भगत सिंह का पिता के नाम पत्र (23 मार्च शहादत दिवस पर विशेष)

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भगत सिंह, भगत सिंह के बाबा व पिता

30 सितम्बर ,1930 को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिबुनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की मांग की। सरदार किशनसिंह स्वय देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे।
पिता द्वारा  दी गयी अर्जी से भगत सिंह की भावनाओ को भी चोट लगी थी, लेकिन अपनी भावनाओ को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतो पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को यह पत्र लिखा जो उसके पिता को देर से मिला।

7 अक्टूबर, 1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया।

4 अक्टूबर 1930

पूज्य पिताजी,

मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि आप ने मेरे बचाव – पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा हैं। यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे  ख़ामोशी से बर्दाश्त नहीं कर सका। इस खबर ने मेरे भीतर की शांति भंग कर उथल -पुथल मचा दी हैं।  मैं यह नहीं समझ सकता कि  वर्तमान स्थितियो में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं?
आप का पुत्र होने के नाते  मैं आपकी पैतृक भावनाओं का पूरा सम्मान करता हूँ कि आप को साथ सलाह -मशविरा किये बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नहीं था। आप जानते हैं कि  राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं। मैं आप की सहमती या असहमति का  ख्याल किये बिना सदा स्वतंत्रता पूर्वक काम करता रहा हूँ।
मुझे यकीन हैं कि आपको यह बात याद होगी की आप आरम्भ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते हैं कि में अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करू।  लेकिन आपको यह भी मालूम है कि मैं सदा इसका विरोध करता रहा हूँ।  मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नहीं की और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया हैं।
मेरी जिन्दगी इतनी कीमती नहीं  जितनी की  आप सोचते हैं। कम -से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नहीं  कि इसे सिद्धांतो को कुर्बान करके बचाया जाये। मेरे अलावा मेरे और साथी भी  हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन हैं जितना की  मेरा मुकदमा।  अपने सयुक्त  योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे।  हमे इस बात की  कोई परवाह नहीं कि हमे व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा।
पिता जी मैं बहुत दुःख का अनुभव कर रहा हूँ। मुझे भय हैं, आप पर दोषारोपण करते  हुए या इससे बढ़कर आप के इस काम की  निन्दा करते हुए मैं कंही सभ्यता की  सीमाए न लाघ जाऊ और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हो जाये। लेकिन मैं स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूँगा। यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार  करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता। लेकिन आप के सन्दर्भ में मैं इतना  ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी है -निचले स्तर की कमजोरी।
यह एक ऐसा समय  था जब हम सब का इम्तहान हो रहा था।  मैं यह कहना चाहता हूँ कि आप इस  इम्तहान में नाकाम रहे है। मैं जनता हूँ कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है  जितना की  कोई और व्यक्ति हो सकता हैं। मैं जानता  हूँ कि आपने अपनी पूरी जिन्दगी भारत की आज़ादी के लिए लगा दी हैं। लेकिन इस अहम मोड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई, यह बात मैं समझ नहीं सकता।
अन्त में मैं आपसे, आपके अन्य मित्रो व मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वालों से यह कहना चाहता हूँ कि मैं आपके इस कदम को नापसंद करता हूँ।  मैं आज भी अदालत  में अपना बचाव प्रस्तुत करने के पक्ष में नहीं हूँ। अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकरण आदि के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन को मंजूर कर लेती,  तो भी  मैं कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत न करता।
मैं चाहूँगा की इस समबन्ध में जो उलझने पैदा हो गयी हैं, उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाये। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता  हूँ कि आप जल्द से जल्द यह चिठ्ठी प्रकाशित कर दें।

आपका आज्ञाकारी

भगत सिंह

प्रस्तुति ………………………….. सुनील दत्ता

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

2 COMMENTS

  1. आज महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु…इन तीनों क़ा शहादत दिवस है…तीनों एक ही अभियान में समान जिम्मेदारी के साथ थे..उनके मकसद समान थे…फाँसी भी तीनों को एक साथ हुई…लेकिन इतिहासकारों ने शायद यहाँ भी कुछ…? इसीलिए सुखदेव और राजगुरु को वह चर्चा आज नहीं मिल पा रही जिसके वे वास्तव में हकदार हैं

  2. sabhi shahidon avam krantikariyon ko jinhonne hindustan ko aazad karwane ke liye apna sarvasv nyochhavar kar diya jis ki vajah se hum aazad hain? kya hum aazad hain kya ? aaz gaandhi khandaan ke janam avam marn divas per un ka parchar karne ke liye lakho karodon kharch kar diye jaate hain. krantikariyon shahido ke naam leva bhi kafi kum rah gaye hain. aage aage kya hoga yeh soch kar hi kaleja muhn ko aata hay kya.

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