बिहार बिजली विभाग के मोटिवेशनल प्रोग्राम में कार्ल मार्क्स पर रवीश कुमार की टट्टी

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आलोक नंदन

कार्ल मार्क्स को सामने रख कर पूछे गये सवाल को महज 90 सेकेंड में ट्रेन की टट्टी में डाल कर रवीश कुमार मार्क्स का क्लासिक इंटेलेक्चुल नजर आते हैं। मार्क्स को रैपिड वाख्या में महज कुछ पल में टट्टी में डाल देना सीधा-सीधी नेचर और इसके उपभोग से संबंधित मौलिक सवालों भागना है, जैसे आपको जोर की टट्टी लगी हो। और फिर बौखलाहट में आप कहीं भी पैंट खोलने के लिए तैयार हो जाये।

पटना में बिजली विभाग के इंजीनियरों के साथ एक मोटिवेशन सत्र  के दौरान रवीश कुमार से एक अधिकारी द्वारा कार्ल मार्क्स का हवाला देते हुये बिजली के निर्माण की खतरनाक पद्धित और उसकी उपयोगिता पर उठाये गये  सवाल को तो रवीश कुमार ट्रेन की लैट्रिन पर लोगों की मानसिकता के बारे में बताने लगे और कहने लगे कि ब्रिटेन के लोग मार्क्स की पुस्तकों को ट्यालट शीट के तौर पर इस्तेमाल करते थे।

बिहार इंजीनियर फ्रेटेनिटी की ओर से मार्क्स पर पूछे गये सवाल का इतना हल्का उत्तर सिर्फ एक बुर-जुआ इंटेलेक्चुअल ही दे सकता है, जिसे टीवी में काम करते हुये (सनद रहे टीवी इलेक्ट्रोनिक माध्यम है और बिजली से ही दौड़ धूप रहा है। ) पत्रकारिता को काटने पिटने की लत गई हो।….दो मिनट में साठ खबरें टाइप हेडेड मीडिया।

मार्क्स ने बौद्धिक जुगाली करने वाले श्रमजीवी इंटेलेक्चुल की बेहतर व्याख्या की है, रवीश कुमार अपनी जुगाली के साथ इसके बेहतर प्रतिनिधि नजर आ रहे थे। इंजीनियर साहब का सवाल दमदार था और पूछने का तरीका भी। वह बता रहे थे कि मार्क्स बिजली के पैमाने से विकास को मापता था। जवाब में ट्रेनों की ट्वायलेट्स पर चर्चा को अंडर रैंकिंग जवाब ही कहा जा सकता है।

एक लड़के ने भी मौलिक बात कही जो सीधे बिजली विभाग से मुखातिब थी। बड़ी संख्या में पक्षी दुनिया में बिजली की वजह से मर रहे हैं, उनके प्रोटेक्शन के लिए भी सोचने की जरूरत है। बिजली बनाने के साथ-साथ पक्षियों को बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। मार्क्स से जुड़ा बिजली का पैमाने पक्षियों तक जाती है। हालांकि इन दोनों सवालों के बीच में एज गैप था। एक तरफ एक बिजली विभाग के एक कर्मठ चिंतक अधिकारी थे, जो बिजली के इस्तेमाल को लेकर चिंतित थे, उसके निर्माण प्रक्रिया को लेकर चिंतित थे, और इस पर कुछ सार्थक हल चाहते थे रवीश कुमार से। लड़के को लग रहा था कि बिजली की वजह से पक्षियों को बचाना चाहिए। वह बिजली के प्रैक्टिल इस्तेमाल के परिणाम से परेशान था। किसी जमाने में ब्रिटेन में मार्क्स की किताबों को ट्वायलेट्स की सीट पर रखकर क्लासिक इंटेलेक्चुअल्स लोग अपना फ्रस्टेशन निकालते थे, और बड़ी चालाकी से इसका प्रचार प्रसार भी करते थे। किसी भी युग के क्लासिक इंटेलेक्चुअल मार्क्स पर टट्टी करने से पहले नहीं देखते हैं कि वे अपनी पैंट कहां पर खोल रहे हैं।

एक बच्ची ने भी अपने तरीके से कुछ आईना दिखाया, वह हिन्दी में भी बोल रही थी और अंग्रेजी में भी, और पूरी मजबूती से अपनी बात रखती जा रही थी, रवीश कुमार के क्लासिक पत्रकारिता की ठसक का उस पर एक जरा असर नहीं दिख रहा था। बिहार के दूर दराज के हलकों में नियमित मीटर चेकिंग नहीं होती, वह इतना ही चाह रही थी, और साथ में यह भी चाह रही थी कि वहां की बिजली जरूरतों की बाधाओं को बेहतर तरीके आगे चलाया जाये. पहले तो रवीश कुमार ने कहा कि इसका समाधान सिटीजनशिप को डेवलप कर के किया जाना चाहिए, लेकिन जब उस लड़की ने जोर देकर कहा कि मीटर रिडिंग में सिटीजनशिप का मामला कैसै आ सकता है। तब रवीश कुमार को कहना पड़ा कि मीटर रिडिंग की जिम्मेदारी बिजली विभाग की बनती है।

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