सामाजिक विकलांगता का नाम है ‘वहशीपन’

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Shipra Pandey sharma, New Delhi.

रेप, बलात्कार, हवस एक ही नाम है हैवानियत से परिचय करने के लिए। परसों दिल्ली में घटी इस घटना से मन आहत है, उद्वेलित है और साथ ही कुछ करने में अक्षम भी है। भला हो उस पुरुष साथी का, जो उस लड़की के साथ था, नहीं तो अभी उसकी लाश ही मिलती या सडा-गला, क्षत-विक्षत शरीर कहीं चर्चा का विषय होता।
ये समझ में ही नहीं आता कि लोग कैसे इतना नीचे गिर सकते हैं।
शराब आदमी की मति भ्रमित करता है और ये ही हुआ उन निकृष्ट लोगों के साथ जिन्होंने ये कुकृत्य करने का दु:साहस किया। शराब से आपका अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता, फिर भी पीना जरूरी है, क्योंकि ऐसे लोगों की शान इसी में हैं। दिल्ली चूँकि हमारी राजधानी है, तो रहने के फायदे भी उतने ही हैं, बनिस्पत दूसरे शहरों के, पर नुकसान भी हमें ही झेलना पड़ता है। आये दिन बढ़ते क्राइम को देख कर सजग होने का समय आ चुका है। हम अपने घरों में लड़कियों को पुरुषों की बराबरी करने से रोकते हैं, चाहे हम प्रोफेशनली कितने ही सफल क्यो न हो जायें पर कोई एक चीज़ है जो हमें रोक देती है, उनके चेहरे में तमाचा मारने से। बात सिर्फ लड़कियों की ही नहीं है, लड़कों की बदतमीज़ी भी दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है। जितना गली-गलोच लड़के करते हैं, शायद ही किसी लड़की को गाली बकते किसी ने देखा होगा। हमारी भाषा ही हमारे स्तर का पैमाना है, जिस दिन भाषा बिगड़ी, समझो उसी दिन गए हाथ से। क्या अपने बच्चों की बोल-चाल पर हमारा नियंत्रण नहीं होना चाहिए ? जिंदगी में परिवर्तन एक नियम है और हम सब उसी नियम का हिस्सा है।
घर से शुरुआत क्यों न की जाये, एक उदाहरण देना हो सकता है पर्याप्त न हो पर इससे सबक जरूर लिया जा सकता है। बरसों से भारत में पोलियो, टी.बी., तपेदिक जैसी लाइलाज बीमारियाँ कई लोगों की जान ले लेती थी, पर आज सही दिशा-निर्देश में इन बीमारियों के उन्मूलन कार्यक्रम के तहत इनका देश से लगभग सफाया हो चुका है। कुत्सित मानसिकता भी एक बीमारी है, ये शारीरिक ही नहीं एक मानसिक व्यसन भी है और इसके लिए सिर्फ उत्तम विचारों का निवाला ही एक उपाय है। कड़े क़ानूनों को लागू करके इनका नित्य जीवन में प्रयोग करने से हो सकता है कुछ परिवर्तन जरूर आये। आये दिन लड़कियों में फब्ती कसना, उनका मजाक उड़ाना ये सब हम अपने आस-पास हर रोज देखतें हैं, पर सिर्फ ये सोच के चुप रह जातें हैं कि इनके मुंह कौन लगे। कहीं ये हमें परेशान न करने लगे, माँ-बाप का नाम ख़राब होगा इत्यादि पर अगर एक आवाज़ उठा के कोशिश की जाये तो बड़े कदम उठाने में आगे सहूलियत होगी।

बहुत सारे तत्व इससे जुड़े हुए हैं, जिसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे मनोरंजन के साधन टीवी का है। किसी भी फिल्म में देख लें, लड़कियों को कम कपड़े पहना के कैमरे के सामने खड़ा कर दिया जाता है, और हीरो अपने बदन को ढक कर यहाँ-वहां कर रहे होते हैं। क्या हीरो का बदन दिखाने के लिए नहीं है या बिचारा कुपोषित है।फिल्मी बाज़ार में चालू/ चलती फिल्में बिक जाती हैं, इस शरीर उघाड़ने के क्रम में। क्या आपका शरीर आपकी पर्सनल प्रॉपर्टी नहीं है, जिसकी इज्ज़त बचाना आपके अपने हाथ में हैं?
मनोजरंन का तात्पर्य/ शाब्दिक अर्थ है मन का रंजन, दिल-बहलाव, . कोई ऐसा कार्य या बात जिससे समय बहुत ही आनंदपूर्वक व्यतीत होता है। मन का रंजन हँसने से, खेलने-कूदने और ऐसे किसी सकारात्मक काम से हो सकता है, जो आपके जीवन के नियमित कार्यक्रम से आपको थोडा निजात दिलाये और आपका ध्यान बांटे।
हम अपने घर की लड़कियों को जब तक पूर्णरूपेण स्वतंत्र नहीं करेंगे तब तक यह समस्या आती रहेगी। आख़िरकार लड़कियों को पराये घर जाना ही होता है, तो आने वाले समय के लिए जब हम उन्हें तैयार करके भेजते हैं तो इन बिन बुलायी घटनाओं के लिए अलर्ट करना भी हमारी ही जिम्मेदारी होनी चाहिए। जब तक एक निडर जीवन जीना हमें घर से नहीं सिखाया जायेगा, तब तक कैसे हम इन समस्याओं से लड़ना सीखेंगे।
अंत में इतना कहना जरूर चाहूंगी कि ,

अहल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा,
पंचकन्या स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम।।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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