पटना के फिल्म प्रेमियों की सिनेमा घरों से बढ़ती दूरी
पटना में फिल्म प्रेमियों की कमी नहीं है। भले ही यहां टिकटों के दाम आसमान छू रहें हों, लेकिन फिल्मों के दीवाने आज भी अपनी पसंद की फिल्में देखने के लिए सिनेमा घरों की ओर ही रुख करते हैं. चमकते हुये पर्दे पर फिल्म देखने का मजा ही कुछ और है। और जब बात पसंदीदा हीरो की हो तो समझौता करने के लिए कतई तैयार नहीं होते। यहां का युवा वर्ग तो फिल्मों को लेकर न सिर्फ क्रेजी है, बल्कि सहूलियत के लिहाज से मुंबई और दिल्ली के तर्ज पर पीवीआर की मांग भी करने लगा है। और करे भी क्यों न बेहतर इफेक्ट्स के साथ मल्टीप्लेक्स थियेटर में फिल्म देखना किसे अच्छा नहीं लगता। टिकट की कीमत चाहे कुछ भी हो अपने स्टाईल में फिल्म देखने के लिए वे हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं। इनका मानना है कि पटना के लोग भी अब किसी से कम नहीं है, उन्हें बेहतर तरीके से फिल्म देखने की सारी सहूलियत मिलनी ही चाहिये।
अजय देवगन और आमीर खान का पटना के युवाओं के बीच अच्छा खासा क्रेज है। इनकी फिल्मों को सिनेमाघरों में जाकर देखने के लिए ये उतावले रहते हैं। इसके अलावा ज्ञानवर्धक फिल्मों को भी ये काफी तरजीह दे रहे हैं। इस तरह की फिल्मों के भी ये काफी शौकीन हैं।
पिछले कुछ समय से पटना के माहौल में भी तब्दीली हुई है। शांतिपूर्ण वातावरण के चलते परिवार के साथ फिल्म देखने सिनेमा घरों की ओर सहजता से निकल पड़ते हैं। जादुई फिल्में भी पटना के दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। जब बात हैरी पोर्टर की हो तो क्या कहने। बच्चों के साथ-साथ माता-पिता भी हैरी पोर्टर की जादुई दुनिया में सैर करने के लिए सिनेमाघरों की ओर खिंचे चले आते हैं। बड़े तो बड़े बच्चे भी अपनी पसंद की फिल्मों को देखने के लिए सिनेमा घरों को ही ज्यादा पसंद करते हैं। बड़े भी बच्चों की पसंद का पूरा ख्याल करते हैं, तभी तो जब हैरी पोर्टर जैसी फिल्में यहां के सिनेमा घरों में आती हैं तो बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता भी निकल पड़ते हैं सिनेमा घर की ओर। थ्री डी इफेक्टस का भरपूर मजा लेने के लिए सिनेमा घर से ज्यादा मुफीद कोई और जगह हो ही नहीं सकता। हैरी पोर्टर के जादुई तिलस्म को देखने का मजा बड़े पर्दे पर ही है और बच्चे भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। हैरी पोर्टर को लेकर पटना के किशोरों में भी दीवानगी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। पटना में हैरी पोर्टर की फिल्म रिलीज होने के साथ ही इनका हुजूम सिनेमा घरों पर टूट पड़ता है। जादू की दुनिया में रुपहले पर्दे के माध्यम से उतरना इन्हें बेहद भाता है।
अन्य महानगरों की तुलना में पटना में आज भी ब्लैकियरों का बोलबाला है। किसी सिनेमा घर में अच्छी फिल्म लगते ही सारे टिकट ब्लैकियर उड़ा ले जाते हैं, ऐसे में यहां के फिल्म प्रेमियों को बहुत परेशानी होती है। तथा दर्शकों का गुस्सा होना स्वाभाविक है।
मल्टीप्लेक्स के आने की वजह से दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ब्लैक में टिकटें बेचे जाने का चलन लगभग समाप्त हो गया है। महानगरों में लोग घर बैठे ही नेट के माध्यम से टिकट पहले से ही बुक कर लेते हैं, लेकिन पटना में आज भी अच्छी फिल्मों के टिकटों की कालाबाजारी खूब होती है। जब आप अपनी पसंद की कोई फिल्म देखने घर से निकले और सिनेमाघर जाकर आपको पता चला कि टिकट काउंटर बंद हो चुका है तो मायूसी तो होगी ही। लेकिन जब ब्लैकियर आपके सामने टिकटों की गड्डी लहराते हुये आपके सामने ब्लैक करे तो आपको गुस्सा आने लगेगा। पटना में ब्लैकियर आज भी चांदी काट रहे हैं।
सिनेमा घरों के स्टाफ भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं रहते हैं। ब्लैकियरों के साथ इनकी मिली भगत जग जाहिर है। 90 रुपये के टिकट तीन तीन सौ रुपये में बेची जाती है। काउंटर बंद करके हाउसफुल का बोर्ड तो लगा दिया जाता है लेकिन सिनेमाघर के ठीक सामने ही ब्लैकियर धड़ल्ले से अपना धंधा जारी रखते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब टिकट नहीं है तो सिनेमाघर के बाहर बिक क्यों रहे है।
युवाओं की फितरत होती है कि वे जल्द ही संयम खो देते हैं, लेकिन बुजुर्गों का धैर्य अंत तक बना रहता है। सिनेमाघरों के सामने टिकटों की कालाबाजारी को देखकर वे अपना रुख सीधे दूसरी ओर कर देते हैं। ब्लैक में टिकट खरीदना उन्हें किसी भी किमत पर गंवारा नहीं होता है।
पिछले कुछ अरसे से जिस तरह की फिल्में बन रही हैं उसे लेकर पटना के फिल्म प्रेमी संतुष्ट नहीं हैं। फिल्मों की बेहतर समझ रखने वाले पटना के दर्शकों को आज की फिल्मों का पैटर्न पसंद नहीं है। हाल के दिनों में बेहतर फिल्म की चाह वाले दर्शकों के साथ-साथ आम दर्शक भी सिनेमा घरों से दूर हुये हैं। पटना के फिल्म प्रेमी भी फिल्मों की गुणवत्ता में आ रही गिरवाट को महसूस कर रहे हैं। बेहतर फिल्मों की कमी इन्हें खल रही है। यही वजह है सामन्य तौर पर सिनेमाघरों में जाने वाले लोगों की संख्या में दिनों दिन कमी आती जा रही है।
पारिवारिक फिल्मों का दौर भी कुछ थम सा गया है। एक समय था जब पटना के लोग अपने पूरे परिवार के साथ बेहतर फिल्में देखने के लिए सिनेमा घरों की ओर रुख करते थे। अब फिल्मों में स्वस्थ्य मनोरंजन का अभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। फिल्मों के बदलते पैटर्न ने पटनावासियों को सिनेमाघरों से दूर किया है।
टिकटों की किमतों में लगातार हो रही बेतहाशा वृद्धि से भी आम आदमी सिनेमाघरों से कुछ कट सा गया है। पटना में फिल्म प्रेमियों के एक वर्ग की आमदनी बढ़ी है तो दूसरी ओर महंगाई की मार से त्रस्त फिल्मों का शौकीन आम आदमी मजबूरी वश फिल्मों से दरकिनार करने लगा है। ऐसे में अपनी जेबें ढीली करके इनके लिए फिल्मों का मजा उठाना थोड़ा मुश्किल हो गया है।
पटना में मल्टीप्लेक्स का कल्चर जिस तेजी से डेवलप हो रहा है, उसी तेजी से दर्शकों की संख्या में गिरावट आ रही है। इसका सीधा सा कारण है मल्टीप्लेक्स की टिकटों का दर अधिक होना। सामान्य सिनेमा प्रेमियों की पहुंच से मल्टीप्लेक्स दूर है, शायद यही वजह है कि एक खास वर्ग विशेष का होकर रह गया है।
टेलीविजन और अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों ने सिनेमाघरों के दर्शकों को प्रभावित किया है। पटनावासी अब टेलीविजन पर अपने परिवार के साथ फिल्में देखना ज्यादा पसंद करते हैं। टीवी सिनेमाघरों के दर्शकों के बीच अपनी मजबूत पैठ बनाने में विगत दो दशकों में सफल हुआ है।
आज टेलीविजन पर विभिन्न चैलन तमाम तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं। अलग-अलग जानकारी की फिल्में भी टीवी पर खूब दिखाई जा रही है। यहां तक कि विदेशी फिल्मों को भी हिंदी में डब करके दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है, जिसकी वजह से भी लोग सिनेमाघरों में जाने के बजाय घर में बैठकर टीवी पर फिल्में देखना ज्याद पसंद करते हैं। पटना में फिल्म प्रेमियों के इस मनोवृति में इजाफा हुआ है। सिनेमाघरों को छिनने में टीवी यहां भी अहम भूमिका निभा रहा है।
पिछले एक दशक में पटना में अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों ने अपनी गहरी पैठ बनाई है। यहां के लोग डीवीडी, वीसीआर, और लैप टाप का इस्तेमाल अपनी पसंद की फिल्मों का आनंद घर बैठे लेने के लिए कर रहे हैं।
पटना के ज्यादातर सिनेमाघरों में भोजपूरी का बढ़चढ़ कर प्रदर्शन दर्शकों को रास नहीं आ रहा है। यहां के फिल्म प्रेमी भोजपूरी फिल्मों से बिदकने लगे हैं। सिनेमाघरों में जाकर भोजपूरी फिल्में देखने के बजाय बेहतर फिल्म के प्रति आशक्ति रखने वाले सिनेमा प्रेमी घर पर बैठना ज्यादा पसंद करते हैं।
पटना में सिंगल थियेटर में दिन प्रति दिन कमी आती जा रही है। कई सिनेमा घर बंद हो चुके हैं, और कई बंद होने के कगार पर हैं। बंद होने वाले सिंगल थियेटरों में अप्सरा, रूपक, वैशाली, पर्ल आदि शामिल हैं। पटना के सिनेमा प्रेमी बंद हो रहे सिंगल थियेटरों को लेकर खासे चिंतित दिख रहे हैं। अप्सरा सिनेमा हाल की गिनती पटना के चुनिंदा सिनेमाघरों में होती थी, लेकिन आज इस हाल के मुख्य दरवाजे पर ताले लगे हुये हैं। पहले यहां हमेशा चहल पहल रहती थी, लेकिन आज पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ है। इस सिनेमाघर में काम करने वाले लोग भी बेरोजगार हो गये हैं। इस सिनेमाघर के सहारे कभी अपनी दुकान चलाने वाले लोगों की दुकानदारी भी ठप्प होती जा रही है।
कभी रुपक सिनेमाघर के भी जलवे थे, लेकिन अब इसे भी पूरी तरह से ध्वस्त करके यहां पर एक व्यवसायिक इमारत खड़ी की जा रही है। साथ ही इस इमारत में नये चलन के मुताबिक एक मल्टीप्लेक्स का भी निर्माण किया जा रहा है। रुपक सिनेमाघर के सामने अपनी फल दुकान लगाने वाला सुरेश, दुकान तो आज भी लगा रहा है लेकिन ग्राहकों की कमी उसे खल रही है। कभी यह इलाका रुपक सिनेमाघर की वजह से गुलजार रहा करता था, लेकिन अब यहां पूरी तरह से सन्नाटा पसरा है। फिल्मों का शौकीन सुरेश भी इस सिनेमाघर में लगने वाली फिल्में खूब देखता था। आज भी उसके जेहन में उन फिल्मों की याद ताजा है। इसी तरह पटना के अशोक, पर्ल, वैशाली और चाणक्य सिनेमाघर भी फिलहाल या तो बंद पड़े हैं या फिर इन्हें तोड़ कर यहां पर व्यवसायिक इमारत खड़ी की जा रही है। धड़ाधड़ बंद हो रहे सिनेमाघरों पर पटना के जिलाधिकारी का कहना है कि सिनेमाघर पूरी तरह से निजी क्षेत्र का व्यवसाय है।
सिनेमा को मनोरंजन का सस्ता साधन मानने वालों का भ्रम अब टूटने लगा है। मल्टीप्लेक्स के आने के बाद टिकट के दरों में तेजी से वृद्धि होते जा रही है। ऐसे में आम सिनेमा प्रेमी सिनेमा से दूर होते जा रहे हैं।
राजधानी का गौरव कहा जाने वाला सिनेमाघर अशोक, का बंद होना सिनेमाप्रेमियों को सर्वाधिक खलता है।
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