आजाद हुई , हिन्दुस्तान की तस्वीर,
बदल गई , नेताओं की तकदीर
जाति – धर्म और संस्कृति के हुए ठेकेदार अनेक
प्रजातंत्र में वोट के हकदार हुए प्रत्येत।
बदल गई नेताओं की चाल
हरदम उठाते हैं , चुनाव का सवाल,
प्रजातंत्र में है मुद्दों की राजनीति
सत्ता और परिवार है सबसे बड़ी प्रीति।
अकुलाती है , जब भूखी , नंगी जनता
नेता समझाते , यह विपक्ष का है धंधा
बिकते हैं गांधी , अम्बेदकर और जयप्रकाश
चुनावी बाजी पर चढ़ते हैं माइनोरिटी और दलित कास्ट।
बेच दो हिन्दुस्तान को चुनाव के बाजार में
बढ़ा लो अपना कारोबार, गठबंधन की आड़ में,
जनता दौड़ती है भय , भूख और रोटी की पूकार में
उसे राह दिखाई जाती है विचारधारा की ललकार में।
प्रजातंत्र है चुनाव की राजनीति
धन – बल से चमक रही नेताओं की जाति,
आशा से चलती है जीवन की परिभाषा
चुनावी गणित में उलझ गई जनता की अभिलाषा।
खोज करता हूं भगत सिंह और सुभाष के विश्वास का
मिलते हैं पत्ते हर तरफ चुनावी ताश का।