मी दुनिया
कुछ ऐसे कार्य करे कि भविष्य में फिर कोई राजकिरण किसी मेंटल अस्पताल में न
जाने पाये। ऐ,के,हंगल जैसे मंझे हुए वृद्ध अभिनेता अपने को धारा से
अलग-थलग न पाए….न कोई नादिरा गुमनामी की मौत मरे….और ना ही कोई रौशनी
से अंधेरे की गर्त में अपने को डूबा पाए। सूरज और चांद को हम अपने जन्म के
समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह दुर्भाग्य है कि हम यह नहीं
जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए ? निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है ।
अत: हम मिलकर यह कोशिश करें कि कोई निराश न होने पाए।