
सुशील मोदी ने किया पत्थर से पानी निकालने का काम
आलोक नंदन शर्मा
नीतीश कुमार के यू टर्न के पीछे सबसे बड़ा हाथ सुशील कुमार मोदी है। सुशील कुमार मोदी लंबे समय से लालू कुनबे की बखिया उधेड़ते हुये नीतीश कुमार से लगातार लालू को छोड़ने की गुजारिश करते आ रहे थे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जदयू के अंदर एक धड़ा लालू की मुखालफत पूरी शिद्दत से कर रहा था। लालू पुत्रों के खिलाफ अकूत संपत्ति से संबंधित जो दस्तावेज सुशील कुमार प्रेस सम्मेलनों में पेश करते थे उसको उन तक पहुंचाने का काम यह धड़ा कर रहा था। बहरहाल सुशील कुमार मोदी का अभियान सफल हो चुका है। जिस कुर्सी पर कलतक तेजस्वी यादव विराजमान थे अब उस कुर्सी पर सुशील कुमार मोदी काबिज हैं। बिहार में एनडीए-2 का नया युग शुरु हो गया है, जिसे सीधे पीएम मोदी की पुश्तपनाही हासिल है। उन्होंने इस नयी पारी के लिए नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी को बधाई भी दी है। इस सरकार की राहें आसान है इसमें कोई शक नहीं है। केंद्र में भी जदयू को प्रतिनिधित्व देने की जुगत बैठाई जा रही है ताकि बीजेपी के साथ इसकी दोस्ती की गांठ और मजबूत हो सके।
नीतीश कुमार पाला बदलने की राजनीति बखूबी करते हैं और मजे की बात है कि इसे सिद्धांतों के साथ जोड़ना भी उन्हें खूब आता है। कभी अपनी सेक्यूलर छवि को बचाने के लिए उन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को छोड़कर लालू का दामन थाम लिया था। उस वक्त नरेंद्र मोदी को वह एनडीए का नेता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। अब उन्होंने भ्रष्टाचार का हवाला देकर तेजस्वी यादव के नाम पर लालू को दरकिनारा करके एक बार फिर बीजेपी के साथ मिल कर बिहार में सरकार बना चुके हैं । लालू के साथ महज 20 महीनों का ही साथ रहा। शुरू से ही कहा जा रहा था कि यह महागठबंधन अस्वाभाविक है और ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है। लालू यादव पहले से ही भ्रष्टाचार की आंच में तप रहे थे। नीतीश कुमार को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन जब लालू के मंत्री पुत्रों- तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव- पर गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने के कई आरोप एक के बाद एक लगने लगे और संबंधित एजेंसियां इस बाबत छानबीन करने लगी तो नीतीश कुमार की धवल छवि पर भी उंगलियां उठने लगी, जिसकी परिणति महागठबंधन के टूट के रूप में सामने आयी। नीतीश कुमार ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के तौर पर पेश किया है।
बिहार में महागठबंधन के बिखरने से सबसे बड़ा झटका लालू यादव को लगा है। बौखलाहट में लालू यादव ने अपने आवास पर मीडिया से रू-ब-रू होते हुये नीतीश कुमार पर एक के बाद कई आरोप भी मढ़े हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि नीतीश कुमार कत्ल के एक मामले में फंसे हुये हैं। पुत्र मोह और तेजस्वी के इस्तीफा पर पूछे गये सवाल पर वह बुरी तरह से भड़कते हुये दिखाई दिये। उनका कहना था कि इसमें पुत्र मोह का तो सवाल ही नहीं पैद होता है। राजद का विधायक मंडल दल तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाये रखने का हामी था। सबकुछ संविधान के अनुसार चल रही था और नीतीश कुमार ने कभी भी तेजस्वी का इस्तीफा नहीं मांगा था। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तत्काल बाद नीतीश कुमार ने पत्रकारों के साथ 22 मिनट के वार्तालाप में कहा था कि उनके लिए सरकार चलाना मुश्किल हो गया था इसलिए उन्होंने इस्तीफा देना बेहतर समझा।
लालू यादव पूरी घटनाक्रम को एक सोची समझी पटकथा का हिस्सा करार दे रहे हैं। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भी यही मानना है। उन्होंने ने भी यहा कहा है कि नीतीश कुमार पिछले चार महीने से इस ट्रैक पर काम कर रहे थे। नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर बिहार में सरकार बनाना इसी का नतीजा है। नीतीश कुमार को अनैतिक करार देने के लिए चाहे जितने भी तर्क दिये जाये, इस हकीकत को सबको स्वीकार करना ही होगा कि बिहार में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता लालू यादव के हाथ से फिसल चुकी है। बिहार में कांग्रेस का जनाधार पहले से सिमटा हुआ था। महागठबंधन की वजह से ही कांग्रेस 2014 के बिहार विधानसभा चुनाव में 27 सीट लाने में सफल हुई थी। हाथ से सत्ता छिटकने के बाद बौखलाटह स्वाभाविक है। अब विपक्ष में बैठना राजद और कांग्रेस की मजबूरी है। दोनों को मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार होना होगा।
बीजेपी के साथ नीतीश की पुरानी यारी रही है। दोनों एक दूसरे के स्वाभाव से अच्छी तरह से वाकिफ है। लेकिन इस नई पारी में निश्चित तौर पर दोनों की भूमिका बदलने वाली है। इसके पहले बीजेपी के साथ सरकार बनाने की स्थिति में नीतीश कुमार प्रभावकारी भूमिका में रहते थे। बीजेपी को दबाड़ने से गुरेज नहीं करते थे और बीजेपी भी सहमी रहती थी। लेकिन अब बदले हालत में बीजेपी निश्चितौर पर नीतीश कुमार पर हावी रहेगी। नीतीश कुमार पहले की तरह मनमानी नहीं कर पाएंगे। हालांकि इसमें शक नहीं है कि बदले हुये सियासी समीकरण का सबसे अधिक लाभ बिहार की जनता को होने वाला है। बीजेपी के साथ मिलकर यदि नीतीश कुमार बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं तो निश्चितौर पर बिहार का तेजी कायाकल्प हो जाएगा। और अगर ऐसा नहीं भी होता है तो भी पिछले तीन दशक में ऐसा पहली बार होगा जब बिहार सरकार और केंद्र सरकार के विकास की दिशा एक ही होगी।