मारवाड़ी संस्थाएं अपनी कला-संस्कृति का करे बंगाल में प्रदर्शन: केशव

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कोलकाता राजस्थान संस्कृति विकास परिषद के तत्वावधान में  राजस्थान सूचना केंद्र में “बंगाल के राजनीतिक-सांस्कृतिक जीवन में मध्यम वर्ग की भूमिका – विशेष सन्दर्भ: मारवाड़ी समाज” विषयक संगोष्ठी का आयोजन कथाकार-संपादक दुर्गा डागा की अध्यक्षता में किया गया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में दुर्गा डागा ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर विषय है। मारवाड़ी मध्यमवर्ग प्रतिभा और उर्जा से भरा हुआ है। उसके पास सपने हैं। राजनीतिक और सांस्कृतिक जागरूकता के लिए सामाजिक संस्थाएं पहल करे। कार्यक्रम के लिए समाज के लोगों को लेकर परामर्शमंडल बनाये और समाज में जागरूकता लाने का कार्य करे। बंगाल के संस्कृतिकर्मियों से मेलजोल और संवाद हो। सरकार के काम-काज पर सजगता से ध्यान रखें और संस्थाओं के माध्यम से अपनी आवाज़ उठायें। मध्यम वर्ग के लड़के-लड़कियां राजनीति में रुचि लेकर आगे आये। साहित्य पढ़ने से व्यक्तित्व का विकास होता है और जड़ों को समझने में आसानी। सामजिक कार्यक्रमों में धर्म का विकल्प देने का प्रयास होना चाहिए।

मुख्य वक्ता पत्रकार विशम्भर नेवर ने कहा कि सारा मारवाड़ी समाज धार्मिक कार्यक्रमों में लगा है-राजनीति कौन करे? राजनीति में गठबंधन बंगाल से शुरू हुआ। समाज में जो सांस्कृतिक रिसाव हो रहा है उसे रोकना जरुरी है। वाम-सरकार का फायदा मारवाड़ियों ने उठाया। अमुक राजनीतिक पार्टी अमुक को टिकट दे या तमुक को , इसका निर्णय वो राजनीतिक पार्टी ही करेगी। मारवाड़ियों में सांगठनिक शक्ति होगी, तो पार्टियां उनके पीछे आएँगी। पत्रकार राजीव हर्ष ने कहा कि मध्यमवर्ग समाज के आयाम निर्धारित करता है। वैल्यू की स्थापना मध्यम वर्ग करता है। महंगाई और अप-संस्कृति से यही वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। मध्यम वर्ग अपनी नैतिकता के दायरे में बंधा रहता है। मध्यम वर्ग की रोज़गार परिस्थितियां उसे अन्य गतिविधयों में शामिल होने की अनुमति नहीं देती। विज्ञान, कला संकाय आदि क्षेत्रों में हम कहाँ है? मारवाड़ी को डरपोक और पैसा कमाने वाले की संज्ञा दे दी गयी। जागरण, भगवत कथा, धार्मिकता पर जितना ध्यान देते है उसमे से समय निकालकर अन्य चीजों पर भी ध्यान दे- राजस्थानी साहित्य-संस्कृति-कला की प्रदर्शनिया हो।

कथाकार विजय शर्मा ने कहा कि विश्लेषण न कर कार्य योजना बनाये। बंगाली से बात करनी है तो उनके सिनेमा, साहित्य, संस्कृति में उसके समकक्ष खड़ा होना होगा। हमारे कार्यों में पारदर्शिता होनी चाहिए। मारवाड़ियों की तमाम खूबियां बयां करने वाली कहानियां खत्म हो रही है और हर्षद-हरिदास की कहानियां हावी हो रही है। पत्रकार सीताराम अग्रवाल ने कहा कि मध्यम वर्ग समाज के उच्च और निम्न वर्ग के बीच सेतु का कार्य करता है। मारवाड़ी मध्यम वर्ग अपनी ताक़त को पहचान ही नहीं पाया। संगठन का ककहरा यहाँ के लोगो को मारवाड़ियों ने सिखाया, वे प्रदर्शन और दिखावे से बचे रहे। सामाजिक संगठनो में कार्यकर्ताओं को सम्मान देना होगा, तभी एक शक्ति के रूप में यह वर्ग उभरेगा। क़ानूनी सलाहकार ध्रुवकुमार जालन ने कहा कि हमने अपनी ताक़त नहीं पहचानी। फिजूलखर्ची रोकनी होगी और उर्जा राजनीतिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में लगानी होगी। डॉ.कडेल ने कहा कि मारवाड़ी लेखक-पत्रकारों ने मारवाड़ी समाज की समस्याओं पर लिखा ही नहीं। नेतृत्व देने वाले खुद सामने आते है या समाज उन्हें ढूंढ निकलता है। मारवाड़ी समाज का मध्यम वर्ग आत्मसम्मान विस्मृत कर चूका है तो इसकी क्या भूमिका रह जाति है। सञ्चालन करते हुए केशव भट्टड़ ने कहा कि बंगाल में बंगाली मध्यमवर्ग जागरूक और संगठित है। उनका नेतृत्व मध्यमवर्ग से आता है। बुद्धदेव भट्टाचार्य हो, या ममता बनर्जी, ये सभी  निम्न-मध्यवित्त वर्ग से आतें है, लेकिन मारवाड़ियों में इसका अभाव है। पहले और वर्तमान में यह बड़ा अंतर आया है। कोलकाता-राजस्थान की पृष्ठभूमि पर सत्यजित राय की फिल्म ‘सोनार किल्ला’ को उदाहरण रूप में रखते हुए उन्होंने कहा कि फ़िल्म में राय बताते हैं कि बंगाल के बंगाली और मारवाड़ी मध्यमवर्ग के बीच संवाद नहीं है, जो होना चाहिए । कोलकाता में राजस्थान भवन की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मीरा को सामने रखकर मारवाड़ी मध्यमवर्ग बंगाली मध्यमवर्ग के साथ सांस्कृतिक संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करें। राजस्थानियों ने बंग प्रदेश में अपनी नागरिक पहचान नहीं बनायीं। वे राजनीति में सीधे हस्तक्षेप से बचते हैं। पर्यटकों के रूप में बंगाली समुदाय राजस्थान को प्राथमिकता देता है, लेकिन राजस्थानियों से उसका परिचय सांस्कृतिक रूप से नहीं हुआ। यह विडम्बना है। अतिथियों और श्रोताओं का पुष्पों से स्वागत संयुक्त संयोजक गोपाल दास भैया ने और आभार संयुक्त संयोजक बुलाकी दास पुरोहित ने किया।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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