क्या यौन कुंठाओं के शिकार हैं स्टिंग किंग

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तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने पत्रकारिता में जो मुकाम हासिल किया है वह विरले पत्रकारों को ही नसीब होता है। लेकिन जिस तरह के आरोप उन पर लग रहे हैं उसे देखते हुये यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर किस मानसिकता के तहत उन्होंने यह नापाक हरकत की है। यह उनके फितरत में शामिल है या फिर नशे की हालत में महज यह आवेग था,जिसकी वजह से उनके पत्रकारिता कैरियर पर सवालिया निशान लग गया है या फिर तरुण तेजपाल की हरकत एक ऐसे व्यक्ति की हरकत थी जो दमित इच्छाओं से लंबे समय से पीड़ित रहा है और मौका मिलते ही उनकी तमाम दमित इच्छाएं सतह पर आ गई? या फिर यह एक छोटी सी भूल थी, जो महज परिस्थिति के गलत आकलन की वजह से हुई, जैसा कि खुद तरुण तेजपाल बयान कर रहे हैं। तरुण तेजपाल की नापाक हरकत एक ईमानदार पड़ताल की मांग तो करती ही है।

तरुण तेजपाल का रुतबा एक अंग्रेजीजदा पत्रकार के रूप में है। एक उपन्यासकार के तौर पर भी उन्होंने पोस्ट मार्डन युग में फ्री लाइफ की जोरदार वकालत की है। लेकिन अपने नापाक हरकतों से उन्होंने फ्री लाइफ की पाश्चात्य अवधारणा को भी बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। स्वतंत्रता की जोरदार वकालत करने वाले मगरबी विचारक जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक आन लिबर्टी में साफ तौर पर कहा था कि व्यक्ति तभी तक स्वतंत्र है जब तक कि उसकी स्वतंत्रता किसी अन्य के स्वतंत्रता में बाधक न बने। गोवा के एक होटल में लिफ्ट के अंदर जिस वक्त तरुण तेजपाल महिला पत्रकार की आबरुरेजी पर उतारु हुये थे उसी वक्त उन्होंने स्वतंत्रता की स्थापित अवधारणा की हत्या कर दी थी। अपनी नापाक हरकतों से तरुण तेजपाल ने साबित कर दिया है कि वह न तो भारतीय संस्कृति के वाहक है जिसमें महिलाओं को देवी का दर्जा दिया है और न ही मगरबी संस्कृति के जहां पर महिलाओं को पूर्ण आजादी देने की बात की जाती है,विरोधीभाषी हरकतों की वजह से तरुण तेजपाल का किरदार एक पाखंडी के रूप में ऊभर कर सामने आता है।

तरुण तेजपाल की नापाक हरकत उनके बीमार जेहनियत की ओर भी इशारा करता है। उम्र के जिस पड़ाव पर वह खड़े हैं और अब तक पत्रकारिता के साथ साथ सार्वजनिक दुनिया में उन्होंने जो मुकाम हासिल की वह उनसे संतुलित व्यवहार की मांग करता है। सारी सीमाओं को ध्वस्त करते हुये जिस तरह से उन्होंने एक महिला सहकर्मी को हवस का शिकार बनाने की उन्होंने कोशिश की है उससे पता चलता है कि तमाम तरह के दमित इच्छाओं से वह पीड़ित हैं। शराब के नशे में उन पर ये दमित इच्छाएं कब हावी हो जाती है खुद उन्हें भी पता नहीं चलता। यदि महान चिंतक फ्रायड की माने तो तरुण तेजपाल कुंठित यौन इच्छाओं से पीड़ित शख्सियत का नाम है। कानून तो अपना काम कर ही रहा है लेकिन इसके साथ ही उन्हें एक मनोचिकित्सक भी जरूरी है। तरुण तेजपाल का खुले रहना स्वस्थ्य समाज के लिए खतरनाक है।

तरुण तेजपाल ने जिस महिला पत्रकार पर हाथ डालने की कोशिश की वह उनकी बेटी की सहेली भी थी…वो भी ऐसी सहेली जिससे उसकी हर रोज बात होती थी…महिला पत्रकार बार-बार इस बात की दुहाई देती रही कि वह उनकी बेटी की सहेली है…इसके बावजूद वह पत्थर बने रहे…इससे तरुण तेजपाल  के अपराध की इंटेसिटी बढ़ जाती है…कानून को तो वह तार तार करते ही है…नैतिकता की धज्जियां उड़ा देते हैं….तरुण तेजपाल की मानसिकता एक ऐसे खतरनाक आदमी की मानसिकता है, जो ऊंचे ओहदे पर बैठे पुरुष शख्स में व्याप्त स्त्री भक्षण की जेहनियत की ओर इशारा करता है।

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