काशी का निरालापन (बनारस – काशी)

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-सुनील दत्ता//

यदि आप आज भी बनारस की खूबियों से अपरचित हैं तो आइये आज आपका परिचय उससे करा दूँ। मुमकिन है आपने इन दृश्यों को देखा हो पर इस गरज से न देखा हो कि यह सब भी बनारस की खूबियों में है।  सुबहे- बनारस की काफी दाद दी जाती है, इसलिए जब कभी आप बनारस तशरीफ ले आवे  तो इसका ध्यान रहे कि सुबह हो, शाम या रात नहीं।
स्टेशन से बाहर आते ही आपको दर्जनों जलपान -गृह दिखाई देंगे।  इन दुकानों में बनी सामग्री की सोंधी
महक से आपका दिल – दिमाग तर हो जाएगा। यहां से आप शहर की ओर ठीक नाक की सीध में चलें।  दाहिने -बाएं देखने की जरूरत नहीं है।
स्टेशन से एक फर्लांग आगे काशी विद्यापीठ है। यह वह संस्था है जहां के छात्र या  तो नेता बनते हैं अथवा शासक। काशी विद्यापीठ अथवा नेता जन्मदाता पीठ। इसी के पीछे काशी का प्रसिद्ध कब्रगाह फातमान है जहां इतिहास के प्रसिद्ध और  अप्रसिद्ध व्यक्ति चिर -निद्रा में सोये हुए हैं। पास ही भारत में अपने ढंग का अकेला मंदिर ‘भारतमाता का मन्दिर ‘है। इसके निर्माता है स्व. दानवीर बाबू शिवप्रसाद गुप्त। मंदिर के बगल में भगवानदास स्वाध्यायपीठ है। पुस्कालय के ठीक सामने च्न्दुवा की प्रसिद्ध सट्टी है।  कुछ दूर आगे  शरणार्थी बस्ती, बर्मियों का एक बौद्ध मंदिर तथा बनारस में खेल -कूद के लिए बनाया गया स्टेडियम है।
कुछ दूर आगे ईसाइयों का गिरजाघर है। प्राचीन काल में यहां डाकू रहते थे, जो राह चलते व्यक्तियों को कत्ल करके कुए में छोड़ देते थे।  काशी का प्रसिद्ध ‘मौत का कुआ’ यहीं था।  यहीं से दो रास्ते पूर्व और पश्चिम दिशा की ओर गये हैं।  पश्चिम वाला रास्ता वार -बनिता की नगरी की ओर तथा पूर्व वाला शहर की ओर गया है। पूर्व वाले रास्ते में बनारस का  प्रसिद्ध ‘आशिक -माशूक की कब्रगाह ‘ है।  बनारसी प्रेमियों को यही से प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त होती है। यह वह ऐतिहासिक स्थान है, जिसके दर्शन के बिना परें ‘अनकनफर्म्ड ‘रहता है। इस स्थान पर कैथ के अनेक वृक्ष है। किवदन्ती है, प्रत्येक वृक्ष से दो कैथ प्रतिपदा के दिन नियमित नीचे  गिरते हैं।
थोड़ी दूर पर औरंगजेब के शासन काल में निर्मित सराय, पान दरीबा है। औरंगाबाद दर्शनीय मुहल्ला है।  कहा जाता है -‘काशी बसकर क्या किया. जब घर औरंगाबाद।’
मुहल्ला सिगरा के आगे भारत -विख्यात महाप्योध्याय पंडित गोपी नाथ कविराज का मकान है। ठीक इसके पीछे का स्थान ‘छोटी गैबी ‘ कहलाता है, जहां गुरुलोग रात बारह बजे तक नहाते -निपटते हैं।  पास ही रथयात्रा की प्रसिद्ध चौमुहानी है। यहां वर्ष में तीन दिन जन –  समारोह होता है।  काशी की लोक कला के दर्शन सोरहिया तथा रथयात्रा के मेले में ही होते है।  लक्सा की अधिकाश रामलीला यहीं होती है।
पास ही विश्व विख्यात थिसोसोफिकल सोसायटी है। यहां बनारस के बालक और बालिकाएं शिक्षा प्राप्त करते हैं।  सोसायटी के दक्षिण भाग में वैधनाथ और बटुकभैरव का मंदिर है। इसी मंदिर के समीप सेन्ट्रल हिन्दू-कालेज, बड़ी गैवि आदि प्रसिद्ध स्थान है।
कालेज से कुछ दूर आगे खोजवा बाज़ार है, जो नबाबों के खोजाओं के रहने के कारण मुहल्ला बन गया। आजकल अनाज की मंडी है।  पास ही शहर को आलोकित तथा जलदान करने वाला ‘बिजली घर’ और पानीकल’ है।  थोड़ा ही आगे बढने  पर अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अथितिशाला दिखाई देगी।  यहां संसार के ख्यातिप्राप्त राजनीतिज्ञ लोग आकर मेहमान नवाजी करते हैं। बनारस वालों को अपनी इस कोठी पर नाज़ है जो संसार के महान पुरुषों को अपने यहां ठहराकर भारतीय संस्कृति का परिचय देती है। यह भवन है – महाराजकुमार विजयानगरंम यानी ‘ईजा— नगर ‘की कोठी।
यहां से कुछ दूर पर दुर्गाकुण्ड है, जहां राम की सेनायें ही नहीं बल्कि पास ही सेनापति महोदय का भी भवन है। दुर्गाकुण्ड का  मंदिर रानी भवानी और वानर – सेनापति संकटमोचन का मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित हुए हैं। संकटमोचन के मंदिर में नित्य सुन्दरकाण्ड और हनुमानचालीसा के पाठ करने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है। खासकर इम्तहान के समय छात्रों की भीड़ बढ़ जाती है। यूनिवर्सिटी के छात्रों का विश्वास है ‘संकटमोचन बाबा’ बिना पढ़े -लिखे ही परीक्षा की वैतरणी पार करा जाते हैं। छात्र -छात्राएं परस्पर प्रेम के स्थायित्व की शपथ भी यहीं लेते हैं। यहां दलवेसन बहुत गुणकारी, प्रभावशाली होता है।
यह है लंका; रावण वाली नहीं- —- काशी की अपनी निजी।  आगे भारत प्रसिद्ध शिक्षा – संस्था विश्वविद्यालय है। पास ही नगवा घाट है – – जहा बाबू शिवप्रसाद गुप्त की कोठी है। यहीं एक बार स्वामी करपात्री जी ने यज्ञ करवाया था।
यह है ,पुष्कर तीर्थ।  इसके आगे अस्सी और कुरुक्षेत्र तालाब है। सूर्य ग्रहण के दिन तालाब में धर्मपरायण व्यक्ति स्नान के नाम पर कीच स्नान करते हैं।  आगे भदैनी है और बगल में तुलसी घाट, जहां तुलसीदास की खडाऊ और उनके द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर दर्शनीय है। बनारस का यह मुहल्ला साहित्यकारों का भी एक गढ़ है। सोलहवी शताब्दी में यह स्थान काशी का बाहरी अंचल माना जाता था।
यह है हरिश्चन्द्र घाट।  कुछ लोग इसे काशी का प्राचीन श्मशान मानते हैं, पर यह बात गलत है। पहले यहा डोमों की बस्ती थी। डोम लोग महाश्मशान में अपने परिवार की लाश नहीं जला पाते थे। यह लोग अपने को राजा हरिश्चन्द्र के वंशज मानते थे इसीलिए यह प्रचारित होता रहा कि यहीं काशी का  प्राचीन श्मशान है, जहां राजा हरिश्चन्द्र श्मशान के रक्षक बने रहे।
हरिश्चन्द्र घाट के आगे काशी की सबसे खड़ी सीढ़ी वाला घाट केदारघाट है। यहां का घंटा  सभी मंदिर के घंटो से तेज आवाज में गूंजता है।  यहां से कुछ दूर पर तिलभांडेश्वर महादेव का मंदिर है।  कहा जाता है कि ये महादेव जी साल में  तिल बराबर वजन में बढ़ते है। पता नहीं, इसके पूर्व इन्हें कभी तौला गया था  या नहीं, वरना ये कितने प्राचीन है, इसका पता पुरातत्व वाले बता देते।
यह है मदनपुरा। संभवत: प्राचीनकाल में यहीं मदन का दहन हुआ था। बनारसी साडियों के विश्वविख्यात कलाकार इसी मुहल्ले में रहते हैं।
अब  हम गोदौलिया आ गये।  प्राचीन काल में यहां गोदावरी नदी बहती थी। गोदावरी तीर्थ स्थान के ऊपर आजकल मारवाड़ी अस्पताल स्थापित है। यहीं से एक रास्ता  दशाश्वमेध घाट की ओर गया है। आगे बड़ा बाज़ार है, बड़े -बड़े होटल और शर्बत की दुकाने हैं। यहां काशी की ठढई सादी और विजया सहित मिलती है।  शाम के समय अधिकाश बुद्धिजीवी का अड्डा यहां जमता है, जहां साहित्य -चर्चा से लेकर परचर्चा तक होती है। यहीं से उपन्यास लिखने के फार्मूले, कहानी लिखने के प्लाट, कविता लिखने की प्रेरणा और आलोचना लिखने का मसाला मिलता है। न जाने कितने लोगों का यहां मूड बनता और बिगड़ता है। साहित्य में इन होटलों की देन महत्त्वपूर्ण है।
यह रहा गिरजाघर, जहां ईसाई धर्म का प्रचार खुलेआम होता है। सुनने वालों से अधिक भाषण देने वाले दिखाई देते हैं।  पास ही बनारस की सबसे बड़ी ‘सोमरस की मंडी ‘ यानी ताड़ीखाना है। कुछ दूर आगे ‘नयी सडक ‘ मुहल्ला है | बनारस में अब तक जितने दंगे हुए है सभी का सूत्रपात इसी  मुहल्ले से हुआ है। बगल में शेख सलीम का फाटक है जिसके बारे में इतिहासकार  और पुरातत्वविदों में मतभेद है। एक का कहना है कि अकबर — पुत्र सलीम जब काशी आया था तब उसने इसे बनवाया था।  दूसरे का कहना है कि शेख सलीम चिश्ती के नाम पर अकबर ने यहां फाटक बनवाया था। बात चाहे जो हो यह स्थान है  ऐतिहासिक,  इसे सभी मानते है। यहां भामाशाह का सूरमा मिलता है। पांच पैसे  में सारे जीवन का रहस्य बताया जाता है।
यहां अधिकतर काबुल के सेठ रहते  है जो बिना जमानत लिए रहन रखे, सिर्फ शक्ल देखकर एक आने सूद पर मुक्त हस्त कर्ज़ देकर जनता जनार्दन की सेवा करते हैं।  पास ही एक बड़ा मैदान है जिसे ‘विक्टोरिया पार्क’ अथवा ‘बेनिया बाग़’  कह्ते हैं। नाम तो इसका बाग़ है पर इसके एक भाग में अस्पताल, दूसरे में चेतसिंह की मूर्ति और बचा -खुचा भाग नेताओं के प्रवचन तथा नुमाइश के लिए रिजर्व रखा गया है। बेनिया बाग़ के  आगे चेतगंज है। कहा जाता है कि यह मुहल्ला राजा चेतसिंह के नाम पर बसाया  गया है। वारेन हेस्टिंग तथा चेत सिंह के सैनिको में यहीं युद्ध हुआ था। इस मुहल्ले की नक्कटैया की ख्याति सम्पूर्ण भारत में है। कुछ दूर आगे लालकोठी में नगरपालिका और हथुआ कोठी में भूतपूर्व अन्नदाता वर्तमान सीमेंट -लोहादाता रहते है।  यह है लहुरावीर की चौमुआनी।  किसी जमाने में यहा भूत रहते थे, अब आदम की औलाद रहने लगी है। इन स्थानों का काशी में अपना निजी  महत्व है।  काशी में प्रत्येक वीर के नाम पर एक -एक मुहल्ला बस गया है। जैसे डयोढ़ीयावीर, भोजुवीर, और लहुरावीर आदि।
इस चौमुआनी के उत्तर वाली  सड़क कचहरी, पश्चिम वाली स्टेशन, दक्षिण वाली गिरजाघर और पूरब वाली राजघाट की ओर गया है।  राजघाट की ओर जाने वाली सड़क की ओर आगे बढने पर घोड़ा अस्पताल (पशु अस्पताल) कबीर मठ और शिवप्रसाद गुप्त औषधालय भी दिखाई देंगे। अस्पताल के सामने बनारस का सबसे बड़ा किराना बाज़ार है | जहां जाते ही छींक की बीमारी शुरू हो जाती है। अस्पताल के बगल में राधा स्वामी का मंदिर है  जहां वारेन हेस्टिंग आकर टिका था। पास ही ‘आज’ अखबार का दफ्तर, लोहे -लकड़ी की मंडी लोहटिया और नखास है। नखास के पास बड़े गणेश जी का मंदिर है। यहां गणेश चौथ के दिन मेला लगता है। इस मुहल्ले के पास ही हरिश्चन्द्र कालेज और दाराशुकोह के नाम पर बसा हुआ मुहल्ला दारानगर है।
यह है, मैदागिन।  काशी के प्रमुख चौमुहानी में अन्यतम।  प्राचीन काल में इस स्थान को मन्दाकिनी तीर्थ कहा जाता था।  अब उसकी जगह कम्पनी बाग़ और टाउनहाल बन गया है। इस टाउनहाल में पहले अँधेरी कचहरी थी। अब यहां कचहरी है, पर वह  अपना प्रभाव छोड़ गयी है। फलस्वरूप टाउनहाल बक्चो का मुरब्बा बन गया है।  जिस प्रकार आजतक लंगड़ी भिन्न का रहस्य (छोटे, मंझले और बड़े कोष्ठ का रहस्य) नहीं समझ सका, ठीक उसी प्रकार टाउनहाल क्या है समझ नहीं सका।  मुमकिन  है आप भी न समझ सके।  इस स्थान से कुछ आगे भारत प्रसिद्ध संस्था ‘काशी नागरी प्रचारणी सभा’ है।  बाबा विश्वनाथ के कोतवाल का भवन और कोतवाली थाना का घनिष्ठ सम्बन्ध यही है। बनारस की सबसे बड़ी अनाज की मंडी विश्वेश्वरगंज  भी यही है।
इस मुहल्ले के बारे में कुछ लोगों का मत है कि प्राचीन काल में काशी का प्रमुख बाज़ार था।  यही पर विश्वनाथ जी का मंदिर था जिसे मुसलमानों ने तोड़ दिया | सम्भवत: इसीलिए इस मुहल्ले का नाम विश्वेश्वरगंज है। प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से मालूम होता है कि तुगलक काल के पूर्व शिवलिंग का नाम देवदेव स्वामी और अविमुक्तेश्वर था। विश्वनाथ नाम बारहवी शताब्दी के बाद प्रचलित हुआ है। पास ही भीतरी महाल में गोपाल जी का मंदिर और बिंदुमाधव का धरोहरा है। यहीं एक मकान में छिपकर गोस्वामी तुलसीदास वाल्मीकि रामायण को मौलिक रूप दे रहे थे।  विश्वेश्वरगंज से एक सड़क अलईपुर मुहल्ले की ओर गयी है। यहां एक मुहल्ला आदमपुरा है, पता नहीं बाबा आदम से  इसका कोई सम्बन्ध है या नहीं। कुछ दूर आगे मछोदरी पार्क है जहां राजा  बलदेवदास द्वारा निर्मित अस्पताल और घंटाघर है।  राजा साहब दान देने में जितना सक्रिय रहे, उतना ही सक्रिय घंटा टगवाने में रहे। बनारस में उन्होंने कई जगह घंटा टगवाया है। घंटा टगवाने का क्या महत्व है, इसका कोई  उल्लेख्य काशी खंड में नहीं है पर सुना गया है कि आपने लन्दन में भी घंटाघर बनवाया है। ज्ञातव्य रहे कि बनारस में घड़ीघर को जहां घंटे की आवाज़ से समय की सूचना मिलती है, घंटाघर कहते है। मछोदरी बाग़ प्राचीन में मत्स्योदरी तीर्थ कहलाता था।  आगे राजघाट है।  यह स्थान शहर का अंतिम भाग है।  इस भू-भाग का बनारस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
प्राचीनकाल में यह अनेक राजाओं की आवास भूमि रही।  वे सब गंगा की गोद में चले गये।  अब यहां  केवल खंडहर रह गये हैं जिसे सरकार खुदवाकर कुछ पुरातत्वविदों की कचूमर निकालना चाहती है।  इससे कुछ लोगों का चंडूखाने की दून हाकने का मौक़ा मिलेगा। अब हमें पुन:शहर की ओर मुड़ना है और शहर का प्रमुख भाग देखना है।  इसीलिए अब पुन: हम मैदागिन के पास आते और यहीं से दक्षिण की ओर बढ़ते है।  मैदागिन से कुछ दूर आगे बढने पर कर्णघंटा नामक स्थान है। कहा जाता है, यहां  का मंदिर गांगेय के पुत्र यशकर्ण ने बनवाया था।  इतिहासकारों की बहुत- सी अटकले पच्चुवाली बाते इसलिए स्वीकार करनी पड़ती है कि यह सब घटनाए जब हुई तब हम बनारस में नहीं थे। यहां से कुछ दूर आगे बाबा विश्वनाथ के थर्ड डिप्टी  सुपरिटेंड आफ पुलिस आसभैरव रहते है। काशी के प्रमुख उद्योग धंधों की सामग्री  इस इलाके में मिलती है।  मसलन लकड़ी के विभिन्न सामान, पीतल के बर्तन, जरी और सोने -चाँदी के जेवरात इत्यादि। इसी क्षेत्र में एक जगह कन्नौज ,जौनपुर — गाजीपुर का इलाका बस गया है। दूसरी ओर बनारस का प्रमुख -व्यवसाय बनारसी सादियों का रोजगार होता है।  पुस्तक व्यवसायी, समाचार-पत्र विक्रेता मंग्लामुखियों का हाट और फलवालों की दुकानें इसी क्षेत्र में है।
कविराज कालिपद दे का आश्चर्य मलहम जो 101 बीमारियों में फायदा पहुचाता है — आवाज लगाते हुए बगल में टीन का डब्बा लिए बंगाली बाबू टहलते हैं।  आँखों में चश्मा पहने और हाथ में सिर्फ एक चश्मा लिए — ” एक चश्मा ” की आवाज देते हुए बड़े मियां कुछ लोगों की आँखे पढ़ते नजर आते हैं।
जल — जीरे का पानी,  आम का पन्ना बेचने वालो की गाडी,  गडेरी मेरी अव्वल पैसा लेना डब्बल,  दिया सलइया पैसे में, सुइया चार मुनाफे में आदि सामान बिकता है।
कुछ  दुकानदार यहाँ पर हर माल 5 रूपये में बेचते हैं क्योंकि कम्पनी का माल वे लुटा रहे हैं। अब आपको गरज हो तो खरीदिये। गंजी भी पांच रूपये में पेन भी  पांच रूपये में मिलती है।
एक ओर से एक बंद कनस्तर लोए ” गरेम’ है जी ” की आवाज आती है जब तक आप उनसे सामान न खरीदें तब तक आप यह नहीं समझ पाइयेगा की क्या गरम है — वातावरण,  मौसम,  वे स्वयं या बंद कनस्तर का सामान। आज से तीन वर्ष पूर्व सड़क पर ” केसरिया तर हव राजा ” की आवाज लगाता हुआ एक आदमी झूमता हुआ नजर आत़ा था।  उसकी गैरमौजूदगी आज के बच्चों को  खलती है।  नरम–गरम,  नरम- गरम की आवाज लगाता हुआ एक आदमी बड़ी तेजी से लाल साइनबोर्ड पहने आपकी बगल से गुजर जाएगा।
यह है परमानेंट हरे — राम हरे — राम की फैक्ट्री जहां लाउडिसपीकर से शाम के समय भक्ति प्रदर्शन होता है।  सामने बीवी का रोजा की मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि पहले यहाँ  विश्वनाथ मन्दिर था जिसे कुतुबद्दीन ऐबक ने तोड़ा था।  नीचे ज्ञानवापी की प्रसिद्ध मस्जिद है जिसका औरंगजेब ने निर्माण कराया था।
यह है  सत्यनारायण मन्दिर जहां श्रावण में भगवान झूला झूलते है।  उनका श्रृंगार देखने के काबिल होता है। आगे बॉसफाटक है।  बनारस के मुहल्लों का नाम देखकर अनुमान किया जाता है कि प्राचीन काल में यह नगर अरब देशों की भांति बंद  नगरी थी जिसके चारों तरफ फाटक थे।  मसलन हाथी फाटक,  बॉस फाटक,  शेख सलीमका फाटक, रंगिलादास का फाटक और सुखलाल साहू आदि का फाटक अब हम गोदौलिया पर आ गये।  इस प्रकार सारा शहर घर बैठे देख लिया।  क्या जरूरत कि आप बनारस आये  और दो नए प्रवेश कर दें। हां यदि गंगा – स्नान,  विश्वनाथ — दर्शन अथवा  शहर देखने के काफी शौक है तो हमे एतराज नहीं। अगर और निरालापन देखना हो तो  यहाँ के धनुषाकार घाट,  धरोहर का एक खम्भा,  यहाँ की गलियां और यहाँ के मेले देखे।  बस, सारा बनारस आपकी नजरों से गुजर जाएगा।
(आभार विश्वनाथ मुखर्जी की पुस्तक ” बना रहे बनारस से ”)

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