पलक झपकते ही खा जाता है जिंदा छिपकली

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फिरोज, कटिहार : कटिहार जिले के फलका प्रखंड अन्तर्गत फलका बाजार निवासी तीस वर्षीय संजय कुमार गुप्ता पलक झपकते ही खा जाता है जिंदा छिपकली। पिछले पांच वर्षो से संजय कुमार छिपकली खाये जाने के कारण लोगो में घोर आश्चर्य का विषय बना हुआ है।

जानकारी के अनुसार फलका मुसहरी निवासी बासुदेव प्रसाद गुप्ता के पुत्र संजय कुमार गुप्ता पिछले पांच वर्षो से जिंदा छिपकली खा रहा है। हद तो यह है कि वह रोज 40 से 50 पाउच नशीला पदार्थ भी बड़ी सरलता से खा लेता है। जबकि जानकार लोगों का कहना है कि आम आदमी अगर एक या दो पाउच रसीला या सुहाना खा ले तो उसे कम से कम 12 से 14 घंटे तक लगातार नशे की हालत में बेसुध रहेगा। मगर संजय के लिए 40 से 50 पाउच रसीला या सुहाना मानो नास्ता के सामान है। संजय कुमार से जब यह पूछा गया कि आप छिपकली क्यों खाते है तो उन्होने कहा कि लोग मरने के लिए जहर पीता है मगर मैं इस जिंदगी के लिए जहर पी रहा हूं. संजय का कहना है कि जब तक  दो चार छिपकली न खा लूं तो बेचैनी की हालत बनी रहती है और नशा क्या होता मुझे पता भी नहीं चलता है। हां अगर दो चार छिपकली खा लेता हूं तो दिन मस्ती भरी होती है ओर हर काम में मन भी लगता हैं वही इस संबंध में लोगों का मानना है कि अगर भूल वश खाने वाली चीज में छिपकली गिर जाये और उसे आम आदमी खा ले तो मौत निश्चित है। हलांकि संजय की पत्नी उसके रवैये से तंग आकर अपने मायके में रहने लगी है। संजय के बगिया में दो फूल भी है. दोनों बच्चे भी अपने मां के साथ ननिहाल में रहते है। संजय इससे पहले चाय की दुकान चलाता था और अभी वर्तमान में फुटपाथ पर कपड़े की दुकान चलाता है।

अगर दुकान नहीं चली तो कभी मजदूरी कर अपना जीवन यापन करता है। संजय के कथनानुसार उसका सपना है कि मैं संसार में अजूबा इंसान बनना चाहता हूं और अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवाना चाहता हूं। बहरहाल संजय के इस अजीबो-गरीब हरकत  पर फलका के प्रभारी चिकित्सक  डॉ. राम नारायण झा का कहना है कि छिपकली भी एक तरह सांप की ही प्रजाति है और विषैला भी होता है। जिसको खाना बिलकुल असामन्य बात होगा और इसका विपरित असर जीवन पर पड़ेगा।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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